माँ की महिमा का वर्णन – भगवती भुवनेश्वरी के स्वरूप, महत्त्व तथा गुण
माँ की महिमा के बारे में सावित्री ने धर्मराज जी से कहा : प्रभो! अब आप मुझे जो समस्त सार पदार्थों में सर्वप्रधान है, वह भगवती की भक्ति प्रदान करने की कृपा कीजिए। भगवान!
- मुक्ति किसको कहते हैं? उनके क्या लक्षण हैं?
- भक्ति का वस्तुतः स्वरूप क्या है?
- किए कर्मों के भोग का नाश किस तरह हो सकता है?
ये सारी बातें भी मैं जानना चाहती हूं। वेदवेत्ताओं में श्रेष्ठ प्रभो! आप मुझे संक्षेप में परम साररूप ज्ञान प्रदान करने की कृपा कीजिए।
भगवती के गुणों का वर्णन
धर्मराज बोले : वत्से ! कल्याणी! तुम जो मूलप्रकृति भगवती जगदम्बा के गुणानुवाद का श्रवण करना चाहती हो, सो यह बड़ा ही विलक्षण है। सहस्त्र मुख वाले शेष भी इसे कहने में असमर्थ हैं।
मृत्युञ्जय भगवान शंकर यदि अपने पांच मुखों से कहने लगें तो वे भी पार नहीं पा सकते। ब्रह्मा जी चारों वेदों और अखिल जगत के स्त्रष्टा हैं। भगवान विष्णु सर्वज्ञ हैं, परन्तु ये दोनों प्रधान देव भी भगवती के गुणों का कई तरह से वर्णन करने में समर्थ नहीं हैं।
श्रीदेवी के जिन गुणों की व्याख्या सिद्ध, मुनीन्द्र एवं योगीन्द्र भी नहीं कर सकते, उनका वर्णन अन्य पुरुष कैसे कर सकते हैं और मैं भी कैसे कर सकता हूं।
भगवती का गुणानुवाद परम पवित्र है। परम ब्रह्मज्ञानी ब्रह्मा कुछ अतिरिक्त ही अंश से परिचित हैं। ज्ञानियों के गुरु गणेश जी को कुछ और ही ढंग से भगवती का गुण ज्ञात है।
सबसे विलक्षण गुण सर्वज्ञानी भगवान शंकर ही जानते हैं, क्योंकि परब्रह्म भगवान श्री कृष्ण की कृपा से उन्हें इनका ज्ञान प्राप्त हो चुका है। पुरातन समय की बात है भगवान शंकर एक बार गोलोक में गए थे। वहीं भगवान श्री कृष्ण ने शंकर को भगवती जगदम्बा के कुछ पवित्र गुण सुनाए थे।
इसके बाद स्वयं शिवजी ने अपनी पुरी में धर्म के प्रति उनका उपदेश किया था। महाभाग सूर्य के पूछने पर धर्म ने उनके सामने इनकी व्याख्या की थी। साध्वी! मेरे पिता भगवान सूर्य तपस्या करने के बाद देवी की उपासना करके इस ज्ञान को कुछ प्राप्त कर सके थे।
पिता जी ने मेरे सामने भगवती के गुणों का वर्णन किया। उस समय मैंने जो कुछ सुना था, उसी परम दुर्लभ विषय को आज मैं तुम्हें बता रहा हूं, सुनो।
वरानने! मूलप्रकृति भगवती जगदम्बा के इतने अमित गुण हैं कि उन्हें वे स्वयं ही पूरा नहीं जानतीं, तब दूसरों की बात ही क्या है। इन ब्रह्मस्वरूपिणी भगवती का प्रथम रूप ‘सर्वात्मा’ है।
भगवती जगदम्बा शक्ति तथा महामाया नाम से प्रसिद्ध हैं
जो निरंकुश निर्लिप्त, सर्वसाक्षी, सर्वाधार तथा परात्पर हैं, वे ही परमात्मा अपनी माया से मूलप्रकृति भगवती भुवनेश्वरी के रूप में अभिव्यक्त हो जाते हैं। सभी नामधारी वस्तुओं की अभिव्यक्ति या उत्पत्ति उन्हीं से हुई है। वे ही ये सच्चिदानन्दस्वरूपिणी भगवती जगदम्बा शक्ति तथा महामाया नाम से प्रसिद्ध हैं।
भगवती का स्वरूप अभिन्न हैं
इनका कोई रूप नहीं है, तथापि भक्तों पर कृपा करने के लिए ये भिन्न-भिन्न रूप धारण किए हुए हैं। ये ही सर्वप्रथम गोपाल सुन्दरी का रूप धारण कर चुकी हैं। इसलिए स्वयं परब्रह्म परमात्मा भगवान श्री कृष्ण इन्हीं के अभिन्न स्वरूप हैं।
मुक्ति किसको कहते हैं? उनके क्या लक्षण हैं?
पतिव्रते! देवताओं के इकहत्तर युगों की इन्द्र की आयु होती है। ऐसे अट्ठाईस इन्द्रों के बीत जाने पर ब्रह्मा का एक दिन-रात होता है। इसी तरह तीस दिनों का एक मास होता है तथा दो मास की ऋतु और छः ऋतुओं का एक वर्ष होता है।
ऐसे सौ वर्ष की ब्रह्मा की आयु होती है। यही ब्रह्मा की आयु का मान कहा गया है। ब्रह्मा के शान्त होने पर माया-विशिष्ट प्रकृति-ब्रह्म परमात्मा की एक पलक गिरती है। जब वे आंख मूंद लेते हैं, तब उसी को ‘प्राकृतिक प्रलय’ कहते हैं।
उस प्राकृतिक प्रलय के समय सम्पूर्ण देवता, चराचर प्राणी, धाता और विधाता-ये सब भगवान श्री कृष्ण के नाभिकमल में लीन हो जाते हैं। क्षीरसागर में शयन करने वाले श्रीविष्णु और वैकुण्ठवासी चतुर्भुज भगवान श्रीविष्णु परब्रह्म परमात्मा श्री कृष्ण के वामपार्श्व में लीन हो जाते हैं।
ज्ञान के अधिष्ठाता सनातन-भगवान शिव उन परमात्मा श्री कृष्ण के ज्ञान में प्रवेश कर जाते हैं। सम्पूर्ण शक्तियां विष्णुमाया दुर्गा में तिरोहित हो जाती हैं। विष्णुमाया दुर्गा भगवान श्री कृष्ण की बुद्धि में स्थान ग्रहण कर लेती हैं, क्योंकि वे उनकी बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी हैं।
इसी तरह अन्य सभी देवता और प्राणी भगवान श्री कृष्ण में लीन हो जाते हैं। जिन सर्वान्तरात्मा प्रभु के पलक मारने पर प्रलय और शयन करने के बाद जिनकी इच्छा से पुनः सृष्टि होती है, वे परब्रह्म भगवान श्री कृष्ण प्रलयकाल उपस्थित होने पर उन मूलप्रकृति परात्पर स्वरूपा शक्ति में मिलकर एक हो जाते हैं।
उस समय एक पराशक्ति ही रह जाती है। उसी को निर्गुण कहते हैं। उसी के विषय में वेद के ज्ञाता विद्वानों का कथन है कि ‘सदेवेदमग्र आसीत्’ अर्थात् वे ही ये पुरुष हैं, जो सर्वप्रथम विराजमान थे। भगवती मूलप्रकृति अव्यक्त होने पर भी व्यक्त पद से सम्बोधित होती हैं।
ऐसे विशिष्ट गुणों से सम्पन्न भगवती जगदम्बा के गुणों का वर्णन करने के लिए सारे ब्रह्मण्ड में कौन ऐसा पुरुष है, जो सफलता प्राप्त कर सके। चारों वेदों ने मुक्ति के चार भेद बतलाए हैं।
एक मुक्ति ‘सालोक्य’ प्रदान करने वाली, दूसरी सारूप्य देने में निपुण, तीसरी ‘सामीप्य’ प्रदान करने वाली तथा चौथी निर्वाण पद पर पहुंचाने वाली कही जाती है। अब निषेक खण्डन का प्रसंग सुनो।
किए कर्मों के भोग का नाश किस तरह हो सकता है?
विद्वान पुरुष कहते हैं कि किए हुए कर्मों का भोग ही निषेक है। उसके खण्डन का कल्याणप्रद उपाय तो यही है कि मूलप्रकृति भगवती श्रीदेवी की उत्तम सेवा की जाए। साध्वी! यह तत्त्वज्ञान लोक तथा वेद में स्थित है।
भक्ति का वस्तुतः स्वरूप क्या है?
भक्ति का वस्तुतः स्वरूप देवी भगवती है जो सबको भक्ति प्रदान करती है। हमे निशदिन इसकी उपासना करनी चाहिए।
इसलिए वत्से! तुम इस विघ्नरहित तथा शुभप्रद मार्ग का सुखपूर्वक अनुसरण करो। धर्मराज बोले : सावित्री! तुम पुण्यक्षेत्र भारतवर्ष में बहुत वर्षों तक सुख भोगने के अनन्तर उस लोक में जाओगी जहां स्वयं भगवती विराजमान रहती हैं।
भद्रे! अब तुम अपने घर जाओ तथा भगवती सावित्री का व्रत करो। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में चतुर्दशी तिथि को यह व्रत करना चाहिए। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में अष्टमी तिथि के दिन महालक्ष्मी का व्रत होता है।
हरेक मंगलवार के दिन मंगल प्रदान करने वाली भगवती मंगल चण्डिका की पूजा करनी चाहिए। हरेक मास के शुक्ल पक्ष में षष्ठी के दिन मंगलप्रदा भगवती षष्ठी देवसेना की उपासना करने का विधान है।
इसी तरह आषाढ़ की संक्रान्ति के अवसर पर सम्पूर्ण सिद्धि प्रदान करने वाली भगवती मनसा की पूजा होती है।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को रास के अवसर पर भगवान श्री कृष्ण की प्राणाधिका श्री राधा की उपासना करनी चाहिए और हरेक मास की शुक्ल अष्टमी के दिन मंगल प्रदान करने वाली भगवती दुर्गा का व्रत करना चाहिए।
जो नारी पुत्रवती तथा सुहागिनी स्त्रियों, पुण्यमयी पतिव्रताओं तथा यन्त्रों में एवं प्रतिमाओं में भगवती विष्णुमाया, दुर्गतिनाशिनी दुर्गा और प्रकृतिस्वरूपिणी भगवती जगदम्बा की भावना करके धन तथा संतति प्राप्ति के लिए भक्तिपूर्वक उनकी पूजा करती है। वह इस लोक में सुख भोगकर अन्त में भगवती श्रीदेवी के परमपद को प्राप्त होती है। इसलिए तुम लगातार सर्वरूपा मूलप्रकृति श्री भुवनेश्वरी की उपासना करो।
इस तरह कहकर धर्मराज अपने स्थान पर पधार गए। सावित्री भी पतिदेव को लेकर अपने घर पर लौट गई। वर के प्रभाव से क्रमशः सावित्री के पिता पुत्रवान बन गए।
उसके श्वशुर की आंखें ठीक हो गईं और वे अपना राज्य पा गए। सावित्री स्वयं भी बहुत से पुत्रों की जननी बन गई। उस पतिव्रता सावित्री ने पुण्यभूमि भारतवर्ष में अनेक वर्षों तक सुख भोग किया। उसके बाद वह अपने पति के साथ भगवती भुवनेश्वरी के लोक में चली गई।