श्री अर्गला स्तोत्र प्रारम्भ
श्रीमार्कण्डेयजी बोले-जयन्ती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालनी, दुर्गा, शिवा, धात्री, स्वाहा, स्वधा आदि देवियों को मेरा नमस्कार हो । हे चामुण्डे देवी! समस्त प्राणियों के दुःख निवारण करने वाली आपकी जय हो।
हे सर्व व्यापक देवी कालरात्री ! आपकी जय हो । मधु तथा कैटभ दैत्यों का दलन करने वाली, ब्रह्माजी को वर देने वाली, आपको नमस्कार हो । हे देवी ! आप मुझे सुन्दर रूप, जय, यश दो तथा काम क्रोधादि शत्रुओं का नाश करो । महिषासुर का नाश करने वाली भक्तों की सुखदाता देवीजी को नमस्कार हो ।
मुझे रूप दो, जय दो, यश दो, शत्रुओं का नाश करो । हे रक्तबीज का वध करने वाली देवी और चण्ड मुण्ड असुरों का विनाश करने वाली माता ! मुझे सुन्दर रूप, जय, यश दो, शत्रुओं का वध करो। हे शुम्भ, निशुम्भ, धूम्राक्ष नामी दैत्यों का मद मर्दन करने वाली !
मुझे रूप दो, जय दो, यश दो, शत्रुओं का विध्वंस करो। हे सौभाग्य देने वाली । मुझे रूप, जय, यश दो, शत्रुओं का नाश करो। आपका रूप तथा चरित्र अचिन्त्य है ।
सभी शत्रुओं का आप ही नाश करने वाली हो। मुझे रूप दो, जय दो, यश दो, शत्रुओं का संहार करो हे पाप नाशक चण्डिके ! जो सर्वदा भक्ति पूर्वक आपके चरणों में मस्तक झुकाते हैं उन्हें रूप दो, जय दो, यश दो, शत्रुओं का नाश करो।
हे सभी व्याधियों का नाश करने वाली चण्डिके ! जो आपकी भक्ति पूर्वक स्तुति करते है उन्हें रूप दो, जय दो, यश दो, शत्रुओं का नाश करो। हे चण्डिके ! जो निरन्तर आपकी भक्ति अर्चना करते हैं उन्हें रूप दो जय दो, यश दो, शत्रुओं का नाश करो। हे देवी जी !
आप मुझे सौभाग्य, आरोग्य और परम सुख दो, रूप दो, जय दो, यश दो, शत्रुओं का विध्वंस करो। मेरे शत्रुओं का नाश करके मुझ में बल बढ़ा दो, रूप दो, यश दो, शत्रुओं का नाश करो । हे देवी! मेरा कल्याण कीजिए और उत्तम धन सम्पत्ति दीजिये, रूप दो जय दो, यश दो शत्रुओं का नाश करो, हे माता !
आपके चरणों पर देवता और दैत्य दोनों ही अपने मुकुटों की मणियाँ घिसते रहते हैं कृपा कीजिये, मुझे रूप दो, जय दो, यश दो, शत्रुओं का नाश करो। हे मातेश्वरी ! अपने भक्तों को विद्यावान यशवान लक्ष्मीवान करो ।
रूप दो, जय दो, यश दो, शत्रुओं का नाश करो। बड़े-बड़े अभिमानी दैत्यों के अभिमान चूर्ण करने वाली चण्डिके ! मैं आपको प्रणाम करता हूँ । मुझे रूप दो, जय दो, यश दो, बैरियों का नाश करो। हे चार भुजाओं वाली माता ! चतुर्मुख ब्रह्माजी आपको २२ स्तुति करते हैं, हे परमेश्वरी ! रूप दो, जय दो, यश दो, बैरियों का विध्वंस करो। है मातेश्वरी !
विष्णु भगवान आपको निरन्तर भक्ति पूर्वक स्तुति करते हैं। मुझे रूप दो, जय दो, यश दो, बैरियों का विध्वंस करो। श्री पार्वती के पति महादेव जी से स्तुत्य है परमेश्वरी ! रूप दो, जय दो, यश दो शत्रुओं का नाश करो ।
इन्द्रदेव से पूजित है परमेश्वरौ ! रूप दो, जय दो, यश दो, बैरियों का नाश करो। हे देवीजी आप तो कठोर भुज दण्ड रखने वाले दैत्यों का घमण्ड नाश कर देती हो आप ही रूप दो, बैरियों का नाश करो । हे अम्बिके ! आप अपने भक्तों के लिये अपार आनन्द की वृद्धि करती हो ।
मुझे रूप दो, यश दो, बैरियों का नाश करो। मातेश्वरी जी ! आप मुझे वह पत्नी प्रदान करें जो मेरी इच्छाओं के अनुकूल हो और इस भयानक संसार रूप समुद्र से मुझे तारने बाली हो, उत्तम कुल से उत्पन्न हो ।
जो पुरुष इस स्तोत्र का पाठ करके हो महास्तोत्र कीलक का पाठ करता है वह सप्तशती के पाठ जप से मिलने वाले वर एवं श्रेष्ठ सम्पदा के फल को प्राप्त कर लेता है ।
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