पन्द्रहवाँ अध्याय माघ महात्म्य
राजा कार्तवीर्य बोले-हे भगवन् आपने जो कहा है कि एक माघ स्नान से विकुण्डल पाप रहित हुआ और दूसरे माघ स्नान से स्वर्ग पहुँचा, स्वर्ग कैसे गया? कृपया मुझ से कहिये । दत्तात्रेय जी बोले- हे राजन् ।
जल को नारापण कहा जाता है, क्योंकि वह स्वभाव से निर्मल, पवित्र सफेद, मलनाशक, द्रावक और दाहनाशक होता है । वह समस्त प्राणियों को तारने वाला पुष्ट करने वाला और जीवन देने वाला है, जिस प्रकार ग्रहों में सूर्य, नक्षत्रों में चन्द्रमा श्रेष्ठ है, उसी प्रकार मासों में माघ मास श्रेष्ठ माना जाता है।
माघ मास में सूर्य मकर में प्रवेश करता है, उस समय मोष्पद जल में स्नान करने पर पापी तक स्वर्ग को पा जाते हैं, ऐसा योग दुर्लभ होता है। यदि पूरे माघ मास स्नान करना सम्भव न हो तो केवल तीन दिन स्नान करना श्रेयकर है।
जो प्राणी असमर्थ हों, वह दरिद्रता को नष्ट करने के लिए शक्ति के अनुसार दान अवश्य करें प्राणी की आयु में वृद्धि होती है। मकर राशि में सूर्य के आने से चन्द्रमा की कलाओं की भांति पुण्य बढ़ता है। प्राणी को चाहिए कि वह मनोवांछित फल की कामना के लिये माघ स्नान को अवश्य करें ।
जो विधिपूर्वक स्नान करते हैं, उनके नियम तुम्हें बताता हूँ । व्रती खाद्य पदार्थ को त्याग देते हैं। वे पृथ्वी पर शयन, यज्ञ और तीनों समय विष्णु भगवान का पूजन करते है। अखण्ड दीपक जलाते हैं, अन्नदान करते हैं, वेद ज्ञानी ब्राह्मण को स्वर्ण, वस्त्र दान करते हैं।
माघ मास के अन्त होने पर एकादशी उद्यापन करते है । उनको चाहिये कि वे भगवान विष्णु की पूजा विधि विधान से करें। हे गोविन्द ! हे अविनासी देव, माधव! मुझको माघ स्नान का फल प्रदान करें।
ऐसा कह स्नान करें, वासुदेव, कृष्ण, हरि, मुरारे, माधव आदि नामों का उच्चारण करें। स्नान के लिये तीर्थ जल प्राप्त न हो तो घड़े में रखे जल से स्नान करें। अन्य वस्तुओं के साथ अन्न दान करें। ऐसा करने से प्राणी नरक में नहीं जाता है ।
जो जल को गरम करके स्नान करते हैं, उन्हें छः वर्ष स्नान का, कुये पर स्नान करने से बारहों वर्षो के स्नान का, तालाब स्नान से उसका दूना, नदी स्नान से उसका चौगुना, महानदी स्नान करने पर सौ गुना, संगम स्नान करने पर चार सौ गुना फल प्राप्त होता है । जो माघ स्नान प्रतिदिन करता है, वह हजार मुद्रा व हजार गौ के दान का पुण्य प्राप्त करता है।