नवरात्र व्रत का हमारे जीवन में महत्व

नवरात्र व्रत

नवरात्र व्रत – प्राचीनकाल से ही व्रत-त्यौहारों की विभिन्न प्रथाएं प्रचलित हैं। इन प्रथाओं के पीछे भी विशिष्ट कारण निहित होते हैं। देवी माता में विश्वास व श्रद्धावश व्रत रखने वालों की संख्या भी दिनों-दिन बढ़ती जा रही है किंतु इन त्यौहारों व इनमें निर्धारित आहार-विहार के आधार में विज्ञान छुपा है। इस तरह हमारे शास्त्रसम्मत रीति रिवाजों के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण भी विद्यमान होता है।

वैज्ञानिक तौर से

नवरात्र वर्ष में दो बार बसंत व शरद ऋतु में आते हैं। दोनों समय ऋतु संधिकाल है। ऋतु संधिकाल में मौसम बदलने के कारण हमारा शरीर अनेक रोगों से ग्रस्त हो जाता है। बसंत में कफ की वृद्धि व शरद में पित्त की वृद्धि के कारण कफ्ज एवं पित्तज रोगों जैसे जुकाम, बुखार, आंखों के रोग, पेट के रोग व त्वचा के रोगों की भरमार रहती है। इनसे बचाव हेतु अपने शरीर को तैयार करना आवश्यक है जिसके लिए उपवास उचित व सटीक उपाय है। ऋतु संधि पर उपवास को उपवास ही समझकर किया जाए तो ऋतु संधिजनित विकारों से बचा जा सकता है।

नवरात्र व्रत – चिकित्सा शास्त्र के अनुसार

शास्त्रों में कहा गया है कि आंखों व पेट के रोग,जुकाम, व्रण व ज्वर आदि पांचों विकार पांच दिनों के उपवास से ठीक किए जा सकते हैं। इसी सिद्धांत पर आधारित हैं नवरात्रों के व्रत।

आजकल लोग उपवास करते अवश्य हैं किंतु कुछ ही लोग इन्हें उचित प्रकार से करते हैं। अधिकतर लोग पहले से भी अधिक तले-भुने पदार्थों का सेवन व्रतों के दौरान करते हैं जिनसे शरीर निरोगी न होकर रोगग्रस्त हो जाता है। व्रतों के दौरान फल, दूध, कंदमूल इत्यादि का सीमित मात्रा में सेवन करना चाहिए। तले भुने, अधिक चर्बीयुक्त व गरिष्ठ वस्तुओं के सेवन से बचना चाहिए।

नवरात्र व्रत – मां दुर्गा, मां लक्ष्मी एवं मां सरस्वती सहित नौ देवियों की पूजा करें।

नवरात्रों में परम्परा के अनुसार नौ दिन चलने वाले नवरात्रों में क्रमशः तीन-तीन दिन तीन देवियों की पूजा होती है।

इस तरह पहले तीन दिन शौर्य की देवी मां दुर्गा, दूसरे तीन दिन धन ” सौभाग्य एवं शांति की देवी मां लक्ष्मी तथा 7वें व आठवें नवरात्र को धन एवं अध्यात्म की प्रतीक मां सरस्वती की पूजा होती है। आठवें या अष्टमी के दिन कंजक पूजा का विधान है। इस दिन दुर्गा स्तुति का पाठ फलदायक है।

महानवमी श्रीराम के पूजन का दिन है।

कई लोग नवमी वाले दिन भी कंजक पूजन करते हैं। इसके अतिरिक्त नौ देवियों का भी पूजन किया जाता है। पूजन का विधान इस तरह है। प्रथम नवरात्र को शैलपुत्री की पूजा, द्वितीय ब्रह्मचारिणी माता, तीसरे नवरात्र को चंद्रघंटा माता का पूजन, चौथे नवरात्र को कूष्मांडा माता का पूजन, पांचवें नवरात्र को स्कंद माता का पूजन, छठे नवरात्र को कात्यायनी माता का पूजन, सातवें नवरात्र को कालरात्रि माता का पूजन, आठवें नवरात्र को

दुर्गाष्टमी, महागौरी माता का पूजन तत्पश्चात् श्री रामनवमी व्रत, इसी तरह नवम् नवरात्र, सिद्धिदात्री माता का पूजन एवं नवरात्र सम्पन्न ।

नौ देवियों को भोग लगाने से क्या फल मिलता है

नवरात्र की पूजा, व्रत में मां दुर्गा के नौ दिनों में विभिन्न भोग लगाए जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार पहले दिन मां को गाय के घी का भोग लगाने से अरोग्य का वरदान मिलता है। दूसरे दिन शक्कर का भोग लगाने से लम्बी आयु का आशीर्वाद तथा तीसरे दिन दूध या दूध की मिठाई का भोग लगा कर ब्राह्मण को दान करने से दुखों से मुक्ति मिलती है।

इसी तरह चौथे नवरात्र में मालपुआ का भोग लगाने से बुद्धि का विकास एवं निर्णय शक्ति बढ़ती है। पांचवें दिन केले का भोग लगाने से शरीर स्वस्थ रहता है। सातवें दिन मां को गुड़ का भोग लगाने से तथा उसे ब्राह्मण को दान करने से सभी दुखों से मुक्ति मिलती है। इसी तरह आठवें नवरात्र को मां को नारियल अर्पित करने से संतान संबंधी परेशानियों से छुटकारा मिलता है।

क्यों जलानीं चाहिए अखंड ज्योति ?

नवरात्रों में घर में अखंड ज्योति जलाने का विधि-विधान है। इससे सुख-समृद्धि का साम्राज्य रहता है एवं हर ओर विजय मिलती है। कहा जाता है कि नवरात्र में दीपक जलाने से घर-परिवार में पितृ-शांति तथा घर-परिवार में सुख-शांति रहती है तथा त्वरित शुभ कार्य सिद्ध होते हैं।

ध्यान रहे कि अखंड ज्योति को पूजन ‘स्थल के आग्नेय कोण में रखा जाता है। सर्वविदित है कि आग्नेय कोण अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। इसी तरह शनि के कुप्रभाव से मुक्ति के लिए तिल के तेल की अखंड ज्योति शुभ मानी जाती है। वास्तु दोष को दूर करने के लिए दोष वाली जगह पर दीपक रखना चाहिए।

क्या करना चाहिए और क्या न करें

नौ दिन उपवास रखना शुभ रहता है। नौ दिन अपने आचार-व्यवहार को शुद्ध रखना चाहिए। नौ दिन क्रमानुसार देवियों का विधिवत् पूजन करें। भोजन सात्विक हो, लहसुन-प्याज का इस्तेमान न करें। हो सके तो दाढ़ी-बाल व नाखून न कटवाएं। मास-मदिरा का प्रयोग न करें।

श्री नवरात्रे व्रत कथा व व्रत की विधि

चमन की श्री दुर्गा स्तुति

श्री दुर्गा स्तुति अध्याय

पहला अध्याय

दूसरा अध्याय

तीसरा अध्याय

चौथा अध्याय

चौथा अध्याय

पांचवा अध्याय

छटा अध्याय

सातवां अध्याय

आठवां अध्याय

नवम अध्याय

दसवां अध्याय

ग्यारहवां अध्याय

बारहवां अध्याय

तेरहवाँ अध्याय

महा चण्डी स्तोत्र
महा काली स्तोत्र
नमन प्रार्थना
माँ जगदम्बे जी आरती
महा लक्ष्मी स्तोत्र
श्री संतोषी माँ स्तोत्र
श्री भगवती नाम माला
श्री चमन दुर्गा स्तुति के सुन्दर भाव
श्री नव दुर्गा स्तोत्र – माँ शैलपुत्री
दूसरी ब्रह्मचारिणी मन भावे – माँ ब्रह्मचारिणी
तीसरी ‘चन्द्र घंटा शुभ नाम –  माँ चंद्रघण्टा
चतुर्थ ‘कूषमांडा सुखधाम’ – माँ कूष्मांडा
पांचवी देवी असकन्ध माता – माँ स्कंदमाता 
छटी कात्यायनी विख्याता – माँ कात्यायनी
सातवीं कालरात्रि महामाया – माँ कालरात्रि
आठवीं महागौरी जगजाया – माँ महागौरी
नौवीं सिद्धि धात्री जगजाने – माँ सिद्धिदात्री
अन्नपूर्णा भगवती स्तोत्र

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