राहु ग्रह
राहु उग्र स्वभावी व शत्रुनाशी ग्रह है। यह दक्षिण दिशा का स्वामी तथा विनाशवृत्ति को | लेकर संचरण करने वाला ग्रह है। इसे चांडाल भी कहा गया है। इसका वर्ण धुएं जैसा व वाहन शेर है।
कन्या राशि पर इसका आधिपत्य स्वीकार किया गया है। सामान्यतया यह जिस भाव में बैठता है, वहां की उन्नति को रोकता है। प्रायः ४२ से ४८ वर्ष की अवस्था में यह अपना विशेष प्रभाव दिखाता है।
इसके द्वारा दुःख, दुर्भाग्य, संकट, राजनीति, चिंता, साहस, और विध्वंसात्मक प्रवृत्ति तथा विलासिता आदि का प्रभाव रहता है।
यन्त्र एवं मन्त्र
इस मंत्र को धारण करने से राहु पीड़ा का निवारण होता है। सुख-समृद्धि, पराक्रम व मान सम्मान में वृद्धि होती है। राहु का यंत्र ग्यारह तोले भार के चांदी के पत्र पर अंकित कराना
चाहिए। तदुपरांत यंत्र को किसी सुरक्षित और पवित्र स्थान पर रखकर नित्य इसका पूजन-दर्शन करना चाहिए। चांदी के अभाव में राहु यंत्र को लोहे के पत्र पर भी अंकित कराया जा सकता है।
मंत्र : ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः
जब राहु अशुभ फल प्रदान कर रहा हो तो उपरोक्त मंत्र का ग्यारह माला नित्य जप किया जाना चाहिए। मंत्र का जप किसी बुधवार के दिन से ही आरंभ करना चाहिए।
दान व स्नान
राहु के निवारण हेतु सरसों का तेल, सरसों, काले तिल, नीले रंग के पुष्प, कंबल, सीसा, लोहे का कोई शस्त्र, घोड़ा या प्रतीक खिलौना आदि वस्तुएं नीले वस्त्र में बांधकर, छाज या सूप में रखकर शनिवार के दिन कर्मकांडी ब्राह्मण को दानस्वरूप दें।
इसके अतिरिक्त कस्तूरी, गजदंत, तारपीन, लोबान तथा मोथा मिश्रित जल से स्नान करने पर भी राहु के प्रकोप से मुक्ति मिल जाती है।
स्वामी पूजन
जातक को मयूरवाहिनी सरस्वती का ध्यान करते हुए ‘ॐ ऐं वाग्देव्यै विद्महे कामराजाय धीमहि । तन्नो देवी प्रचोदयात्।’ इस सरस्वती गायत्री मंत्र का २४ लाख जप कर दशमांश का हवन करें। मां सरस्वती अरिष्टों का निवारण करती है। मंगलों की वर्षा करती है।
रत्न धारण
गोमेद धारण करना लाभकारी होगा। रत्न धारण करते समय, ‘ॐ रां राहवे नमः’ मंत्र का जप करें। गोमेद के साथ माणिक्य, मूंगा और मोती धारण न करें।
टोटके व उपाय
नारियल, खोटा सिक्का एवं कच्चा कोयला जल में प्रवाह करें।
जातक काले कपड़े न पहने। शयनकक्ष के पर्दे, फर्नीचर व बिस्तर लाल हो तो अच्छा रहेगा।
कुत्ते को मीठी रोटियां खिलाएं। किसी कन्या के विवाह में ५ बर्तन स्टील या चांदी के दें।
● एकादशी का व्रत रखें। पीपल या तुलसी की जड़ में दूध अर्पण करें।
o चावल, जौ का दान करें एवं खीर कन्याओं को दें ।
राहू के अनिष्ट से तेज़ बुखार आता है, शत्रु बढ़ते हैं, व्यर्थ भटकना पड़ता है, मानसिक संतुलन ठीक नहीं रहता, ऐसे में :
जौ के दाने दूध से धोकर चलते पानी में बहाएं।
जौ के दाने सिरहाने रखें एवं प्रात: पक्षियों
को खिलाएं।
क्षय रोग होने पर जौ के कुछ दाने गोमूत्र से धोकर व सुखा कर लाल कपड़े से बांध कर अपने पास रखें।
● मुकद्दमेबाजी से तंग आ गए हों तो स्वयं के वजन के बराबर कोयले पानी में बहाएं।
पंचम स्थान में राहू होने पर पति-पत्नि एवं संतान सुख में बाधा होने पर अपनी पत्नि से विधि पूर्वक पुनः विवाह करें एवं घर के प्रवेश द्वार पर चांदी का स्वास्तिक बनाएं।