तीसवाँ अध्याय माघ महात्म्य
(माघ व्रत उद्यापन विधि) माघ मास में पूर्णिमा को प्रातःकाल गंगा, यमुना, सरस्वती के संगम में अथवा किसी भी नदी में स्नान करके एवं पवित्र होकर उसी क्षेत्र में एक मंडप बनाकर उसमें भगवान विष्णु की स्थापना करें –
ब्राह्मण को बुलाकर गौरी गणेश तथा नवग्रह की स्थापना करके सत्यनारायण भगवान का पूजन करें और कथा श्रवण करें।
तत्पश्चात् एक वेदी बनाकर वेदी के पश्चिम भाग में बैठकर तिल, चावल, जौ, गुगुल, घी का हवन करे । तदुपरान्त ब्राह्मणों का वरण करें।
बाद में सर्वतोभद्र चक्र बनाकर ब्रह्मादि देवताओं का पूजन करके वहाँ कलश के ऊपर सुवर्ण की लक्ष्मी, विष्णु की मूर्ति स्थापित करें।
‘ॐ इदं विष्णुरिति, इस मन्त्र से आवाहन करके पुरुष – सूक्त के मन्त्रों द्वारा षोडशोपचार पूजन करें और पलंग के साथ पांच वस्त्रों को तथा ब्राह्मण को लोटा,
धोती, जनेऊ, जोड़ा अथवा स्वर्ण मुद्रा, तिल आदि का दान करें तथा गो दान करके विसर्जन करें।
इसके पश्चात् गीत, कीर्तन वाद्यादिक मंगल गान और उत्सव मनावें तथा यथाशक्ति ब्राह्मण को भोजन करावे तथा यथाशक्ति उनको दक्षिणा भी दें ।
जो मनुष्य माघ में इस महात्म्य को पढ़ता और सुनता है तथा उपरोक्त रीति से उद्यापन करता है तो इस व्रत व उद्यापन से कुल के सात जन्मों के किये गये सम्पूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं। उस मनुष्य को सुख, सम्पत्ति एवं सौभाग्य प्राप्त होते हैं तथा सकल मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं।