श्री दुर्गा अष्टमी व्रत विधि
श्री दुर्गा अष्टमी व्रत विधि :- यह त्यौहार अश्विन शुक्लपक्ष अष्टमी को आता है। इस दिन दुर्गा देवी की पूजा की जाती है। भगवती दुर्गा को उबाले हुए चने, हलुआ, पूड़ी, खीर, पूआ आदि का भोग लगाया जाता है। बहुत से व्यक्ति इस महाशक्ति को प्रसन्न करने के लिए हवन आदि भी करते हैं। जहां शक्ति को अधिक मान्यता दी जाती है वहां बहुत बड़ा उत्सव मनाया जाता है। इस दिन कन्या लांगुरा जिमाये। देवी जी की जोत करे।
श्री दुर्गा अष्टमी व्रत विधि कथा …
हिन्दुओं के प्राचीन शास्त्रों के अनुसार दुर्गा देवी नौ रूपों में प्रकट हुई हैं। उन सब रूपों की पृथक-पृथक कथा हैं।
जय दुर्गा व्रत कथा
भीह दुर्गा सम पूजा नहि दुर्गा समीपम । नहि दुर्गा, समज्ञाने नही दुर्गा सपम ।।
हे मां शक्ति! आज जब मैं आपकी व्रत कथा के लिये अपनी लेखनी उठा रहा हूँ तो मेरी आंखों के सामने आप के आने के रूप घूम रहे हैं और मैं इस श्लोक की महिमा को याद कर रहा हूँ।
भवानि स्तोतु स्वां प्रभवति चतुभिर्न वदनै । प्रजानमी शानि स्त्रिपुरम भवन पंचमिरपि ।।
न पडूभिः सेनानी दर्शशि तमु खैर प्यहिपति । स्तदा न्येपां केपा कथम कथम स्मिन्न वसर ।।
इस श्लोक का अर्थ इस प्रकार है:-
मां भवानी औरों की तो व्याप्त ही क्या है सारी सृष्टि के रचयिता, प्रजापति ब्रह्मा जी अपने चारों मुखों से भी आपकी स्तुति नहीं कर सकते।
त्रिपुर हर शंकर जी पांच मुख रहते हुए भी इस विषय में मूक हो कर रह जाते हैं।
“छः मुख वाले कार्तिरूद जी भी मन मार कर बैठ जाते है। ”
हे मां ! आप की महान शक्ति के सामने तो सब हरि हैं आप इस समय स्वयं ही आशीर्वाद दो मुझे शक्ति दो कि मैं अपनी इस लेखनी से आपकी महिमा जो अपरमपार है, उस महिमा को आपके भक्तों तक पहुंचा सकूँ।
वे सब जो आपके उपासक हैं, उन्हें संक्षिप्त में आपकी इस व्रत कथा की शक्ति का ज्ञान दे सकूं जिससे कि वे आपकी उपासना का फल प्राप्त करके दुःखों से मुक्ति पा सके।
यह सब के सब दीन दुःखी अपने ही अज्ञान के कारण अंधेरों में भटक रहे हैं, इस घोर कलियुग में आपकी उपासना के सिवा पाप से बचने और मोक्ष प्राप्त करने का और कोई मार्ग नहीं है।
बस उसी मार्ग को दिखाने का प्रयास में करने चला हूँ। मुझे आशीर्वाद दो मां दुर्गा, शक्ति दो।
दुर्गा पूजन सामग्री
आम आदमी नर हो या नारी आज के कलियुग में भयभीत होकर मां दुर्गा की उपासना के लिये व्रत तो रखते हैं, परन्तु उन को यह पता नहीं रहता कि मां का व्रत उस समय तक निषफल है जब तक आप उसे पूर्ण विधि के साथ नहीं करते, मेरे कहने का भावार्थ यह है कि व्रत रखने से पूर्व आप को जो मां दुर्गा का पूजन करना है उसकी विधि तो आप को हर हाल में पता होनी चाहिए।
आओ हम पहले लाए पूजन सामग्री
सिंहासन पर लाल रंग का कपड़ा बिछा कर वहां सर्वप्रथम मां दुर्गा का एक बड़ा चित्र उस पर ऊंचा करके रखें।
कलश के लिये एक मिट्टी का बना मटका अथवा किसी द्रव्य का बना मटके जैसा बर्तन।
“चौमुखी दीपक” ।
रोली, चन्दन, मौली, कपूर, केशर, सिन्दूर, नारियल, गंगा जल, पान, सुपारी, लौंग, छोटी इलायची, प्रसाद लड्डू, बर्फी, बेसन की बूंदी आदि कुछ भी हो ।
गाय का घी, गाय का दूध, गाय का ही दही, यज्ञोपवीत चावल, शहद, पिसी हुई हल्दी, कुश का आसन, गुलाल, काजल, कंठ सूत्र, धूप, रूई, अगरबत्ति, मौसम के जो फल मिले। मां दुर्गा का हस्त्र, इत्र, श्रृंगार का सामान, लाल चुनरियां, विल्व वस्त्र, फूल, तुलसी पत्र, पंच रत्न, सवोसिधि, सप्तयुक्त का सामान इत्यादि।
पूजन
मां दुर्गे के भक्तों के पूजा आरम्भ करने से पूर्व शुद्ध जल में स्नान करके शुद्ध आसन पर बैठे और अपने साथ जल पूजन सामग्री आदि लेकर बैठे।
“वैभव श्री दुर्गा व्रत” कथा की एक पुस्तक भी अवश्य रखें और आसन पर बैठकर माथे पर चंदन का टीका लगाये।
अपने मुख को पूर्व की ओर करके शरीर शुद्धि के लिये चार बार आचमन करें। अब इस श्लोक का पाठ करें।
ॐ ऐं आत्मवत्वं शीघयामि नम् स्वाहा ।
ॐ हीं विद्यां तत्वं शीघयामि ‘नमः’ स्वाहा ।।
ॐ कलीं शिव तत्वं, शीघयामि नमः स्वाहा ।
ॐ ऐ ही कलीं सर्वतत्वं, शोघयामि नमः स्वाहा ।।
इस हवन सामग्री की आम में डालते हुए जब हवन पूजन समाप्त हो जाने पर हाथ में लाल रंग के फूल लेकर यह मंत्र पढें:
ॐ विष्णु विष्णु, ॐ नमः परमातनेः श्री पुराण पुरुषेत्वमस्य, श्री विष्णु राज्ञया, पर्वतमान स्यार्ध ब्राह्मणों द्वितीथयाद्धे श्री श्वेतवाराह कल्प।
और अंत में।
इत्याधारभ्य साविार्णभविता मनुः इत्यंत दुर्गा सप्तशती पाठ तदन्ते न्यास विधि सहित नवर्ष मंत्रयं ।
सम्पूर्ण पाठ के लिये देखें “दुर्गा सप्तशती” ।
इस प्रकार से संकल्प करते हुए देवी का ध्यान करें और देवी मां दुर्गा का ध्यान कर के पंचीप चार की विधि से पुस्तक की पूजा करें।
अब मां दुर्गा को प्रणाम करें। फिर शापो द्वार करें, इसके अनेक प्रकार हैं। 1
ॐ ह्रीं कलीं, श्री क्रां क्रीं चंडिका देव्यै। शाप नाशानु ग्रह, कुरु कुरु: स्वाहा ।
इस मंत्र का आदि और अंत में सात बार जप करें इसे शापो द्वार मंत्र कहते हैं।
इसके पश्चात् अनन्तर उल्कीलन मंत्र का पाठ किया जाता है इसका पाठ आदि और अंत में इक्कीस-इक्कीस बार होता है, मंत्र इस प्रकार है।
ॐ श्री कली ह्रीं सप्तशती, चंडिके उत्कीलन कुरु कुरु स्वाहा ।
इस पाठ के पश्चात् आदि और अंत में सात-सात बार मृत संजीवनी विद्या का जप करना चाहिए जो इस प्रकार है:
ॐ ह्रीं ह्रीं वं वं, ऐं, ऐं
मृत संजीवनी विधी मृतमुत्थापय
क्रों, ह्रीं ह्रीं, वं स्वाहा।
मारी विकल्प के अनुसार, सप्तशती शाप विमोचन का मंत्र इस प्रकार है।
ॐ श्रीं श्रीं कलीं हु, ॐ ऐ क्षोभय महेथ उल्कीलय, उल्कीलय, उल्कीलय, उल्कीलय ठं, ठं।
इस मंत्र का आरंभ में ही एक सौ आठ बार पाठ करें। पाठ के अंत में नहीं बल्कि रुद्रयामल महामंत्र के अंतर्गत दुर्गा कल्प में कहे हुए चंडिका विमोचन मंत्रों का आरंभ में ही पाठ करना चाहिए।
मंत्र इस प्रकार है।
ॐ अस्य श्री चंडिका ब्रह्मा वशिष्ठ विश्वा मित्र शाप विमोचन मंत्रस्य, वशिष्ठ नारद संवाद ।
सामवेदाधिपति ब्राह्मण ऋषयः
सर्वेश्वर्यकारिणी श्री दुर्ग देवता
चरित्रत्रयं वीजं ह्रीं शक्तिः
त्रिगुणात्मर स्वरूप चंडिका शाप विमुकौ
मम संकल्पित कार्य सिद्धर्थे जपिविन योग।
कुछ मंत्र पाठ
ॐ ह्रीं रीं रेव स्वरूपिण्यै मधु कैट ममर्दिन्यै ब्रह्म वशिष्ठ विश्वामित्र शापाद विमुतण भव्व।
इस प्रकार से मां दुर्गे का पूजन करके हम व्रत कथा को प्रारम्भ करते है।
श्री नवरात्रे व्रत कथा व व्रत की विधि
चमन की श्री दुर्गा स्तुति
- सर्व कामना पूर्ण करने वाला पाठ- चमन की श्री दुर्गा स्तुति
- श्री दुर्गा स्तुति पाठ विधि
- श्री दुर्गा स्तुति प्रारम्भ
- प्रसिद्ध भेंट माता जी की (मैया जगदाता दी)
- सर्व कामना सिद्धि प्रार्थना
- श्री दुर्गा स्तुति प्रार्थना ( श्री गणेशाय नमः)
- श्री दुर्गा कवच
- श्री मंगला जयन्ती स्तोत्र
- श्री अर्गला स्तोत्र नमस्कार
- कीलक स्तोत्र
- विनम्र प्रार्थना
श्री दुर्गा स्तुति अध्याय
- पहला अध्याय
- दूसरा अध्याय
- तीसरा अध्याय
- चौथा अध्याय
- पांचवा अध्याय
- छटा अध्याय
- सातवां अध्याय
- आठवां अध्याय
- नवम अध्याय
- दसवां अध्याय
- ग्यारहवां अध्याय
- बारहवां अध्याय
- तेरहवाँ अध्याय