तीसरा अध्याय कार्तिक माहात्म्य
इतनी कथा सुनकर श्री नारदजी ने पूछा कि हे ब्रह्मन् ! आप मुझे उत्तम देवता का पूजन बताइये। तब ब्रह्माजी ने कहा कि हे पुत्र !
गंडकी नदी के उत्तर की ओर गिरिजा के दक्षिण में चालीस कोस की पृथ्वी महाक्षेत्र कहलाती है वहाँ पर ही शालिग्राम तथा गोमती चक्र होते हैं
जिनका चरणामृत लेने से मनुष्य मुक्ति को प्राप्त हो जाता है। अब चरणामृत लेने का मन्त्र कहते हैं- ॐ अकालमृत्यु हरणं सर्वव्याधि विनाशनम्।
विणु पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ॥ इस मन्त्र को पढ़कर भगवान् शालिग्राम का चरणामृत लेना चाहिए।
शंख में भरा हुआ व भगवान् पर चढ़ाया हुआ जल अंग में लगाने से सब प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं
और पाप भी नष्ट हो जाते हैं तथा मनुष्य मुक्ति को प्राप्त हो जाता है।
जिस गोमती में एक चक्र हो उसको सुदर्शन, जिसमें दो चक्र हों वह नारायण, जिसमें तीन चक्र हों उसको अच्युत, चार वाले को जनार्दन,
पांच वाले को वासुदेव, छः वाले को प्रद्युम्न, सात वाले को संकर्षण, आठ वाले को नलकूबर, नव वाले को नवव्यूह और दस वाले को दशावतार कहते हैं।
जो मनुष्य भगवान् का पूजन करता है वह अवश्यमेव जीवन्मुक्त हो जाता है
और जो भगवान् को वीणा, वंशी और गान सुनाता है, वह भी भगवान् को प्राप्त हो जाता है।
जो भगवान् के आगे मृदंग बजाता है वह भगवान् को अत्यन्त प्रिय होता है।
जो भगवान् के आगे धूप जलाता है, वह कभी नरकगामी नहीं होता ।
पूजन चाहे मन्त्र से हीन हो, चाहे क्रिया से हीन हो, परन्तु जो श्रद्धा से किया गया हो वही पूर्ण होता है।