मां के आर्शीवाद का फल

मां के आर्शीवाद का फल
मां आर्शीवाद का फल – शांती देवी, अपने बच्चों के साथ ही रह रही थी, उसके पति सेना में थे, अकेली औरत ऊपर से दो बच्चों के लालन-पालन की जिम्मेदारी। यह बात कहने को तो बहुत सरल थी, परन्तु जो करता है वही जानता है कि उसे क्या-क्या कष्ट उठाने पड़ते हैं।
शांति देवी हर प्रकार के कष्ट झेलने की शक्ति रखती थी, हर दुःख को हंस कर झेल रही थी, वह नहीं चाहती थी कि उसका पति जो घर से इतनी दूर सीमाओं पर बैठा हैं। उस पर किसी प्रकार की चिंता का बोझ पड़े।
अपने पति की सुरक्षा और कुशलता के लिये शांति ने मां दुर्गा के व्रत रखने शुरू कर दिये थे व्रत रख कर वह वैभव दुर्गा व्रत कथा के 101 पाठ करती और जब भी उसके ग्यारह व्रत पूरे होते तभी ग्यारह कन्याओं को घर पर बुला कर उन्हें भोजन करवा कर श्रद्धानुसार उन कन्याओं को दक्षिणा देती।
दक्षिणा के साथ हर कन्या को एक-एक प्रति दान में भी देती ताकि मा के भक्तों की संख्या भी बढ़ती रहे। बस इसी प्रकार से वह दुर्गा उपासना करती हुई अपना यह समय काट रही थी। एक बार उसने यह समाचार सुना कि कश्मीर में सहसा युद्ध भड़क उठा है उसके पति भी तो उसी सीमा पर थे।
युद्ध, आजकल युद्ध में तो बड़े आधुनिक हथियार चलते हैं, बम्ब, तोप के गोले, टैंक एक मिनट में सैकड़ों गोलियां फैकने वाली मशीन गनें….. ।
शांति देवी टी० वी० के सामने बैठी युद्ध के समाचार सुनती रहती, बम्बों की वर्षा, टैंक की गड़गड़ाहट, गोलियों के दिल हिलाने वाली आवाजें…. ।
उसका दिल कांप उठता वह मां दुर्गा की उपासना करने के लिए वैभव मां दुर्गा व्रत कथा का पाठ करने लगती और मां से हाथ जोड़ कर प्रार्थना करती, कि “हे मां शक्ति, हे दुर्गे”। “आप ही मेरे पति की सुरक्षा करना” ।
इन छोटे-छोटे बच्चों का ख्याल करना मां नोबेचारे अपने पिता की प्रतीक्षा कर रहे हैं, उसी प्रतीक्षा के सहारे अपने दिन काट रहे हैं।
वे दिन में न जाने कितनी बार पूछते है। कि “हमारे पिताजी कब आएंगे?”
मां सब के पिता दीवाली, दशहरे, दुर्गाष्टमी पर अपने घर आते हैं, परन्तु हमारे पिता क्यों नहीं आते?
इन मासूम बच्चों को बेचारी मां क्या उत्तर देती वह जानती थी इन बच्चों को युद्ध के विषय में विस्तार से बताना बड़ा कठिन काम है, बच्चे तो एक के पश्चात् एक प्रश्न करते रहेंगे। जिन प्रश्नों का उत्तर देना स्वयं शांति देवी के लिये संभव नहीं होगा, ऐसे भी प्रश्न वे पूछते रहेंगे यही कारण था शांति देवी उन बच्चों से इतना ही कह देती।
तुम्हारे पिताजी, देश की रक्षा के लिये सेना में रह कर अपने कर्तव्य का पालन कर रहे हैं बेटे… । “मां जी हमारे देश पर हमला हो गया
है”। “हां बेटा”, एक शत्रु ने हमारे देश पर हमला कर दिया है अब तुम्हारे पिताजी उस शत्रु के साथ युद्ध कर रहे होंगे…।
क्यों किया उसने यह हमला, बच्चे तो प्रश्न पर प्रश्न पूछे जा रहे थे, शांति देवी का मन इतना दुःखी था कि उसके लिये इन सब प्रश्नों का उत्तर दे पाना संभव ही नहीं था, मगर वह क्या करती दुःखी होते हुए भी उसे बच्चों का मन रखना पड़ता था, उसे इस बात का तो पता था कि युद्ध में जीवन और मृत्यु का खुलासा गम देखने को मिलता है। आजकल इतना आधुनिक हथियार आ गए हैं जो रातों रात शहरों का नामओ निशान तक मिटा देते हैं।
“अब उसका ही आसरा रह गया था” ?
“सब सहारे टूट चुके थे”। “पति घर में नहीं था, बच्चे छोटे थे।”
“मां दुर्गा” वही अपना अंतिम आसरा था। बस सुबह से शाम तक बैठी वह वैभव दुर्गा कथा का पाठ करती रहती।
युद्ध भी चल रहा था।
इसके साथ-साथ शांति देवी का वैभव दुर्गा का पाठ भी चल रहा था।
चालीस पाठ पूरे होने पर शांति बाई ने ग्यारह कन्याओं को भोजन करवाकर उन सबको दक्षिणा के साथ एकःएक प्रति “मां वैभव दुर्गा व्रत कथा” पुस्तक की सब कन्याओं को देकर आप सब इस की कथा को चालीस दिन व्रत रख कर शुद्ध मन से करना जो कन्या स्वयं पाठ नहीं कर सकती वह किसी अन्य से सुन सकता है। अभी सब कन्याएं जाने को तैयार ही बैठी थी कि उस समय द्वार पर जो दृश्य शांति देवी ने देखा उसे देख कर विश्वास ही नहीं हो रहा था।
क्या यह सत्य हो सकता है। उसका सुहाग वापस आ गया। मां दुर्गा, आप महान है आपने मुझ पर बहुत बड़ी कृपा की है, उसी समय वह अपने पति के सीने से लग गयी। उसकी आंखों से खुशी के आँसू बह निकले।
प्राण नाथ आप….. उसकी आवाज गले में फंस कर रह गई।
हां… हां…. हां….. मैं हूँ…. मैं तो मौत की गोद में से उठकर तुम्हारे पास आ गया हूँ।
धन्य है…।
धन्य है…..
मेरी मां शेरा वाली आप धन्य हो……
दोनों बच्चे, आकर अपने पिता के गले से लिपट गए और जोर-जोर से चिल्लाने लगे।
पापा आए…।
पापा आए ।
दोनों बच्चे खुशी से नाच रहे थे। शांति देवी अपने पति के लिये चाय और साथ में बिस्कुट लायी, चाय के साथ ही पति ने युद्ध के दिनों की दर्द भरी कहानियाँ सुनानी शुरू कीं। उसने बताया कि एक मेरा साथी सरदार वीर सिंह था। वह मेरे को बहुत मानता था हम दोनों कई समय तक इकट्ठे चलते जा रहे थे
जिस दिन शत्रु ने हमारे देश पर आक्रमण किया हम दोनों हज़ारों फुट ऊँची पहाड़ी पर बैठे थे, हमारे चारों ओर सफेद बर्फ रूई की भांति गिर रही थी, वीर सिंह अपनी पत्नी हरनाम कौर को याद करके गा रहा था, सैनिकों के पहाड़ों पर जो रम, ब्रांडी, शराब मिलती है, उस एकांत में घर से दूर ऊंचे पहाड़ों की बर्फी से भरी चोटियों में बैठ ने वाले सैनिकों का जीवन ही क्या है।
“यही शराब”
“वीर सिंह की आंखों में आंसू देख कर मुझे तुम्हारी याद आने लगी, बच्चों की याद आने लगी थी….।
वीर सिंह बार-बार कह रहा था कि दोस्त हम तो अब परदेशी हो गये. परदेशी…। परदेशी नाल न लाइये यारी भावें लख सोन दा होवे । इक गलों पर देसी चंगा जदों याद करो ताद रोवे । वीर सिंह और मैं दोनों ही रोने लगे थे। सहसा तोप के गोलों की जोरदार आवाजें सुनाई दी, हवाई जहाज बम वर्षा कर रहे थे… खतरे का साईन बज गया, सब सैनिकों ने अपने मोर्च संभाल लिये।
बम वर्षा, तोप के गोले, गोलिया…..।
अचानक ही शत्रु ने धोखे से हमला कर दिया था।
दोनों ओर से युद्ध शुरू हो मैं और गया, वीर सिंह अपने मोर्च में बैठ गोलियां चला रहे थे कि सहसा एक बम का गोला हेमारे मोर्च के निकट ही आ कर गिरा। उसके फटने की आवाज इतनी भयंकर थी कि हमारे कान तक बंद हो गए।
धरती ऐसे कांप रही थी जैसे कोई भूकम्प आ गया हो, मैं उस समय तुम्हारी दी हुई पुस्तक “वैभव दुर्गा व्रत कथा” को सीने से लगा कर मां का पाठ कर रहा था…. बार-बार इस मंत्र का पाठ…
ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हुं हुं हुं दक्षिण कालिके । क्रीं क्रीं क्रीं हुं हुं हत्रीं स्वाहा ।।
ऋष्यादि न्यास
ॐ भैरव ऋषेय नमः, शिरसि । उष्णिक छन्द से नमः मुखे । दक्षिण कालिका देवतायै नमः हृदि ह्रीं बीजाय नमः गुह्य । हुं शक्तये नमः पादयोः । क्रीं कीलकाय नमः नाभौ । विनियोगाय नमः सर्वागे ।
अब हृदयादिन्यास करें
ॐ क्रां हृदयाय नमः । ॐ क्रीं शिरसे स्वाहा । ॐ क्रु शिखायै वषट्। ऊ क्रं कवचाय हुम। ॐ क्रो नेत्रययाय वौषट् । ॐ क्रः अस्त्राय फट् ।।
मां दुर्गा का पाठ कब पूरा हुआ, कैसे पूरा हुआ, उस समय का हमें कुछ पता नहीं, बम्ब का धमाका और पहाड़ का फटना इतना तो हमें याद था….।
इसके पश्चात्…
जब मेरी आंख खुली तो में एक अस्पताल में पड़ा था, मुझे यह बताया कि आज तुम्हें सात दिन के पश्चात् होश आया है, उस बम्ब का हमला तुम्हारे ऊपर ही हुआ था तीन दिन तक तो तब मोर्चे में ही बंद रहे, चौथे दिन जब तुम्हें निकाला गया तो किसी को यह आशा ही नहीं थी कि तुम तीन दिन तक मोर्चे में दबे रहने के पश्चात् भी जीवित रह सकते हो। जब तुम्हें निकाला गया तो तुम्हारे सीने पर यह पुस्तक पड़ी थी।
“वैभव दुर्गा व्रत कथा” मैंने उस पुस्तक को लेकर प्रणाम किया। मां दुर्गा की शक्ति से मैं और वीर सिंह दोनों ही बच गये थे।
शांति देवी और दोनों बच्चे खुशी से नाच उठे थे, शांति देवी बार-बार मां दुर्गा की प्रतिमा के आगे अपना सिर रख कर कह रही थी।
मां शक्ति आपने ही मेरे सुहाग की रक्षा की है। मां आपकी कृपा से ही आज मैं सुहागिन हूँ।
जय… जय… जय..
चमन की श्री दुर्गा स्तुति
- सर्व कामना पूर्ण करने वाला पाठ- चमन की श्री दुर्गा स्तुति
- श्री दुर्गा स्तुति पाठ विधि
- श्री दुर्गा स्तुति प्रारम्भ
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- श्री दुर्गा स्तुति प्रार्थना ( श्री गणेशाय नमः)
- श्री दुर्गा कवच
- श्री मंगला जयन्ती स्तोत्र
- श्री अर्गला स्तोत्र नमस्कार
- कीलक स्तोत्र
- विनम्र प्रार्थना
श्री दुर्गा स्तुति अध्याय
- पहला अध्याय
- दूसरा अध्याय
- तीसरा अध्याय
- चौथा अध्याय
- पांचवा अध्याय
- छटा अध्याय
- सातवां अध्याय
- आठवां अध्याय
- नवम अध्याय
- दसवां अध्याय
- ग्यारहवां अध्याय
- बारहवां अध्याय
- तेरहवाँ अध्याय