रामचन्द्र जी पर देवी की कृपा
रामचन्द्र जी पर देवी की कृपा की कथा
जिस समय रामचन्द्र जी. अपनी सेना को साथ लेकर लंका पर चढ़ाई की और समुद्र के तट पर पहुंचे तो उन्होंने समुद्र पर सेतु बांधते समय भगवान शंकर की आराधना की।
उस समय भगवान शंकर ने प्रकट होकर उन्हें विजय का आशीर्वाद देते हुए कहा तुम भगवती दुर्गा की उपासना करो. उनकी कृपा से अवश्य ही विजय प्राप्त होगी।
शिवजी के आदेशानुसार श्री रामचन्द्र जी ने भगवती दुर्गा की आराधना की। उन्होंने देवी पर चढ़ाने को १००८ कमल पुष्प रखे। उनकी भक्ति परीक्षा हेतु देवी ने उन कमल पुष्पों में से एक पुष्प गायब कर दिया।
जब रामचन्द्र जी ने देखा कि एक पुष्प कम है. तो उन्होंने कमल पुष्प के स्थान पर अपने कमल सरीखे एक नेत्र ही निकाल कर भगवती की सेवा में समर्पित करने का निश्चय किया।
इस निश्चय के अनुसार उन्होंने जैसे ही बाण की नोक से अपने नेत्र को निकालना चाहा, वैसे ही भगवती ने साक्षात् प्रकट होकर उनके हाथ से धनुषबाण छीन लिया तथा आशीर्वाद देते हुए यह कहा- “हे रामचन्द्र ! मैने स्वयं ही तुम्हारी भक्ति की परीक्षा लेने को एक पुष्प दृष्टि से ओझल कर दिया था।
अब मैं तुम पर प्रसन्न हूं और तुम्हें वर देती हूं कि तुम रावण पर अवश्य विजय प्राप्त करोगे।” यह सुनकर रामचन्द्र जी ने कहा- “हे माता ! आप मुझे ऐसा उपाय बतायें जिससे मुझे रावण पर सरलता पूर्वक विजय प्राप्त हो।” तब दुर्गा ने कहा- ‘हे रामचन्द्र तुम इस स्थान पर एक यज्ञ करो और उसे कराने के लिए रावण को ही आमन्त्रित करो।
यदि रावण उस यज्ञ में सम्मिलित नहीं होता तो वह अपने ब्राह्मण कर्म से च्युत होने से स्वयं नष्ट हो जायेगा। यदि सम्मिलित हुआ तो यज्ञ की समाप्ति पर वह तुम्हें आशीर्वाद भी देगा। उसका आशीर्वाद ही उसके लिए घातक होगा।”
इतना कह भगवती अन्तर्ध्यान हो गईं। तब रामचन्द्र जी ने वहां यज्ञ की रचना कर अपने एक दूत के द्वारा रावण के पास सन्देश भेजा कि तुम मेरा यज्ञ कराने के लिए आओ।
महापण्डित रावण ने निमन्त्रण स्वीकार किया और यज्ञ कराने के लिए आया। यज्ञ की समाप्ति पर रावण ने स्वयं ही रामचन्द्र जी को आशीर्वाद दिया कि तुमने जिस उद्देश्य से यह यज्ञ किया है, उसमें सफलता प्राप्त करोगे।
इसी आशीर्वाद के फलस्वरूप रामचन्द्र जी को रावण पर विजय पाना सरल हो गया और युद्ध क्षेत्र में रावण की मृत्यु हुई। भगवती की कृपा का फल ऐसा ही होता है।