शुक्र ग्रह
शुक्र ग्रह दैत्यों का गुरु है एवं शुक्र को शुभ ग्रह माना गया है। यह काम, प्रेम और सौंदर्य का देवता है। आग्नेय दिशा का अधिपति है।
इसके द्वारा पत्नी-सुख, सौंदर्य, कामेच्छा, वाहन-सुख,संगीत और काव्य आदि का विचार किया जाता है। जन्म कुण्डली में अकेला यह अशुभ प्रभाव jiनहीं देता।
शुक्र तुला राशि पर बली होता है और जीवन में प्राय: २५ से २८ वर्ष की अवस्था में यह अपना शुभ अथवा अशुभ प्रभाव प्रकट करता है।
जन्मकुंडली में शुक्र निर्बल, अस्त अथवा वक्री हो तो जातक को अनेक प्रकार के रोगों का सामना करना पड़ता है।
अशुभ शुक्र त्वचा रोग उत्पन्न करता है। जातक को कांतिहीन व निस्तेज बनाता है। मानसिक अस्वस्थता बढ़ती है। अशुद्ध शुक्र के कारण पति को कष्ट होता है।
सांसारिक-सुख प्राप्त करने के लिए शुक्र का प्रबल होना अनिवार्य है। इसकी स्वराशियां वृष एवं तुला हैं। बाहरवें घर में बैठा शुक्र सभी प्रकार के भौतिक साधन जुटा देता है।
व्रत का नियम
शुक्रवार का दिन संतोषी माता का माना गया है। संतोषी माता सब कामनाओं को पूर्ण करने वाली है। माता के व्रत को करने वाला कथा को कहते या सुनते समय गुड़ और भुने हुए चने अपने हाथ में रखें।
कथा के पूर्व कलश को जल से भरें। उसके ऊपर गुड़, चना से भरा हुआ कटोरा रखें।
कथा समाप्त होने पर हाथ का गुड़-चना गाय को खिलाएं और कलश पर रखा हुआ गुड़-चना सब को प्रसाद रूप में बांट दें, कलश का जल घर में सब जगह पर छिड़क दें और बचा हुआ जल तुलसी में डाल दें।
एक समय भोजन करें। व्रत के दिन ध्यान रखें कि घर में खटाई का प्रयोग न हो। प्रसाद भी उन्हें ही दें, जिन्होंने खट्टी वस्तु को ग्रहण न किया हो ।
शुक्रवार का व्रत करने से दुःख-दरिद्रता दूर हो जाती है एवं जातक को सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं।
यन्त्र एवं मन्त्र
शुक्र यंत्र धारण करने से शुक्र पीड़ा शांत को शुक्र होती है। सुख-समृद्धि एवं मान-सम्मान में वृद्धि होती है।
स्वाति नक्षत्रगत शुक्रवार यंत्र की रचना भोजपत्र पर सफेद चंदन की स्याही तथा अनार की कलम से करनी चाहिए तथा यंत्र को चांदी के कवच में बंद करके गले में धारण करना चाहिए।
मंत्र : ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः पहले १६ हज़ार मंत्र का जप कर उसे सिद्ध करें और फिर इस मंत्र का नित्य ग्यारह माला जप करें। मंत्र का जप शुक्रवार से प्रारंभ करें। कन्याओं को भोजन कराएं।
दान व स्नान
दूध, दही, चावल, श्वेत माला, श्वेत पुष्प, श्वेत अश्व या प्रतीक खिलौना, रंग-बिरंगा वस्त्र, सुगंधित द्रव्य, हीरा, सुवर्ण, चांदी, श्वेत चंदन, दक्षिणा और मिश्री के दान से शुक्रजनित पीड़ा का शमन होता है।
मूली के बीज, इलायची, जायफल, मैनसिल, पीपरामूल और केसर मिश्रित जल से स्नान करने से भी शुक्र का अशुभ प्रभाव नष्ट हो जाता है तथा सुख का आगमन होता है।
स्वामी पूजन
शुक्र ग्रह की स्वामिनी लक्ष्मी हैं। कामनाओं की पूर्ति के लिए लक्ष्मी (धन) की आवश्यकता होती है। सांसारिक सुख का अर्थ ही है—धन और ऐश्वर्य से युक्त होना । कीर्ति भी धन होती है।
‘ऐं श्रीं ह्रीं क्लीं’ यह लक्ष्मी का चतुराक्षर बीज मंत्र है ।
१२ लाख मंत्रों के जप से इसकी सिद्धि प्राप्त होती है । जप के बाद लाल कमल के पुष्पों से १२ हजार मंत्रों का होम करने से लक्ष्मी स्वयं मूर्तरूप लेकर भक्त पर प्रसन्न होती हैं। प्रसन्न लक्ष्मी शुक्र ग्रह की प्रतिकूल दृष्टि को अनुकूल बना देती हैं।
रत्न धारण
शुक्र का रत्न हीरा है। शुक्र जिस कुंडली में शुभ भाव का स्वामी हो तथा शुक्र लग्नेश ग्रह का मित्र हो, उसे हीरा धारण करना चाहिए। हीरा शुक्रवार के दिन चांदी या प्लेटिनम की अंगूठी में पहना जाता है।
टोटके व उपाय
व्रत रखें। अपने भोजन का एक भाग निकालकर पहले गाय को खिलाएं। ज्वार या चने का चारा दान करें ।
सरस्वती पूजा करें। दहीं, मिष्ठान का भोग लगा कर प्रसाद रूप में बांटें।
तुलसी के पौधे में शुद्ध घी का दीपक जलाएं।