शुम्भ निशुम्भ दानव बली तत्सम दौहृद मौर्य। दर्पदलन गौरी भई , अनुपम जिसका शौर्य ।।
महामाया का चरित्र
सरस्वती देवी का प्रकट होना- राजा ने कहा-हे स्वामिन्! चण्ड मुण्ड, आदि के मर जाने पर शुम्भ, निशुम्भ ने फिर क्या किया। अब आप कृपा करके पाप विनाशिनी महामाया का चरित्र सुनाते जाइये।
ऋषि बोले- चण्ड मुण्डादि दैत्यों का मारा जाना सुनकर तब कालकेय, मौर्य, दोहृद बड़े-बड़े दैत्यों को युद्ध करने के लिये भेज दिया और स्वयं भी रथ पर सवार होकर युद्ध के लिये चल पड़ा।
निशुम्भ का देवी भगवती को ललकारना – सरस्वती देवी का प्रकट होना
युद्ध के बाजे बज उठे। सभी योद्धा अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित होकर युद्ध भूमि में पहुँच गये। तब जगदम्बा ने शत्रु की सेना को देखा, अपने धनुष पर चिल्ला चढ़ाकर बाणों की वर्षा करने लगी। घन्टा बजा दिया। जगदम्बा का वाहन सिंह भी गर्जने लगा।
उस समय हिमाचल वासिनी देवी को देखकर निशुम्भ बोला-हे मालती के पल्लव के समान देह धारिणी विलासवती! तुम्हारा कोमल शरीर देखकर हमें दुःख होता है। तू किस प्रकार कोमल शरीर से युद्ध कर सकेगी।
तब चण्डिका ने ललकार कर कहा
तब चण्डिका ने कहा-अरे नीच! अब बातें बहुत न कर, या तो युद्ध कर या पाताल में प्रवेश कर। यह सुनकर निषुम्भ क्रोध में आकर बाण वर्षा करने लगा। इधर चण्डिका जी ने भी अपने बाण, परश. त्रिशूल आदि से उत्तर दिया। उस युद में काल देवी ने असंख्यों घोड़े काट डाले। वाहन सिंह ने तो असंख्य दैत्यों के प्राण हर लिये। रुधिर की नदी बह चली।
इस विकराल युद्ध को देखकर निशुम्भ विचार में पड़ गया
उसने सोचा कि बड़े आश्चर्य की बात है कि मैं एक नारी से पराजित हो जाऊँगा इस काल की बलिहारी है जो दरिद्रों को धनी एवं धनियों को दरिद्र बना देता है। इस नारी ने तो मूली गाजर की भाँति मेरी गारी सेना काट डाली। अस्तु, देखा जायगा।
तब सुन्दर रथ में सवार बोकर स्वयं देवी के सम्मुख जाकर बोले-हे देवी! यदि युद्ध करना हो तो मेरे साथ युद्ध कर, इन विचारे सिपाहियों को मारने से क्या प्रयोजन।
निशुम्भ का मारे जाना
इतना कहकर निषुम्भ बाण बरसाने लगा। देवी ने सभी शस्त्र बाणों द्वारा काट दिये। तब दैत्य ने ढाल तलवार उठालो और देवी की ओर लपका, उसी समय चण्डिका ने उसको काट डाला। फिर विष बुझे, शत्रुओं का रुधिर चाटने वाले बाण छोड़े जिससे शीघ्र ही निशुम्भ मरकर पृथ्वी पर गिर गया।
निशुम्भ को मरता देख शुम्भ का युद्ध के लिए आना
दैत्यराज शुम्भ ने अपने छोटे भाई निशुम्भ को मरता देख लिया तब स्वयं रथ पर सवार होकर युद्ध के लिये आ गया। उसको आया देखकर चंडिका ने भयानक अट्टहास किया। जिससे दैत्य गण घबड़ा गये। उस समय शुम्भ ने प्रज्वलित शक्ति चंडिका के ऊपर. फेंकी। महामाया ने अपने बाणों से उसके हजारों टुकड़े कर डाले
और क्रोध में आकर त्रिशूल उस दैत्य की छाती में घुसेड़ दिया, जिससे छाती फट गई। ऐसा होने पर भी हाथ में चक्र लेकर वह दैत्य देवी को मारने दौड़ा। चण्डिका ने त्रिशूल से वह चक्र काट डाला। इस प्रकार मत्य पाकर उस दैत्य ने परमगति प्राप्त की।उन दोनों दैत्यों के मर जाने पर बाकी बचे-खुचे दैत्य पाताल में प्रवेश कर गये। देवताओं को प्रसन्नता हुई।