शीतला माता
शीतला माता की पूजा का पर्व शुरू हो गया है। महालक्ष्मी जहां भूख बढ़ाती हैं वहीं शीतला माता उसे तृप्त करती हैं। धन की देवी जहां महालक्ष्मी हैं
शीतला माता की पूजा का पर्व शुरू हो गया है। महालक्ष्मी जहां भूख बढ़ाती हैं वहीं शीतला माता उसे तृप्त करती हैं। धन की देवी जहां महालक्ष्मी हैं वहीं शीतला माता अन्नपूर्णा हैं।
शीतला माता का पूजन लगातार एक महीना चलता है। यह व्रत चैत्र कृष्ण अष्टमी या चैत्र मास के प्रथम पक्ष में होली के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार अथवा गुरुवार को किया जाता है।
इस व्रत को करने से व्रती के कुल में पीत ज्वर, दाह ज्वर, नेत्र के समस्त रोग, शीतला की फुंसियों के चिन्ह अथवा शीतला जनित दोष दूर हो जाते हैं।
शीतला माता प्रकृति और पर्यावरण की देवी
शीतला माता प्रकृति और पर्यावरण की देवी हैं। उनकी पूजा का अर्थ है प्रकृति की पूजा।
शीतला माता जी को भोग लगाने वाला प्रसाद एक दिन पूर्व ही बना लिया जाता है।
शीतला माता को एक दिन का बासी (शीतल) भोग लगाया जाता है। बसौड़ा के नाम से यह व्रत प्रसिद्ध है। इसमें मिठाई, पूरी, पूआ, दाल, मेवे आदि एक दिन पहले बनाए जाते हैं।
शीतला माता के व्रत वाले दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता
उस जिस दिन व्रत रखा जाता है, उस दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता। मां लक्ष्मी व मां पार्वती का यह मिला-जुला व्रत है। लक्ष्मी जी धन की देवी हैं, तृप्ति भी यही करवाती हैं। महालक्ष्मी केवल धन-धान्य की ही प्रतीक नहीं हैं अपितु उनके अनेकानेक रूप प्रकृति से ही जुड़े हैं।
शीतला माता व्रत पूजा विधि
व्रत में रसोई घर की दीवार पर पांचों अंगुली घी में डुबो कर छापा लगाया जाता है। उस पर रोली एवं चावल चढ़ाकर शीतला माता के गीत गाए जाते हैं।
सुगंधित गंध पुष्पादि से शीतला माता का पूजन कर शीतला स्रोत का पाठ करना चाहिए। रात्रि में दीपक जलाना चाहिए।
एक थाली में रोटी, दही, चीनी, चावल, हल्दी, धूप, जल का गिलास, रोली, मोठ एवं बाजरा रखकर सभी सदस्यों को स्पर्श करवाकर शीतला माता के मन्दिर में चढ़ाना चाहिए।
इस दिन चौराहे पर भी जल चढ़ा कर पूजन करने का विधान है। किसी वृद्धा को भोजन करवाकर दक्षिणा जरूर देनी चाहिए।