गूगा पंचमी
यह भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। इसमें नाग देवता की पूजा की जाती है।
इस दिन सबसे पहले कटोरे में दूध भर कर नागों को पिलाना चाहिए। इसके उपरांत दीवार पर गेरू से पोत कर दूध में कोयला पीस कर चाकोर घर बना कर उसमें पांच सर्प बनाते हैं।
इसके बाद इन सर्पों पर जल, कच्चा दूध, रोली- चावल, बाजरा, आटा, घी, चीनी मिलाकर चढ़ाना चाहिए और पण्डित को दक्षिणा देनी चाहिए।
इस व्रत के करने से स्त्रियां सौभाग्यवती होती हैं। पति की विपत्तियों से रक्षा होती है और मनोकामना पूरी होती है। बहनें भाइयों को टीका लगाती हैं तथा मिठाई खिलाती हैं और स्वयं चना और चावल का बना हुआ बासी भोजन खाती हैं। बदले में भाई यथाशक्ति बहनों को शगुन देते हैं।
गूगा पंचमी एक प्रमुख हिन्दू त्योहार है जो पुराने हिन्दू पंथ और विशेषकर राजपूत समुदाय में मनाया जाता है। यह त्योहार गुरुवार को हिन्दू पंचमी तिथि को मनाया जाता है और इसका मुख्य उद्देश्य भगवान गूगा जी की पूजा और उनके जीवन के महत्वपूर्ण घटनाओं का स्मरण करना है।
गूगा पंचमी का त्योहार भारत के विभिन्न राज्यों में मनाया जाता है, लेकिन यह प्रमुख रूप से राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब और मध्य प्रदेश में विशेष रूप से मनाया जाता है। इस त्योहार के दौरान भगवान गूगा जी की पूजा, कथाएं, भजन, कीर्तन और भक्ति गीत आयोजित किए जाते हैं।
भगवान गूगा जी की कथा
गूगा पंचमी के दिन, भगवान गूगा जी की कथाएं सुनाई जाती हैं, जो उनके जीवन और महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में होती हैं। उनकी कथाओं के माध्यम से उनके भक्त धार्मिक उपदेश प्राप्त करते हैं।
गोगा जी का जन्म भगवान गोरखनाथ जी के वरदान से हुआ था। चौहान वंश के राजपूत राजा जीवन सिंह जी और उनकी माता बाछल देवी जी के कोई संतान नहीं थी। वाचाल देवी जी ने संतान प्राप्ति हेतु गोगा माड़ी के ढेरे पर गुरु गोरखनाथ जी की तपस्या की थी तब गुरु गोरखनाथ जी ने उनका पुत्र प्राप्ति का प्रसाद के रूप में आशीर्वाद और वरदान दिया था।
उस प्रसाद को खाने से बात चल देवी जी गर्भवती हुई। फिर उन्होंने गोगा जी को जन्म दिया और उसे पुत्र का नाम गोगा रखा। जिस स्थान पर वाचाल देवी ने तपस्या की थी वह स्थान राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में है। स्थान पर भाद्र मास की पंचमी और नवमी को गोगा जी का बहुत बड़ा मेला लगता है।
गुजरात के लोग गोगा जी को गोगा महाराज के नाम से पुकारते हैं। मुस्लिम वर्ग के लोग गोगा जी को जाहरवीर के नाम से पुकारते हैं। राजस्थान में गोगा जी का जन्म स्थान है और साथ में गुरु गोरखनाथ जी का आश्रम भी स्थित है।
पूजा और आराधना
भगवान गूगा जी की मूर्ति की पूजा और आराधना की जाती है। उनके चित्रों और प्रतिमाओं को सजाकर उनके समर्पित आसन पर रखा जाता है।
भजन और कीर्तन
गूगा पंचमी के दिन, भजन और कीर्तन की विशेषता होती है, जिसमें भक्तगण भगवान गूगा जी के गुणगान में लीन होते हैं और उनकी महिमा का गान करते हैं।
प्रसाद वितरण
इस त्योहार के दौरान भक्तगण अलग-अलग प्रकार के प्रसाद तैयार करते हैं और उन्हें बांटते हैं।
समाजिक समारोह
गूगा पंचमी के दिन स्थानीय समाज में विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक और सामाजिक समारोह आयोजित किए जाते हैं, जिनमें लोग एक साथ मिलकर आनंद और उत्साह से त्योहार मनाते हैं।
इस प्रकार, गूगा पंचमी एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सामाजिक उत्सव है जो भगवान गूगा जी के उपासकों के लिए महत्वपूर्ण है।