तेतीसवाँ अध्याय कार्तिक माहात्म्य
राजा पृथु कहने लगे कि हे नारदजी ! अब आप कृपा करके कार्तिक व्रत का उद्यापन विधि सहित कहिये।
तब नारदजी कहने लगे कि कार्तिक शुक्ला चतुर्दशी को कार्तिक के व्रत की संपूर्णता के निमित्त उसका उद्यापन करना चाहिए।
सारे घर में गोबर का चौका लगावे, तुलसी के ऊपर मंडप बनावे ।
द्वारों पर मिट्टी के चार द्वारपाल बनावे, जिनका नाम पुण्यशील, सुशील, जय तथा विजय रखे।
तुलसी के समीप सर्वतोभद्र चक्र बनावे।
उसके पास पंचरन युक्त कलश रखे।
श्री लक्ष्मी- नारायण की सोने की मूर्ति बनावे, फिर नवग्रह, उपग्रह, दश दिक्पाल तथा पंच लोकपाल आदि स्थापित करे।
सर्वप्रथम स्वस्तिवाचन करके गणेश एवं विष्णु आदि देवताओं का षोडशोपचार विधि से श्रद्धापूर्वक पूजन करे।
भगवान् को सुन्दर पीले रंग के रेशमी वस्त्र पहिनावे, फिर शैयादान करे।
ब्राह्मणों को भोजन करावे, गौ की पूजा करके गौदान करे।
एक ब्राह्मण को सपत्नीक भोजन करावे, दोनों को वस्त्राभूषण, पात्र तथा दक्षिणा देकर सन्तुष्ट करे।
फिर चरण स्पर्श करके उनका आशीर्वाद ग्रहण करे। यह सब विधिपूर्वक तथा श्रद्धा सहित करने से सभी व्रतों का पूर्ण फल प्राप्त होता है