दसवाँ अध्याय माघ महात्म्य

दसवाँ अध्याय माघ महात्म्य

यमदूत बोले बहुत से पाप करने वाला भी एक बार गंगा स्नान से शुद्ध हो जाता है। गंगा जल भगवान विष्णु के चरणोंदक से भी अधिक पवित्र है, इसे शिवजी ने मस्तक पर धारण किया है।

गंगाजल के समान कोई जल पवित्र नहीं है। गंगा नाम के उच्चारण मात्र से ही प्राणी के पाप नष्ट हो जाते हैं। ‘गंगा तबे दर्शनातमुक्ति’ अर्थात गंगा के दर्शन मात्र से मुक्ति मिलती है। अतः स्नान से ब्रह्मलोक स्थान मिलता है|

वैश्य! वह ब्राह्मण आकाश के तारे के समान तेजधारी होता है, जो गौ की सेवा करता है । जो गौ के स्थान पर प्राण त्यागता है, उसके पाप स्वतः नष्ट हो जाते हैं । जो प्राणी परनारी को माता के समान मानता है, वह धन्य है, उसे कभी यमद्वार नहीं देखना पड़ता है।

जो मन, वचन, कर्म से कभी परनारी का ध्यान नहीं करते, वे समस्त सुखों का उपभोग करते हैं। परस्त्री गमन करने वाला इक्कीस बार नरक भोगता है। जो प्राणी द्रव्य को नहीं लेते हैं, वे देवलोक प्राप्त करते हैं। जो क्रोध करने की अवस्था में भी क्रोध नहीं करते, वे दिव्य भोगते हैं।

जो माता-पिता का सत्कार करते हैं, गुरु का पूजन करते हैं, ब्रह्मलोक में स्थान पाते हैं। जो स्त्री सतीत्व की रक्षा करती है, पतिव्रता रहती है, संसार में श्रेष्ठ सुख भोगती है । दुराचार करने वाली को नरक प्राप्त होता है। जो वेद वाक्य पढ़ते अथवा सुनते हैं, शास्त्रों का पठन पाठन करते हैं,

मनु स्मृति आदि धर्म-शास्त्रों का अध्ययन करते हैं, निश्चय ही स्वर्ग प्राप्त करते हैं, जिन प्राणियों ने धर्म के महत्व को समझकर ज्ञान का अर्जन किया है, जो अपने ज्ञान का उपदेश देते हैं, वे निश्चय ही ब्रह्मलोक पाते हैं, वे देवताओं के द्वारा भी पूजित होते हैं।

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