माँ ज्वाला देवी
ज्वाला जी की कथा – जिला होशियार पुर के गोपीपुरा डेरा से लगभग दस मील पर ज्वाला जी का मन्दिर है। यहां पहाड़ में से सदा अग्नि की लपटें निकलती रहती हैं।
यह धृमा देवी का स्थान कहलाता है। यहां पर सती जी की जिभ्या गिरी थी। इसलिए 51 शक्तिपीठों में भी इसकी मान्यता है।
मुगल बादशाह अकबर ने जब ध्यानू भक्त के घोड़े का कटा सिर जुड़ने पर ज्वाला देवी की महत्वता स्वीकार की थी और सवा मन सोने का छत्र लेकर मन्दिर में प्रतिष्ठा करनी चाही तो देवी ने प्रकट होकर छत्र के टुकड़े-टुकड़े कर उसे न जाने किस धातु का बना दिया था।
इस प्रकार देवी ने अकबर के अहंकार को मिटाया। वह छत्र आज भी इस स्थान पर टुकड़ों के रूप में सुरक्षित पड़ा है।
ज्वाला जी के मन्दिर के पास ही एक पानी का कुण्ड है जिसे सूरत कुण्ड कहते है। यहीं पर लक्ष्मी देवी का मन्दिर, अम्वकेश्वर महादेव, रघुनाथ जी, शीतला, भगवान महावीर, तारादेवी आदि के अनेक अवतारों की मूर्तियाँ हैं जिसका भक्तजन श्रद्धानुसार बारी से दर्शन करते हैं।
यहां के मन्दिर व अन्य स्थानों की यात्रा से व देवी की कृपा से सब कष्ट दूर होकर मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।