श्री रामचरितमानस की चमत्कारी चौपाइयां

श्री रामचरितमानस की चमत्कारी चौपाइयां

विपत्ति दूर करने के लिए

राजिव नयन धरे धनु सायक |

भक्त विपत्ति भंजन सुखदायक ||

सहायता के लिए
मोरे हित हरि सम नहि कोऊ ।

एहि अवसर सहाय सोई होऊ।।

सब काम बनाने के लिए
वंदौ बाल रुप सोई रामू |

सब सिधि सुलभ जपत जोहि नामू ||

वश मे करने के लिए

सुमिर पवन सुत पावन नामू |

अपने वश कर राखे राम ||

संकट से बचने के लिए

दीन दयालु विरद संभारी |
हरहु नाथ मम संकट भारी ||

विघ्न विनाश के लिए

सकल विघ्न व्यापहि नहि तेही ।

राम सुकृपा बिलोकहि जेहि ||

रोग विनाश के लिए

राम कृपा नाशहि सव रोगा |

जो यहि भाँति बनहि संयोगा ||

बुखार दूर करने के लिए

दैहिक दैविक भोतिक तापा |

राम राज्य नहि काहुहि व्यापा | |

दुःख नाश के लिए

राम भक्ति मणि उर बस जाके |

दुःख लवलेस न सपनेहु ताके ||

खोई चीज पाने के लिए

गई बहोरि गरीब नेवाजू |

सरल सबल साहिब रघुराजू ||

अनुराग बढाने के लिए

सीता राम चरण रत मोरे |

अनुदिन बढे अनुग्रह तोरे ||

घर मे सुख लाने के लिए

जै सकाम नर सुनहि जे गावहि |

सुख सम्पत्ति नाना विधि पावहिं ||

सुधार करने के लिए

मोहि सुधारहि सोई सब भाँती |

जासु कृपा नहि कृपा अघाती ||

विद्या पाने के लिए

गुरू गृह पढन गए रघुराई |

अल्प काल विधा सब आई

सरस्वती निवास के लिए

जेहि पर कृपा करहि जन जानी |

कवि उर अजिर नचावहि बानी ||

निर्मल बुद्धि के लिए

ताके युग पदं कमल मनाऊँ |

जासु कृपा निर्मल मति पाऊँ ||

मोह नाश के लिए

होय विवेक मोह भ्रम भागा |

तब रघुनाथ चरण अनुरागा | |

प्रेम बढाने के लिए

सब नर करहिं परस्पर प्रीती |

चलत स्वधर्म कीरत श्रुति रीती ||

प्रीति बढाने के लिए

बैर न कर काह सन कोई |

जासन बैर प्रीति कर सोई ||

सुख प्राप्ति के लिए

अनुजन संयुत भोजन करही |

देखि सकल जननी सुख भरहीं ||

भाई का प्रेम पाने के लिए

सेवाहि सानुकूल सब भाई |

राम चरण रति अति अधिकाई ||

बैर दूर करने के लिए

बैर न कर काहू सन कोई |

राम प्रताप विषमता खोई ||

मेल कराने के लिए

गरल सुधा रिपु करही मिलाई |

गोपद सिंधु अनल सितलाई ||

शत्रु नाश के लिए

जाके सुमिरन ते रिपु नासा |

नाम शत्रुघ्न वेद प्रकाशा | |

रोजगार पाने के लिए

विश्व भरण पोषण करि जोई |

ताकर नाम भरत अस होई ||

इच्छा पूरी करने के लिए

राम सदा सेवक रूचि राखी |

वेद पुराण साधु सुर साखी ||

पाप विनाश के लिए

पापी जाकर नाम सुमिरहीं |

अति अपार भव भवसागर तरहीं । ।

अल्प मृत्यु न होने के लिए

अल्प मृत्यु नहि कबजिहूँ पीरा |

सब सुन्दर सब निरूज शरीरा ||

दरिद्रता दूर के लिए

नहि दरिद्र कोऊ दुःखी न दीना |

नहि कोऊ अबुध न लक्षण हीना ||

प्रभु दर्शन पाने के लिए

अतिशय प्रीति देख रघुवीरा |

प्रकटे ह्रदय हरण भव पीरा ||

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