मेरी लगी श्याम संग प्रीत
मेरी लगी श्याम संग प्रीत
दुनियां क्या जाने
क्या जाने भी क्या जानें
मुझे मिल गया मन का मीत
दुनियां क्या जाने।
मोहन ने ऐसी बंसी बजाई,
गोप गोपियां दौड़ी आई,
लोक लाज कुछ काम न आई,
सबने अपनी सुध बिसाई।
अब बाज उठा संगीत
दुनियां क्या जाने।
मेरी लगी शाम संग………….।
भूल गई कहीं आना जाना,
जग सारा लगे बेगाना
अब तो केवल शाम को पाना,
रुठ जाए तो उन्हें मनाना
अब तो होगी प्यार की जीत
दुनियां क्या जाने
मेरी लगी शाम संग……
मोहन की सुन्दर सी सुरतिया,
मन में बस गई मोहनी मूरतिया,
जब से ओढ़ी शाम चुनरियां,
लोग कहें मैं भई भावरियां
मैं तो गाऊँ खुशी के गीत
दुनियां क्या जाने
मेरी लगी शाम संग………