सरस्वती वन्दना
मात शारदे, विद्या वारिधे, करूँ मैं तेरा आवाहन , कुन्द इन्दू सम मुखारविन्द है, कंठ सुशोभित हार धवल। शुभ्र वस्त्र आभूषित तन है, आसन तेरा श्वेत कमल , धिय जड़ता माँ हरो सरस्वती कर वीणावर दण्ड विमल।द्विव्य ज्योति सम द्युतिमान हो, आत्म ज्ञान दो बुद्धि नवल , सिद्धि दात्री, भाग्यविधात्री, करती हो भवभय भंजन ।।
ब्रह्मा विष्णु महेश देव ऋषि, नित्य करत तेरा बन्दन, चरण शरण दो मुझ सेवक को, करूँ मैं तेरा आराधन। पाप, ताप, सन्ताप हरो माँ, सुन मेरा करुण क्रन्दन , दया दान दो मुझे शारदा, दुःख शोक का करो हरण। महिमा मण्डित, सुरगण बन्दित, तुम हो जग का आलम्बन ॥
कमल चरण में करूँ क्या अर्पण, सुलभ नहीं पूजा सामान , मन्त्र भक्ति अरु कर्म काण्ड का, मुझे नहीं है कुछ भी ज्ञान।। विसर्जन पूजन अरु आवाहन, आता नहीं मुझे गुण गान , चंचल रहता चित्त और मन धरता नहीं तुम्हारा ध्यान।। मंगल करणी, बाधा हरणी, करूँ मैं तुमको अभिवादन ।।
स्मरण मात्र से दु:ख, शोक, जग का हरता प्रताप तेरा , अधम नीच पापी जन तारे, अब आया है वार मेरा। अधम कुपुत्र तुम मात सुमाता, जननी मैं बालक तेरा जैसा भी हूँ तेरा हूँ, कर अपराध क्षमा मेरा।। कहे कल्यान, दो क्षमादान माँ काट गौणं का भव बन्धन।।