श्री गिरिराज चालीसा – ॥ श्री गोवर्द्धनो जयति ||
बन्दहु वीणा वादिनी, धरि गणपति को ध्यान ।
महाशक्ति राधा सहित, कृष्ण करौ कल्याण ||
सुमिरन करि सब देवगण, गुरु पितु बारम्बार ।
बरनों श्री गिरिराज यश, निज मति के अनुसार ||
जय हो जग बंदित गिरिराजा । ब्रज मण्डल के श्री महाराजा ॥
विष्णु रूप तुम हो अवतारी । सुन्दरता पै जग बलिहारी ॥
स्वर्ण शिखर अति शोभा पामें । सुर मुनि गण दरशन कूँ आयें ॥
शांत कन्दरा स्वर्ग समाना ।जहाँ तपस्वी धरते ध्याना ||
द्रोणागिरि के तुम युवराजा । भक्तन के साधौ हौ काजा ॥
मुनि पुलस्त्यजी के मन भाये । जोर विनय कर तुम कू लाये ॥
मुनिवर संग जब ब्रज में आये । लखि ब्रजभूमि यहाँ ठहराये ||
विष्णु धाम गौलोक सुहावन । यमुना गोवर्द्धन वृन्दावन देव देख मन में ललचाये ।
बास करन बहु रूप बनाये। कोई बानर कोई मृग के रूपा । |
कोऊ वृक्ष कोउ लता स्वरूपा ॥ आनन्द ले गौलोक धाम के ।
परम उपासक रूप नाम के ॥ द्वापर अंत भये अवतारी ।
कृष्णचन्द आनन्द मुरारी ॥ महिमा तुम्हरी कृष्ण बखानी ।
पूजा करिबे की मन ठानी ॥ ब्रजवासी सब लिए बुलाई ।
गोवर्द्धन पूजा करवाई।।पूजन कूँ व्यञ्जन बनवाये ।
ब्रजवासी घर घर ते लाये ॥ ग्वाल बाल मिलि पूजा कीनी ।
सहस भुजा तुमनें कर लीनी ॥ स्वयं प्रकट हो कृष्ण पुजामें ।
माँग माँग के भोजन पामें ॥ लखि नर नारी मन हरषामें ।
जै जै जै गिरिवर गुण गायें || देवराज मन में रिसयाए ।
नष्ट करन ब्रज मेघ बुलाए । छाया कर ब्रज लियौ बचाई |
एकऊ बूँद न नींचे आई ॥ सात दिवस भई बरसा भारी । थके मेघ भारी जल धारी ॥
कृष्णचन्द्र ने नख पै धारे । नमो नमो ब्रज के रखवारे ।।
करि अभिमान थके सुरराई । क्षमा माँग पुनि अस्तुति गाई ||
त्राहिमाम् मैं शरण तिहारी । क्षमा करो प्रभु चूक हमारी ॥ बार बार बिनती अति कीनी ।
सात कोस परिकम्मा दीनी ॥ संग सुरभि ऐरावत लाये ।
हाथ जोड़ कर भेंट गहाये || अभय दान पा इन्द्र सिहाये ।
करि प्रणाम निज लोक सिधाये ॥ जो यह कथा सुनें चितलावें ।
अन्त समय सुरपति पद पावें ॥गोवर्द्धन है नाम तिहारौ I
करते भक्तन कौ निस्तारौ ॥ जो नर तुम्हरे दर्शन पावें ।
तिनके दुक्ख दूर है जावें ॥ कुण्डन में जो करें आचमन ।
धन्य धन्य वह मानव जीवन || मानसी गंगा में जो न्हावें ।
सीधे स्वर्ग लोक कूँ जावें ॥ दूध चढ़ा जो भोग लगावें ।
आधि व्याधि तेहि पास न आयें ॥ जल फल तुलसी पत्र चढ़ामें ।
मनवांछित फल निश्चय पामें ॥ जो नर देत दूध की धारा । भरौ रहै तिनको भण्डारा ॥
करै जागरण जो नर कोई । दुख दरिद्र भय ताहि न होई ||
श्याम शिलामय निज जन त्राता । भक्ति मुक्ति सुरपुर के दाता ||
पुत्र हीन जो तुम कूँ ध्यावैं । ताकूँ पुत्र प्राप्ति है जावैं ॥
दंडौती परिकम्मा जो करहीं ।
ते सहजहि भवसागर तरहीं ॥ कलि में तुम सम देव न दूजा । सुर नर मुनि सब करते पूजा ॥
दोहा
जो यह चालीसा पढ़ें, सुनें शुद्ध चितलाय । सत्य सत्य यह सत्य है, गिरवर करें सहाय ॥
क्षमा करहूँ अपराध मम्, त्राहिमाम्, गिरिराज | ‘देवकीनन्दन’ शरण में गोवर्द्धन महाराज ॥