भगवती श्री दुर्गा पूजा कैसे करें

श्री दुर्गा पूजा

विप्रवर! अब भगवती श्री दुर्गा पूजा का विधान सुनो, जिसके श्रवण मात्र से घोर मुसीबतें अपने आप भाग जाती हैं।

नवाक्षर-मन्त्र

अब इनके उत्तम नवाक्षर-मन्त्र का वर्णन करता हूं।

सरस्वती बीज (ऐं), भुवनेश्वरी बीज (ह्रीं ) तथा कामबीज (क्लीं ) इन तीनों बीजों का आदि में क्रमशः प्रयोग करके ‘चामुण्डायै’ इस पद को लगाकर, फिर ‘विच्चे’ यह दो अक्षर जोड़ देना चाहिए, ( ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे) यही मनुप्रोक्त नवाक्षर मन्त्र है।

उपासकों के लिए यह कल्पवृक्ष के समान है। इस नवार्ण मन्त्र के ब्रह्मा, विष्णु तथा रुद्र- ये तीन ऋषि कहे जाते हैं। गायत्री, उष्णिग् तथा त्रिष्टुप्-ये तीन छन्द हैं। महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती देवता हैं और रक्तदन्तिका, दुर्गा तथा भ्रामरी बीज हैं।

नन्दा, शाकम्भरी तथा भीमा शक्तियां कही गई हैं। धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष की प्राप्ति के लिए इस मंत्र का प्रयोग किया जाता है।

ऐं ह्रीं क्लीं तीन बीज-मन्त्र चामुण्डायै ये चार अक्षर-तथा विच्चे में दो अक्षर ये ही मन्त्र के अंग हैं। हरेक के साथ नमः, स्वाहा, वषट्, हुम्, वौषट् तथा फट्-ये छः जातिसंज्ञक वर्ण लगाकर शिखा, दोनों नेत्र, दोनों कान, नासिक, मुख तथा गुदा आदि स्थानों में इस मन्त्र के वर्णों का न्यास करना चाहिए। ध्यान इस तरह करें

महाकाली का ध्यान तीन नेत्रों से शोभा पाने वाली भगवती महाकाली की मैं उपासना करता हूं। वे अपने हाथों में खड्ग, चक्र, गदा, बाण, धनुष, परिघ, शूल, भुशुण्डि, मस्तक तथा शंख धारण करती हैं।

वे समस्त अंगों में दिव्य आभूषणों से विभूषित हैं। उनके शरीर की कान्ति नीलमणि के समान है और वे दस मुख तथा दस पैरों से युक्त हैं। कमलासन ब्रह्मा जी ने मधु तथा कैटभ का वध करने के लिए इन महाकाली की उपासना की थी। इस तरह कामबीजस्वरूपिणी भगवती महाकाली का ध्यान करना चाहिए।

महालक्ष्मी का ध्यान-जो अपने हाथों में अक्षमाला, फरसा, गदा, बाण, वज्र, पद्म, धनुष, कुण्डिका, दण्ड, शक्ति, खड्ग, ढाल, घण्टा, मधुपात्र, त्रिशूल, पाश तथा सुदर्शन चक्र धारण करती हैं,

जिनका वर्ण अरुण है और जो लाल कमल पर विराजमान हैं, उन महिषासुरमर्दिनी भगवती महालक्ष्मी का मैं भजन करता हूं।

महासरस्वती का ध्यान जो अपने करकमलों में घण्टा, शूल, हल, शंख, मूसल, चक्र, धनुष तथा बाण धारण करती हैं, कुन्द के समान जिनकी मनोहर कान्ति है, जो शुम्भ आदि दैत्यों का नाश करने वाली हैं, वाणी बीज जिनका स्वरूप है और जो सच्चिदानन्दमय विग्रह से सम्पन्न हैं, उन भगवती महासरस्वती का मैं ध्यान करता हूं।

प्राज्ञ! अब यन्त्र बतलाता हूं, सुनो। छः कोण से युक्त त्रिकोण यन्त्र होना चाहिए। चारों ओर अष्टदल कमल हो । कमल में चौबीस पंखुड़ियां होनी चाहिएं। वह भूगृह से युक्त हो।

इस प्रकार यन्त्र के विषय में चिन्तन करें। शालग्राम, कलश, यन्त्र, प्रतिमा, बाणचिन्ह तथा सूर्य में एकनिष्ठ होकर भगवती की भावना करके पूजा करें। जया तथा विजया आदि शक्तियों से सम्पन्न पीठ पर देवी की अर्चना करना श्रेष्ठ माना गया है। यन्त्र के पूर्वकोण में सरस्वती सहित ब्रह्मा, नैर्ऋत्यकोण में लक्ष्मी सहित श्री हरि तथा वायव्यकोण में पार्वती सहित शम्भु की पूजा करनी चाहिए।

देवी के उत्तर सिंह की और बाईं ओर महिषासुर की पूजा का नियम है। छः कोणों में क्रमशः नन्दजा, रक्तदन्ता, शाकम्भरी, शिवा, दुर्गा, भीमा तथा भ्रामरी की पूजा होनी चाहिए।

आठ दलों में ब्राह्मी, महेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नारसिंही, ऐन्द्री तथा चामुण्डा की अर्चना करें। इसके बाद चौबीस पंखुड़ियों में पूर्व के क्रम से विष्णुमाया, चेतना, बुद्धि, निद्रा, क्षुधा, छाया, पराशक्ति, तृष्णा, शान्ति, जाति, लज्जा, क्षान्ति, श्रद्धा, कीर्ति, लक्ष्मी, धृति, वृत्ति, श्रुति, स्मृति, दया, तुष्टि, पुष्टि, माता तथा भ्रान्ति-इन देवियों की पूजा करनी चाहिए। उसके बाद भूगृहकोण में गणेश, क्षेत्रपाल, वटुक तथा योगिनी की भी बुद्धिमान पुरुष पूजा करें। इसके बाहर वज्र आदि अस्त्रों-शस्त्रों सहित इन्द्र आदि देवताओं की पूजा करें।

इसी रीति से देवी की सावरण (परिकरों-सहित) पूजा होती है। उसके बाद अर्थ पर ध्यान रखते हुए नवार्ण मन्त्र का जप करें। इसके बाद भगवती के सामने सप्तशती स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।

इस स्तोत्र के समान त्रिलोक में दूसरा कोई स्तोत्र नहीं है। पुरुष को चाहिए कि प्रतिदिन इसी स्तोत्र से भगवती श्री दुर्गा को प्रसन्न करने में लगे रहें। ऐसा करने वाला पुरुष धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष का आलय बन जाता है।

विप्र! यह भगवती श्री दुर्गा के पूजन का प्रकार मैं तुमसे बता चुका। इसके प्रभाव से पुरुष कृतार्थ हो जाते हैं। सम्पूर्ण देवता, भगवान श्री हरि, ब्रह्मा, प्रमुख मनुगण, ज्ञाननिष्ठ मुनि, आश्रमवासी योगी और लक्ष्मी आदि देवियां ये सभी भगवती श्री दुर्गा का ध्यान करते हैं।

नवरात्र में मन को सावधान करके भगवती दुर्गा के सम्मुख इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। इससे जगद्धात्री भगवती जगदम्बा अवश्य ही संतुष्ट हो जाती हैं।

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