पहला अध्याय कार्तिक माहात्म्य
नैमिषारण्य में वास करने वाले शौनकादि ८८ हजार ऋषियों ने श्री सूतजी से कहा- हे ब्रह्मन्, आप हमारी इस घोर कलियुग से रक्षा करने के लिए कोई सरल उपाय बतायें।
उनका यह प्रश्न सुनकर श्री सूतजी कहने लगे कि हे ऋषियो !
भगवान् के चरणों में तुम्हारी अटल भक्ति देखकर मैं तुमसे कार्तिक माहात्म्य की कथा कहता हूँ,
जिसके सुनने मात्र से मनुष्य के सब पाप नाश होकर वैकुण्ठ वास हो जाता है।
आप . सावधान होकर सुनिए।एक समय नारदजी ब्रह्मलोक में जाकर सारे जगत् के कर्त्ता, श्री ब्रह्माजी से विनीत भाव से पूछने लगे कि हे पितामह!
कृपा करके कोई धर्मोपदेश की ऐसी सुन्दर कथा कहिए जो सब पापों का नाश करने वाली हो।
तब ब्रह्माजी कहने लगे कि हे पुत्र ! भगवान् के चरणों में तुम्हारी ऐसी प्रीति देखकर मैं तुमसे कार्तिक मास का माहात्म्य कहता हूँ,
जिसके सुनने मात्र से मनुष्य के सब पाप नाश हो जाते हैं और वह वैकुण्ठ का अधिकारी हो जाता है।
कार्तिक मास भगवान् को अति प्रिय है। इसमें किया हुआ व्रत, दान, नियम तथा कीर्तन अनंत फल देने वाला होता है।
क्योंकि इस मास में किये हुए भगवत् कृत्य से बढ़कर कोई यज्ञ तथा तप नहीं है। अतः सारे संसार की भलाई के लिए तुमने अति सुन्दर प्रश्न किया है,
मैं इस कथा को तुमसे कहता हूं। तुम सावधान होकर इसकी विधि सुनो।
व्रती मनुष्य प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त (लगभग चार बजे ) उठकर, शौचादि से निवृत्त होकर १२ अंगुल लम्बी सुगंधित वृक्ष की दातुन ।
परन्तु श्राद्ध के दिन, सूर्य तथा चन्द्रग्रहण के दिन, एकम्, अमावस, नवमी, छठ, एकादशी तथा रविवार को दातुन न करे।
जिस दिन दातुन न करनी हो उस दिन पानी से १२ कुल्ले करके मुँह को खूब अच्छी तरह से साफ कर लेवे ।
जब दो घड़ी रात्रि रह जाय तो काले तिल, चन्दन, चावल, फूल या कुशा लेकर तालाब, कुंड,
नदी या संगम तथा किसी तीर्थ स्थान में जाकर भगवान् से प्रार्थना करे कि ‘ भगवन् आपकी और श्रीलक्ष्मीजी की प्रसन्नता के लिए मैं कार्तिक मास में स्नान करूंगा,
इस प्रकार संकल्प करके श्री गंगाजी, शिव, सूर्य और विष्णु भगवान् का ध्यान करके, नाभिपर्यंत जल में प्रवेश करके अच्छी तरह से स्नान करे।
फिर जल से बाहर आकर देवता, ऋषि और पितरों का तर्पण करे।
स्नान के पश्चात् बकरी तथा भेड़ की धूलि से बचना चाहिए तथा छींक, थूक, कुत्ता, कौआ, ऊंट, उल्लू, शूकर का स्पर्श न करे।
इनसे छू जाय तो फिर स्नान करना चाहिए। असत्य तथा नीच से वार्ता नहीं करनी चाहिए।
इसके पश्चात् षोडशोपचार विधि से भगवान् का पूजन करे, भगवान् को अर्ध्य देवे और प्रार्थना करे कि भगवान् श्री राधा सहित मेरे इस अर्घ्य को ग्रहण करें।
इस प्रकार प्रार्थना करके सोलह चीजें (१ आवाहन, २ पाद्य, ३ अर्घ्य, ४ आचमन, ५ स्नान, ६ वस्त्र, ७ चंदन, ८ अक्षत, ९ पुष्प, १० धूप, ११ दीप, १२ नैवेद्य, १३ ताम्बूल, १४ पूगीफल, १५ प्रदक्षिणा और १६ नमस्कार )
भगवान् की मूर्ति को अर्पण करके तुलसी मंजरी से भगवान् का पूजन करना चाहिए। इसी को षोडशोपचार पूजन कहते हैं।