कीलक स्तोत्र

कीलक स्तोत्र

मारकडे ऋषि वचन उचारी, सुनने लगे ऋषि बनचारी।

नीलकंठ कैलाश निवासी, त्रयनेत्र शिव सहज उदासी।

कीलक मंत्र में सिद्धि जानी, कलियुग उल्ट भाव अनुमानी।

कील दियो सब यन्त्र मन्त्र तत्रनी शक्ति कीन परतन्त्र।

तेही शंकर स्तोत्र चंडिका का, राखियो गुप्त काहू से न कहा।

फलदायक स्तोत्र भवानी, कीलक मन्त्र पढे नर ज्ञानी।

नित्यपाठ करें प्रेम सहित जो, जग में विचरे कष्ट रहित हो।

ताके मन में भय कही नाही, सिंधू आकाश त्रिलोकी माहि।

जन्म जन्म के पाप यह भस्म करे पल माहि।
दुर्गा पाठ से सुख मिले इस में संशय नाहिं।

जीवत मनवाछित फल पाए , अंतसमय फिर स्वर्ग सिधाए।

देवी पूजन करे जो नारी, रहे सुहागिन सदा सुखारी।

सुतवित सम्पत्ति सगरी पावे, दुर्गा पाठ जो प्रेम से गावे।

शक्ति बल से रहे अरोगा, जो विधि देवे अस संजोगा।

अष्टभुजी दुर्गा जगतारिणी, भक्तों के सब कष्ट निवारनी।

पाठ से गुण पावे गुणहीना, पाठ-से सुख पावे अति दीना,

पाठ से भाग लाभ यश लेही। पाठ से शक्ति सब कुछ देही।

अशुद्ध अवस्था में न पढियो, अपने संग अनर्थ न करियो।

शुद्ध वचन और शुद्ध नीत कर, भगवती के मन्दिर में जा पढ़।

प्रेम से वन्दना करे मात की, हो जाय शुद्ध महा पात की।

नवरात्र घी जोत जला के, विनय सुनाये सीस झुकाके।

जगादाता जग जननी जानी, मन की कामना कहे बखानी।

दुर्गा स्तोत्र प्रेम से पढ़े सहित आनन्द।

भाग्य उदय हो ‘चमन’ के चमके मुख सम चन्द!

चमन की श्री दुर्गा स्तुति

श्री दुर्गा स्तुति अध्याय

महा चण्डी स्तोत्र
महा काली स्तोत्र
नमन प्रार्थना
माँ जगदम्बे जी आरती
महा लक्ष्मी स्तोत्र
श्री संतोषी माँ स्तोत्र
श्री भगवती नाम माला
श्री चमन दुर्गा स्तुति के सुन्दर भाव
श्री नव दुर्गा स्तोत्र – माँ शैलपुत्री
दूसरी ब्रह्मचारिणी मन भावे – माँ ब्रह्मचारिणी
तीसरी ‘चन्द्र घंटा शुभ नाम –  माँ चंद्रघण्टा
चतुर्थ ‘कूषमांडा सुखधाम’ – माँ कूष्मांडा
पांचवी देवी असकन्ध माता – माँ स्कंदमाता 
छटी कात्यायनी विख्याता – माँ कात्यायनी
सातवीं कालरात्रि महामाया – माँ कालरात्रि
आठवीं महागौरी जगजाया – माँ महागौरी
नौवीं सिद्धि धात्री जगजाने – माँ सिद्धिदात्री
अन्नपूर्णा भगवती स्तोत्र

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