महालक्ष्मी चालीसा
प्राचीन काल में महिषासुर नाम का एक दैत्य था। उसने समस्त राजाओ को हरा कर पृथ्वी और पाताल पर अधिकार कर लिया। स्वर्ग पर अधिकार करने के लिए उसने देवताओं पर चढ़ाई कर दी।
देवताओं ने अपनी रक्षा के लिए भगवान विष्णु और भगवान शंकर की स्तुति की। उनकी स्तुति से भगवान शंकर और भगवान विष्णु जी प्रसन्न हुए।
उनके शरीर से एक तेज पुंज निकला, जिसने महालक्ष्मी का रूप धारण कर लिया। इन्हीं महालक्ष्मी ने महिषासुर दैत्य को युद्ध में परास्त कर देवताओं के कष्टों को दूर किया।
महालक्ष्मी चालीसा एक भक्ति गीत है जो महालक्ष्मी माता पर आधारित है।महालक्ष्मी चालीसा एक लोकप्रिय प्रार्थना है जो 40 छन्दों से बनी है। महालक्ष्मी माता के भक्त अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिये इस चालीसा का पाठ करते हैं।
॥ दोहा ॥
जय जय श्री महालक्ष्मी, करूँ मात तव ध्यान । सिद्ध काज मम किजिये, निज शिशु सेवक जान॥
॥ चौपाई ॥
नमो महालक्ष्मी जय माता, तेरो नाम जगतविख्याता॥
आदि शक्ति हो मात भवानी। पूजत सब नर मुनि ज्ञानी॥
जगत पालिनी सब सुख करनी। निज जनहित भण्डारण भरनी॥
श्वेत कमल दल पर तव आसन। मात सुशोभित है पद्मासन॥
श्वेताम्बर अरू श्वेता भूषण श्वेतही श्वेत सुसज्जित पुष्पन॥
शीश छत्र अति रूप विशाला । गल सोहे मुक्तन की माला ॥
सुंदर सोहे कुंचित केशा । विमल नयन अरु अनुपम भेषा ॥
कमलनाल समभुज तवचारि । सुरनर मुनिजनहित सुखकारी॥
अद्भूत छटा मात तव बानी। सकलविश्व कीन्हो सुखखानी॥
शांतिस्वभाव मृदुलतव भवानी। सकल विश्वकी हो सुखखानी॥
महालक्ष्मी धन्य हो माई। पंच तत्व में सृष्टि रचाई ॥
जीव चराचर तुम उपजाए। पशु पक्षी नर नारी बनाए॥
क्षितितल अगणित वृक्ष जमाए। अमितरंग फल फूल सुहाए ॥
छवि विलोक सुरमुनि नरनारी। करे सदा तवजय-जय कारी॥
सुरपति औ नरपत सब ध्यावैं। तेरे सम्मुख शीश नवावैं॥
चारहु वेदन तब यश गाया। महिमा अगम पार नहिं पाये ॥
जापर करहु मातु तुम दाया । सोइ जग में धन्य कहाया ॥
पल में राजाहि रंक बनाओ। रंक राव कर बिमल न लाओ ॥
जिन घर करहु माततुम बासा। उनका यश हो विश्वप्रकाशा ॥
जो ध्यावै से बहु सुख पावै । विमुख रहे हो दुख उठावै॥
महालक्ष्मी जन सुख दाई।ध्याऊं तुमको शीश नवाई॥
निज जन जानीमोहीं अपनाओ। सुखसम्पति दे दुख नसाओ॥
ॐ श्री-श्री जयसुखकी खानी । रिद्धिसिद्ध देउ मात जनजानी ॥
ॐह्रीं-ॐ ह्रीं सब व्याधिहटाओ । जनउन विमल दृष्टिदर्शाओ॥
ॐ क्लीं ॐ क्लीं शत्रुन क्षयकीजै । जनहित मात अभय वरदीजै॥
ॐ जयजयति जयजननी। सकल काज भक्तन के सरनी॥
ॐ नमो-नमो भवनिधि तारनी । तरणि भंवर से पार उतारनी॥
सुनहु मात यह विनय हमारी। पुरवहु आशन करहु अबारी ॥
ऋणी दुखी जो तुमको ध्यावै। सो प्राणी सुख सम्पत्ति पावै ॥
रोग ग्रसित जो ध्यावै कोई। ताकी निर्मल काया होई॥
विष्णु प्रिया जय-जय महारानी । महिमा अमित न जाय बखानी॥
पुत्रहीन जो ध्यान लगावै।पाये सुत अतिहि हुलसावै॥
त्राहि त्राहि शरणागत तेरी । करहु मात अब नेक न देरी ॥
आवहु मात विलम्ब न कीजै । हृदय निवास भक्त बर दीजै॥
जानूं जप तप का नहिं भेवा । पार करो भवनिध वन खेवा॥
बिनवों बार-बार कर जोरी। पूरण आशा करहु अबमोरी ॥
जानि दास मम संकट टारौ । सकल व्याधि से मोहिं उबारौ॥
जो तव सुरति रहै लव लाई। सो जग पावै सुयश बड़ाई॥
छायो यश तेरा संसारा । पावत शेष शम्भु नहिं पारा ॥
गोविंद निशदिन शरण तिहारी। करहु पूरण अभिलाष हमारी॥
॥ दोहा ॥
महालक्ष्मी चालीसा, पढ़ें सुनै चित लाय। ताहि पदारथ मिलै, अब कहै वेद अस गाय ॥