सोलहवाँ अध्याय माघ महात्म्य
दत्तात्रेय जी बोले- हे राजन्! प्रजापति ने बड़े -२ पाप नष्ट करने के लिये प्रयाग की रचना की है। तीर्थ राज प्रयाग का महात्म्य बड़ा ही पवित्र है ।
श्वेत और नील जल के संगम पर स्नान करने से प्राणी के महान पाप भी मात्र जल स्पर्श से नष्ट हो जाते हैं। गंगाजी का श्वेत जल, यमुना जी का नील जल और सरस्वती के श्वेत जल से बना यह संगम महान पुण्य देने वाला है।
भगवान विष्णु को प्रयागराज परम प्रिय है। जो प्राणी यहाँ माघ स्नान करते हैं, वे अनेक सुखों को भोगकर भगवान विष्णु के लोक को जाते हैं ।
जो इस संगम जल को स्पर्श मात्र करता है, उसके पुण्यों की गणना चित्रगुप्त भी नहीं कर सकते। सौ वर्ष तक निराहार व्रत का फल केवल तीन दिन माघ मास में संगम में स्नान के बराबर होता है।
माघ में नित्य स्नान का फल सूर्यग्रहण के समय कुरुक्षेत्र में सहस्र तोला स्वर्ण दान के समान है। माघ में प्रयाग स्नान करने का फल सहस्त्रों राजसूर्य यज्ञों के फल से भी ज्यादा है।
माघ मास में संसारभर के तीर्थ और सारी नदियां स्नान के लिये आती हैं। त्रिवेणी के जल में स्नान करने पर जन्म-जन्मान्तर के पाप नष्ट हो जातें हैं। गंगा जल का स्नान कुरुक्षेत्र के समान फल देने वाला है।
काशी में गंगा स्नान उससे सौ गुणा फल देता है। प्रयाग का स्नान काशी स्नान से सौ गुणा अधिक फल देता है।उत्तर वाहिनी गंगा यमुना का संगम दर्शन मात्र से ही महाफल देता है एवं ब्रह्महत्या जैसे पाप नष्ट हो जाते है।
संगम स्नान करोड़ों जन्म के पापों को नष्ट करने वाला है त्रिवेणी में स्नान करने के लिए माघ मास में ब्रह्मा, विष्णु, महेश, रुद्र, आदित्य, मरुदगण गन्धर्व, लोकपाल, यक्ष, किन्नर,मेना (हिमालय की पत्नी) अणमादि सिद्ध, ब्रह्माणी, पार्वती, लक्ष्मी, शची, अदिति, दिति, समस्त देवनारियां नाग पत्नियाँ, धृताची, मेनका, रम्भा, उर्वशी, तिलोत्तमा एवं पितर गण इस कलिकाल में भी गुप्त रूप से स्नान के लिए आते हैं।
माघ मास में त्रिवेणी में तीन दिन स्नान का फल अश्वमेध यज्ञ से कई गुना अधिक है। हे राजन्! पापात्मा राक्षस की मुक्ति के हेतु कांचनमालिनी ने अपने माघ स्नान का फलदिया था ।