ग्यारहवाँ अध्याय माघ महात्म्य
यमदूत ने कहा- हे वैश्य पुत्र! धर्मराज ने जिस गूढ़ रहस्य को मुझे स्वयं बताया है, उसे ध्यान देकर सुनो। महात्मा पुरुषों के निकट यम के दूत भूलकर भी नहीं जाते हैं।
जो विष्णु भगवान की आराधना करते हैं, यमदूत उनके पास जाने का साहस नहीं कर सकते ।
यमुना जी के भाई यम का आदेश है कि वे दूत वैष्णवों के समीप जाने का साहस न करें। जो प्राणी किसी भी रीति से श्रीहरि की आराधना करते हैं।
वे यदि पापचार भी करते हों, तो उनके पास यमदूत नहीं आते। जिस प्राणी के घर जाकर वैष्णव भोजन करता है, वह घर पवित्र हो जाता है।
वैष्णवों के संगत में आने मात्र से ही प्राणियों के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यह बिल्कुल सत्य है कि वैष्णव स्वर्ग को जाता है।हे तात! जो ब्राह्मण होकर भी विष्णु का भक्त नहीं होता, वह चाण्डाल के समान है।
जो शूद्र होकर भी विष्णु भक्त है, वह सदैव पूजनीय है। विष्णुभक्त के पितर स्वतः तर जाते हैं। जो इन विष्णु भक्तों की सेवा करता है अथवा उनसे प्रीति करता है, वे भी दिव्य लोक पाते हैं।
जो प्राणी मरते समय ‘गोविन्दाय नमो नमः मंत्र का जाप करते हुए प्राण त्यागता है उसे यमलोक के दर्शन नहीं होते।
जो प्राणी ‘ओं नमोभगवते वासुदेवाय’ द्वादशाक्षर मन्त्र का जाप करते है, जो प्राणी ‘श्रीकृष्णः शरणं मम अथवा ‘ओं नमो नारायण:’ इन अष्टाक्षरी मन्त्रों का जाप करते हैं, वे परम वैष्णव कहे जाते हैं।
ऐसे प्राणी समस्त सुखों को भोगकर अंत समय वैष्णव रूप धारण करके विष्णुलोक में निवास करते हैं ।