Hare Krishna ! हरे कृष्ण महामंत्र का अर्थ
प्रत्येक मनुष्य को हर पल वह आनंद चाहिए जिसका कभी क्षय एवं अंत न हो। आनंद के आगार अर्थात् समुद्र श्रीकृष्ण ही हैं।
हमें आनंद चाहिए तो उन श्रीकृष्ण से हमें हमारा मन, बुद्धि, अहंकार एवं चेतना को जोड़ना होगा।
उदाहरणार्थ, यदि हमें सरोवर से पानी चाहिए तो हमें एक पाइपलाइन के द्वारा सरोवर से संपर्क स्थापित करना होगा जिससे कि हमें जल की सतत प्राप्ति हो सके उसी प्रकार यदि हमें आनंद चाहिए तो भगवान् श्रीकृष्ण जो स्वयं रसानंद हैं, उनके साथ हमें हरे कृष्ण महामंत्र रूपी पाइपलाइन से हमेशा जुड़ा रहना पड़ेगा।
दीक्षा के समय गुरुदेव हरे कृष्ण महामंत्र का अर्थ समझाते हैं ताकि शिष्य सही अर्थ का चिंतन करते हुए जप के माध्यम से वास्तविक रसानंद का आस्वादन कर सके।
श्रील भक्तिविनोद ठाकुर हरे कृष्ण महामंत्र जप करने का प्रयोजन बताते हुए कहते हैं कि हम व्रजधाम में राधाकृष्ण की नित्य प्रेममयी सेवा करने का अवसर प्राप्त कर सकें, यह हरे कृष्ण महामंत्र जप करने का प्रयोजन है।
एक भक्त के लिए हरे कृष्ण महामंत्र का जप श्रीकृष्ण के दिव्य नाम की पवित्र ध्वनि में तल्लीन होना है। श्रील भक्तिविनोद ठाकुर ‘नाम भजन’ में बताते हैं कि किस प्रकार जप में तल्लीन हुआ जा सकता है।
नाम जपते समय आपको निरंतर श्रीकृष्ण के नाम, रूप, लीला, गुण, धाम का स्मरण करना चाहिए और स्वयं को दयापात्र समझ कर रोते हुए श्रीकृष्ण का नाम जप करना चाहिए। जिससे हम श्रीकृष्ण में हमारे लिए कृपा उत्पन्न कर पाएँ।
सच्चिदानंद श्रील भक्तिविनोद ठाकुर द्वारा महामंत्र की व्याख्या
हे हरे-हे हरे। हे राधारानी! मेरे चित्त को हर कर इस भवबंधन से विमुक्त कर दीजिये।
हे कृष्ण-हे कृष्ण! मेरे चंचल चित्त को अपनी ओर आकृष्ट कर लीजिये।
हे हरे-हे हरे! मेरे चित्त को हर कर अपने स्वाभाविक माधुर्य से जोड़ दीजिये।
हे कृष्ण-हे कृष्ण! अपने भक्तिभाव वाले भक्तों से भजन ज्ञान दान करवाकर मेरा चित्त शुद्ध कर दीजिये।
कृष्ण-हे कृष्ण! आपके नाम, रूप, लीला, गुण, धाम आदि में मेरी निष्ठा बनी रहे।
हे कृष्ण- हे कृष्ण! आपके नाम, रूप, लीला, गुण, धाम आदि में मेरी रूचि उत्पन्न हो ।
हे हरे-हे हरे! मुझे अपनी प्रेममयी सेवा करने योग्य बना लीजिये।
हें हरे-हे हरे! मुझे सेवा के योग्य बनाकर अपनी सेवा का
आदेश दीजिये। हे हरे-हे हरे! अपने श्रेष्ठ भक्तों के साथ अपनी अभीष्ट लीला का श्रवण कराइए।
हे राम-हे राधिकारमण! अपनी प्रियतमा श्रीमती राधिका के सहित गोलोक में अभीष्ट लीला का श्रवण कराइए ।
हे हरे-हे राधिके! अपने प्रेष्ठ श्रीकृष्ण के साथ अपनी अभीष्ट लीला के दर्शन कराइए।
हे राम हे राम! अर्थात् हे राधिकारमण! अपनी प्रियतमा
श्रीराधिका के साथ अपनी वांछित लीलाओं का दर्शन कराइए ।
हे राम-हे रमण ! मुझे कृपया अपने नाम, रूप, लीला, गुण, धाम आदि के स्मरण में नियुक्त कर लीजिये।
हे राम हे राम! मुझे आपकी सेवा के योग्य बना लीजिये। हे हरे-हे हरे! मुझ दीन-हीन पर कृपा करके मेरे साथ यथायोग्य क्रीड़ा कीजिये।
हे हरे-हे हरे! मेरे साथ क्रीडा कीजिये और अपने चरणों में लगा लीजिये।
श्रील रघुनाथ दास गोस्वामीपाद द्वारा महामन्त्र की व्याख्या
एक बार श्रीमती राधारानी का मन अपने प्राणप्रियतम श्रीकृष्ण के विरह में अत्यंत विह्वल हो उठा। अपनी विरह वेदना दूर करने के लिए श्रीमती राधिका हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हुए श्रीकृष्ण का ध्यान करने लगीं।
श्रीमती राधारानी आगे दोहराती है कि हे कृष्ण। आप अपने नाम श्रवण मात्र से अपने माधुर्य से मेरा चित्त हर रहे हैं।
कृष्ण शब्द का अर्थ
कृष् शब्द का अर्थ है सर्वाकर्षक और ण का अर्थ है आनंददायक। अर्थात् सच्चिदानन्द स्वरूप सर्वाधिक परम आनंद देने वाले हैं। जो मुझे आकर्षित कर रहे हैं।
हे हरे हे हरि। आप अपने वंशीवादन से मेरा धैर्य, लज्जा, गंभीरता एवं भय हर लेते हैं।
हे कृष्ण हे कृष्ण! आपके दिव्य अंगों की मादक गंध मुझे अपने घर से बलात् खींच कर व्रज के कुजों में ले जाती है।
हे राम हे राम। आप स्वच्छंदतापूर्वक मेरे रथ रमण करते हैं।
यहाँ पर श्रील रघुनाथदास गोस्वामीपाद द्वारा महामंत्र की व्याख्या संक्षिप्त रूप से प्रस्तुत की गई है।
“चैतन्य महाप्रभु हमें शिक्षा देते हैं कि हमें जन्म-जन्मांतर तक भगवान् से केवल उनकी सेवा की भिक्षा मांगनी चाहिए। हरे कृष्ण महामंत्र का वास्तविक अर्थ यही है। जब हम “हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे” जपते हैं तब हम वस्तुत: भगवान् एवं उनकी शक्ति हरा को संबोधित करते हैं।
हरा कृष्ण की अंतरंगा शक्ति हैं, श्रीमती राधारानी अथवा लक्ष्मी। जय राधे! यह दैवी प्रकृति है और भक्तगण दैवी प्रकृति श्रीमती राधारानी का आश्रय ग्रहण करते हैं।
हरे कृष्ण महामंत्र के आरंभ में हम सर्वप्रथम श्रीकृष्ण की अंतरंगा शक्ति हरे को संबोधित करते हैं।
इसलिए हम कहते हैं, “हे राधारानी! हे हरे! हे भगवद्शक्ति!” जब हम किसी को इस प्रकार संबोधित करते हैं, तब प्रायः वह कहता है, “कहिए, आपको क्या चाहिए?” उत्तर है, “कृपया मुझे अपनी सेवा में संलग्न करें।”
हमारी प्रार्थना यही होनी चाहिए। हमें यह नहीं कहना चाहिए, “हे भगवद्शक्ति! हे श्रीकृष्ण! कृपया मुझे धन दें। कृपया मुझे एक सुंदर पत्नी दें। कृपया मुझे अनेक अनुयायी दें। कृपया मुझे पद-प्रतिष्ठा दें। कृपया मुझे अध्यक्षता दें।” ये सब भौतिक लालसाएँ हैं, जिनसे बचना चाहिए।
महामंत्र का शाब्दिक अर्थ एवं तात्पर्य
हरे – श्रीमती राधारानी (भगवान् की दिव्य शक्ति)
कृष्ण-सर्वाकर्षक परम पुरुषोत्तम भगवान् राम- भगवान् कृष्ण, जो आनंद के भंडार हैं (श्रीकृष्ण का एक नाम राधारमण है अर्थात् श्रीमती राधारानी को आनंद देने वाले)
“हे श्रीमती राधारानी! हे सर्वाकर्षक आनंद आगार, भगवान् श्रीकृष्ण ! कृपया मुझे अपनी प्रेममयी सेवा में प्रवृत्त कीजिये। “
‘हरा’ शब्द भगवान् की शक्ति का सम्बोधन है, कृष्ण और राम शब्द स्वयं भगवान् के सम्बोधन हैं।
कृष्ण और राम का अर्थ है, परम आनंद और ‘हरा’ का अर्थ है भगवान् की परम आह्लादिनी शक्ति सम्बोधन के लिए इसे हरे कहते हैं। भगवान् की परम आह्लादिनी शक्ति हमें भगवान् तक पहुँचने में सहायता प्रदान करती है।
बहिरंगा शक्ति माया भी भगवान् की विविध शक्तियों में से एक है और हम जीव भी भगवान् की तटस्था शक्ति हैं; जीव, माया से श्रेष्ठ माना जाता है। जब श्रेष्ठ शक्ति निकृष्ट शक्ति के संपर्क में आती है तो परस्पर विरोधी अवस्था उत्पन्न हो जाती है, किन्तु जब तटस्था शक्ति ‘हरा’ के संपर्क में आती है तो यह अपनी सामान्य आनंद की अवस्था में स्थित हो जाती है।
हरे, कृष्ण और राम-ये तीन शब्द महामंत्र के दिव्य बीज हैं। कीर्तन, भगवान् और उनकी शक्ति के लिए आध्यात्मिक पुकार है ताकि भगवान् और यह शक्ति बद्ध जीवात्मा की रक्षा करें।
यह कीर्तन ठीक उस बच्चे के रूदन की तरह है, जो माँ के लिए पुकार रहा हो। माँ ‘हरा’ भक्त को परमपिता भगवान् की कृपा प्राप्त करने में सहायता प्रदान करती हैं, और भगवान् मंत्र का निष्ठा से कीर्तन करने वाले भक्त के सामने प्रकट हो जाते हैं।
कलह और दंभाचरण के इस युग में आध्यात्मिक अनुभूति के लिए महामंत्र के समान अन्य कोई साधन नहीं है।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||
हरे कृष्ण महामंत्र के अर्थ के संबंध में श्रील प्रभुपाद ने इस प्रकार भी निर्देश दिये हैं
ज्योतिर्मयीः ..हरे कृष्ण जप कीजिए हरे राम के साथ हम इस मंत्र में राम की बात क्यों कर रहे हैं?
श्रील प्रभुपाद: राम भी भगवान् हैं, भगवान् का अन्य नाम । राम का अर्थ होता है “जो रमण करता है”, कृष्ण का अर्थ होता है “जो आकर्षित करता है”, इसलिए भगवान् परम भोक्ता हैं, इसलिए वह राम कहे जाते हैं और भगवान् सबसे ज्यादा आकर्षक हैं। वह सभी को आकर्षित करते हैं, इसलिए वह कृष्ण कहलाते हैं। इसलिए नाम भगवान् के गुण पर होते हैं।
तुम्हारे प्रश्न के सम्बन्ध में, “हरे राम में राम का क्या अर्थ है? क्या यह बलराम है अथवा भगवान् रामचंद्र?” तुम इसे दोनों तरीके से ले सकती हो, क्योंकि रामचंद्र और बलराम में कोई अंतर नहीं है।
सामान्यतः इसका अर्थ कृष्ण होता है, क्योंकि राम का अर्थ होता है भोक्ता। इसलिए चाहे रामचंद्र हों, बलराम हों अथवा कृष्ण हों, सभी विष्णु तत्त्व हैं और हमेशा आनंद करते हैं। शक्ति तत्त्व अथवा जीव तत्त्व हमेशा भोग किए जाते हैं।
हमारी स्थिति हमेशा अधीन रहने की है। यदि हम इस स्थिति में रहते हैं और अपनी छोटी सी स्वतंत्रता का उचित उपयोग करते हैं, तब हम हमेशा प्रसन्न रहते हैं। लेकिन कृत्रिम रूप से, यदि हम स्वतंत्र बनना चाहते हैं और परम भोक्ता की नकल करते हैं, तब यह भ्रम है। भौतिक जीवन का अर्थ है- स्वयं के भोग्या होने की नित्य स्थिति में स्थित रहना।
यह हरे कृष्ण महामंत्र भगवान् की शक्ति और स्वयं भगवान् को सम्बोधन करता है, जप करने वाले भक्त को उसकी भोग्या बनने की नित्य स्थिति में रखने के लिए। प्रार्थना है, “मेरे भगवान्, ओ भगवान् की परम शक्ति, कृपा करके मुझे अपनी सेवा में लगाए रखें”।
हरिनाम जप के समय एक भक्त का भाव क्या होना चाहिए ?
इस विषय पर श्रील प्रभुपाद कहते हैं कि, “हमारे गोस्वामीगण समस्त वृन्दावन में क्रंदन करते हुए श्रीकृष्ण को ढूंढ रहे थे। अतः हमें भी गोस्वामियों के पदचिह्नों का अनुसरण करना है, कि किस प्रकार कृष्ण और राधारानी को वृन्दावन और अपने हृदय में खोजें।
यही श्रीचैतन्य महाप्रभु की भजन प्रक्रिया है: विरह भाव, विप्रलंभ सेवा। विरह का अनुभव करें। जितना अधिक आप कृष्ण से विरह का अनुभव करते हैं उतना आपको समझना चाहिए कि आप भक्ति में प्रगति कर रहे हैं। विरह में प्रगति करें और अनुभव करें। तब सब सम्पूर्ण हो जायेगा। यही श्रीचैतन्य महाप्रभु की शिक्षा है। “
‘श्रीचैतन्य महाप्रभु, वे एक संन्यासी हैं, उनकी कोई अभिलाषाएँ नहीं हैं। फिर वे क्यों गोविंद के लिए रो रहे हैं? उन्होंने समस्त संसार का त्याग कर दिया है और वे संन्यासी बन गए हैं। फिर वे क्यों गोविंद के लिए रो रहे हैं? यही वास्तविक अभिलाषा है। गोविंद-विरहेण मे। गोविंद की अभिलाषा और न केवल गोविंद की अभिलाषा बल्कि उसके बाद पुनः जीवन, पुनः वृन्दावन, पुनः गोपियाँ, पुनः नृत्य, पुनः प्रसाद सेवन, पुनः सब कुछ। यह वास्तविक अभिलाषा है। “
Hare Krishna ! हरे कृष्ण सारांश
हरे कृष्ण महामंत्र में तीन बीज हैं: हरे, कृष्ण और राम हरे का अर्थ है- माता हरा (राधारानी)। हरा को जब हम संबोधित करते हैं तो संस्कृत व्याकरण के अनुसार हरे बन जाता है। हरे राधारानी का सम्बोधन है और हम उनको संबोधित करते हैं कि मुझे श्रीकृष्ण की दिव्य, प्रेममयी और भक्तिमयी शुद्ध सेवा प्रदान कीजिये।
कृष् शब्द का अर्थ है सर्वाकर्षक और ण का अर्थ है सम्पूर्ण आनंददायक। श्रीकृष्ण का अर्थ है सर्वाकर्षक, सर्वानन्ददायक पूर्ण पुरुषोत्तम परात्पर परमेश्वर । राम का अर्थ है जो स्वयं रमण करते हैं एवं भक्तों को करवाते हैं। अतः हरे कृष्ण महामंत्र का अर्थ है- हे हरे (राधारानी)! मुझे श्रीकृष्ण की प्रेमाभक्तिमयी सेवा दें।