नारद जी
एक बार नारद जी घुमते हुए डाकू रत्नाकर के इलाके में पहुँचे।
रत्नाकर ने उन्हें लूटने के लिये रोका।
नारद जी बोले “भैया मेरे पास तो यह वीणा है, इसे ही रख लो।
लेकिन एक बात तो बताओ, तुम यह पाप क्यों कर रहे हो?
” रत्नाकर ने कहा, “अपने परिवार के लिये।”
तब नारद जी बोले, “अच्छा, लेकिन लूटने से पहल एक सवाल जरा अपने परिवार वालों से पूछ आओ कि क्या वह भी तुम्हारे पापों में हिस्सेदार हैं?”
रत्नाकर दौडे-दौडे घर पहुँचे।
जवाब मिला, “हमारी देखभाल तो आपका कर्तव्य है, लेकिन हम आपके पापों में भागीदार नहीं हैं।
लुटे-पिटे से रत्नाकर लौट कर नारद जी के पास आए और डाकू रत्नाकर से वाल्मीकि हो गए।
बाद में उन्हें रामायण लिखने की प्रेरणा भी नारद जी से ही मिली।