लक्ष्मी, सरस्वती तथा गंगा का परस्पर शापवश भारतवर्ष में पधारना
लक्ष्मी,सरस्वती,गंगा – भगवती सरस्वती वैकुण्ठ में भगवान श्री हरि के पास रहती हैं। गंगा ने इन्हें शाप दे दिया था।ये भारतवर्ष में अपनी एक कला से पधारी। नदी के रूप में माँ का का अवतरण हुआ। ये पुण्य प्रदान करने वाली, पुण्यरूपा तथा पुण्यतीर्थ स्वरूपिणी हैं।
पुण्यात्मा पुरुषों को चाहिए कि वे इनका सेवन करें, क्योंकि उन्हीं के लिए इनका यहां पधारना हुआ है। मण्डल पर रहने वाले जो मनुष्य इनकी महिमा जानते हुए इनके तट पर अपना शरीर त्यागते हैं, उन्हें बैकुण्ठ में स्थान प्राप्त होता है।
चौमासे में, पूर्णिमा के दिन, अक्षय नवमी और क्षय तिथि को तथा व्यतीपात, ग्रहण या अन्य किसी भी पुण्य के दिन जो पुरुष किसी भी हेतु से श्रद्धापूर्वक इनमें स्नान करता है, वह भगवान श्री हरि का सारूप्य प्राप्त कर लेता है।
जो महान मूर्ख होते हुए भी एक महीने तक प्रतिदिन सरस्वती नदी में स्नान करके इनके मन्त्र का जप करता है, वह कवीन्द्र बन सकता है, इसमें कोई संदेह नहीं। जो मानव सिर के सारे बाल मुड़वा कर लगातार सरस्वती के जल में स्नान करता है, वह दोबारा माता के गर्भ में वास नहीं कर सकता।
इस तरह सरस्वती की महिमा का कुछ वर्णन किया गया है। इस सारभूत महिमा के प्रभाव से सुख तथा कामनाएं सुलभ हो जाती हैं।
शुभप्रदा गंगा ने सरस्वती देवी को क्यों शाप दे दिया ?
भगवान नारायण कहते हैं : नारद! यह प्राचीन कथा मैं तुमसे कहता हूं, सुनो। लक्ष्मी,सरस्वती,गंगा -ये तीनों ही भगवान श्री हरि की पत्नी हैं।
एक बार सरस्वती को यह संदेह हो गया कि श्री हरि मेरी अपेक्षा गंगा से अधिक प्रेम करते हैं। तब उन्होंने श्री हरि को कुछ कड़े शब्द कहे। फिर वे गंगा का क्रोध करके कठोर बर्ताव करने लगीं।
तब शान्तस्वरूपा, क्षमामयी लक्ष्मी ने उनको रोक दिया। इस पर सरस्वती ने लक्ष्मी को गंगा का पक्ष करने वाली मानकर आवेश में शाप दे दिया ‘तुम निश्चय ही वक्षरूपा तथा नदीरूपा हो जाओगी।’
लक्ष्मी ने सरस्वती के इस शाप को सुन लिया, परन्तु वे वहीं शांत बैठी रहीं पर गंगा से यह नहीं देखा गया। उन्होंने सरस्वती को शाप दिया। कहा-“बहन लक्ष्मी! जो तुम्हें शाप दे चुकी है, वह सरस्वती नदी रूपा हो जाए। यह नीचे मर्त्यलोक में चली जाए, जहां पापीजन निवास करते हैं।”
नारद! गंगा की यह बात सुनकर सरस्वती ने उन्हें शाप दे दिया कि तुम्हें भी धरातल पर जाना होगा तथा तुम पापियों के पाप अंगीकार करोगी। इतने में भगवान श्री हरि वहां आ गए। उन्होंने सरस्वती का हाथ पकड़ कर उन्हें अपने समीप प्रेम से बैठा लिया। उसके बाद वे सर्वज्ञानी श्री हरि प्राचीन अखिल ज्ञान का रहस्य समझाने लगे।
भगवान श्री हरि बोले : लक्ष्मी जी से
लक्ष्मी! शुभे! तुम अपनी कला से राजा धर्मध्वज के घर पधारो। तुम किसी की योनि से उत्पन्न न होकर स्वयं भूमण्डल पर प्रकट हो जाना। वहीं तुम वृक्ष रूप से निवास करोगी। ‘शंखचूड़’ नामक एक असुर मेरे अंश से उत्पन्न होगा। तुम उसकी पत्नी बन जाना।
उसके बाद निश्चय ही तुम्हें मेरी प्रेयसी पत्नी बनने का सौभाग्य प्राप्त होगा। भारतवर्ष में त्रिलोक पावनी ‘तुलसी के नाम से तुम्हारी प्रसिद्धि होगी। वरानने! अभी-अभी तो तुम भारती के शाप से भारत में ‘पद्मावती’ नामक नदी बनकर पधारो।
उसके बाद श्री हरि ने गंगा से कहा :
उसके बाद गंगा से कहा : “गंगे! तुम सरस्वती के शाप वश अपने अंश से पापियों का पाप भस्म करने के लिए विश्वपावनी नदी बनकर भारतवर्ष में जाना। सुकल्पिते! भगीरथ की तपस्या से तुम्हें वहां जाना पड़ेगा। धरातल पर तुमको सब लोग भगवती भागीरथी कहेंगे। समुद्र मेरा अंश है। मेरे आज्ञानुसार तुम उसकी पत्नी होना स्वीकार कर लेना।”
इसके पश्चात् श्री हरि ने सरस्वती से कहा :
“भारती! तुम गंगा का शाप स्वीकार करके अपनी एक कला से भारतवर्ष में चलो। तुम अपने पूर्ण अंश से ब्रह्मसदन पर पधार कर उनकी कामिनी बन जाओ, यह गंगा अपने पूर्ण अंश से शिव के स्थान पर चलें।
यहां अपने पूर्ण अंश से केवल लक्ष्मी रह जाएं। क्योंकि परम साध्वी, उत्तम आचरण करने वाली तथा पतिव्रता स्त्री का स्वामी इस लोक में स्वर्ग का सुख भोगता है
परलोक में उसके लिए कैवल्यपद सुरक्षित है। जिसकी पत्नी पतिव्रताहै, वह परम पवित्र, सुखी तथा मुक्त समझा जाता है।”