देवी की पूजा
देवी की पूजा क्यों जरूरी है ?
देवपुराण की कथा में एक ऐसा प्रसंग मिलता है कि एक बार नारद जी को यह शंका उत्पन्न हुई कि
तीनों देवता (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) सदैव किसकी उपासना किया करते हैं ?
सन्देहवश होकर नारदमुनि ने शिवजी से पूछा- मुझे ब्रह्मा, विष्णु और आप से बढ़कर पूज्य कोई अन्य देवता तो मालूम नहीं है। फिर आप से ऊंचा और कौन है, जिसकी आप आराधना करते हैं ?
शिवजी बोले हे मुनिवर ! सूक्ष्म एवं स्थूल शरीर से परे जो महाप्राण आदिशक्ति है, वह स्वयं पारब्रह्म स्वरूप है। वह केवल अपनी इच्छा मात्र से ही सृष्टि की रचना, पालन एवं संहार करने में समर्थ है।
वास्तव में, यद्यपि वह निर्गुण स्वरूप है, तथापि समय-समय पर धर्म की रक्षा एवं दुष्टों के नाश हेतु उन्होंने पार्वती, दुर्गा, काली, चण्डी, वैष्णवी एवं सरस्वती के रूप में अवतार धारण किये हैं।
श्री शंकर जी आगे कहते हैं कि हे नारद! अधिकतर यह भ्रम होता है कि यह देवी कौन हैं ? और क्या वह पारब्रह्म से भी बढ़कर है?
श्रीमद्देवीभागवत में ब्रह्मा जी के एक प्रश्न के उत्तर में स्वयं देवी ने ऐसा कहा है “एक ही वास्तविकता है और वह है। सत्य! मैं ही सत्य हूँ। मैं न तो नर हूँ, न ही नारी और न ही कोई ऐसा प्राणी हूँ जो नर या मादा हो अथवा नर-मादा भी न हूँ, ऐसा भी कुछ नहीं है।
परन्तु कोई भी ऐसी वस्तु नहीं जिसमें मैं विद्यमान नहीं। मैं प्रत्येक भौतिक वस्तु तथा शरीर में शक्ति के रूप में रहती हूँ।”
श्री देवीपुराण में ही एक स्थान पर विष्णु भगवान यह स्वीकार करते है कि वह मुक्त नहीं हैं और केवल महादेवी की आज्ञा का पालन करते हैं। यदि ब्रह्मा सृष्टि की रचना करते हैं, विष्णु पालन करते हैं, और शिवजी संहार करते हैं, तो वह केवल यन्त्र की भांति कार्यरत हैं।
ठीक उसी प्रकार जैसे कि मशीन अपना कार्य कर रही होती हैं। उस यन्त्र या मशीन की संचालनकर्ता महादेवी ही है। संसार मानो कठपुतली का कोई तमाशा है। और उसकी डोरी स्वयं देवी के हाथों में है।
वैज्ञानिक दृष्किोण से भी शक्ति या उर्जा के बिना प्राणी निर्जीव है। अतः सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड देवी का प्रतिबिम्ब अथवा छायामात्र है। समस्त भौतिक पदार्थों एवं जीवों में शक्ति (देवी) द्वारा ही चेतना व प्राण का संचार होता है।
इस नश्वर संसार में चेतना के रूप में प्रकट होने से देवी को ‘चित्तस्वरूपिनी’ माना जाता है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश सहित अन्य सभी देवता कालान्तर में नाशवान हो सकते हैं, परन्तु देवी-शक्ति सदैव अजन्मा और अविनाशी है, वही आदिशक्ति है और अनन्त है।
श्रीमद्भागवत पुराण में महर्षि वेदव्यास राजा जन्मेजय से कहते हैं – हे जन्मेजय ! आप इस बात में लेशमात्र भी सन्देह न रखें जिस प्रकार एक जादूगर अपनी गुड़ियों का खेल रचाता है, उसी प्रकार महादेवी अपनी इच्छा और शक्ति द्वारा चल-अचल भौतिक प्राणियों व वस्तुओं की रचना या संहार किया करती हैं। इसी कारण वह सभी मनुष्यों और देवताओं द्वारा भी पूज्य हैं।