शौर्य – परीक्षा
कौरव और पांडव राजकुमारों ने शस्त्र विद्या तो सीख ही ली थी, शास्त्रों का ज्ञान भी प्राप्त कर लिया था| वे सब वयस्क हो गए थे, जनता में अपना वर्चस्व स्थापित करने लगे थे। कौरव और पांडव दोनों हस्तिनापुर के विशाल साम्राज्य के दावेदार थे।
दोनों का समान भाग था, पर दुर्योधन अपनी कुटिलता के कारण इस बात को नहीं मानता था| वह कौरवों में सबसे बड़ा था। उसके पिता धृतराष्ट्र के हाथों में शासन की बागडोर थी। अत: वह अपने को ही सबकुछ मानता था।
केवल इतना ही नहीं, वह समय-समय पर पांडवों का निरादर और उपहास भी किया करता था |पांडव बड़े ही सुशील और सत्प्रवृत्ति के थे।उनकी दृष्टि धन और राज्य की ओर अधिक नहीं थी। वे धन और राज्य से धर्म को अधिक महत्व देते थे।
यद्यपि दुर्योधन उनके प्रति वैर भाव रखता था, किंतु वे दुर्योधन को भी अपना भाई ही समझते थे। जनता में कौरवों की उपेक्षा पांडवों का बड़ा नाम था| इसका कारण यह था कि वे बड़े शूरवीर थे| जनता उन पर गर्व करती थी और उन्हें देखने के लिए उत्कंठित रहा करती थी।
बसंत पंचमी का पर्व था| पांडव और कौरव राजकुमारों के शौर्य की परीक्षा का दिन था। महीनों पहले घोषणा हुई थी। हस्तिनापुर के निवासी बड़ी उत्सुकता के साथ उस दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे। हस्तिनापुर के एक विशाल प्रांगण में शौर्य-परीक्षा की आयोजना की गई थी।
प्रांगण को चारों ओर से बाड़ों के द्वारा घेर दिया गया था। बीच-बीच में दर्शकों के बैठने के लिए छोटे-बड़े मंच भी बनाए गए थे। राज कुटुंब के सदस्यों और सम्मानित नागरिकों के बैठने के लिए विशेष प्रकार के मंच बनाए गए थे|
घेरे हुए मैदान को झंडों, पताकाओं, बंदनवारों और पुष्प-मालाओं से सुसज्जित किया गया था| तरह-तरह के बाजे और ध्वनियां भी बजाई जा रही थीं। सारा मैदान दर्शकों से भरा था। मंचों पर सुसज्जित वेशभूषा में नागरिक और राज कुटुंब के सदस्य बैठे हुए थे |
स्त्रियों के मंच पर राज कुटुंब की स्त्रियों के साथ कुंती और गांधारी भी विराज मान थीं। साधारण दर्शकों में अधिरथ भी अपने पुत्र कर्ण के साथ मौजूद था। सबको आंखें मैदान के मध्य भाग की ओर लगी हुई थीं।शंख ध्वनि के साथ शौर्य-परीक्षा आरंभ हुई। कौरव और पांडव राजकुमार मध्य भाग में पहुंच कर अपना कौशल दिखाने लगे।
जब भीम का नाम लिया गया, तो करतल ध्वनि की गड़गड़ाहट हो उठी। विशाल काय भीम हाथ में गदा लिए हुई मध्यम भाग में उपस्थित हुआ। वह नंगे बदन था, पीतवर्ण का लंगोट धारण किए हुए था। उसकी बलिष्ठ भुजाएं थीं, चौड़ी छाती थी और तेजोमय मुख मण्डल था|
वह देखने में पर्वत के सदृश मालूम होरहा था।भीम प्रांगण के मध्य में पहुंच कर गदा युद्ध का प्रदर्शन करने लगा। उसके कौशल को देखकर जनता मुग्ध हो उठी| बार-बार तालियां बजा-बजाकर उसका अभि नंदन करने लगी।
भीम जब अपने कौशल का प्रदर्शन कर चुका तो घोषणा हुई – क्या कोई राजकुमार गदायुद्ध में भीम का सामना कर सकता है? घोषणा होते ही दुर्योधन गदा लिए हुए भीम के सामने जाकर खड़ा हो गया। उसका आकार-प्रकार भी भीम के ही समान था। वह लाल रंग का लंगोट धारण किए हुए था|
भीम और दुर्योधन में गदायुद्ध होने लगा| दोनों के कौशल को देखकर जनता वाह-वाह करने लगी, रह-रहकर तालियां बजाने लगी। पहले तो दोनों अपना-अपना कौशल दिखाते रहे, पर बाद में उनके भीतर क्रोध पैदा हो गया।
दोनों गदा फेंककर मल्लयुद्ध करने लगे, तो द्रोनाचार्य ने आज्ञा देकर उन्हें पृथक करा दिया| यद्यपि निर्णय नहीं हो सका कि दोनों में श्रेष्ठ कौ नहै किंतु यह बात तो हुई ही कि दोनों के कौशल को देखकर जनता मुग्ध हो उठी थी।
भीम और दुर्योधन के पश्चात अर्जुन के नाम की घोषणा हुई। घोषणा होते ही वह धनुष-बाण लेकर प्रांगण के मध्य के उपस्थित हो गया| उसका सुंदर और कांतिमय शरीर था| उसके सिर पर घुंघराले बाल थे। उसके अंग-अंग से तेज और शौर्य टपक रहा था।
वह भी पीतवर्ण की काछनी काछे हुए था, देखने में इंद्र-सा ज्ञात हो रहा था।अर्जुन प्रांगण के मध्य में खड़ा होकर अपना कौशल दिखाने लगा। उसके कौशल को देखकर जनता मुग्ध हो गई|
अर्जुन जब अपना कौशल दिखा चुका, तो फिर घोषणा हुई – क्या कोई राजकुमार अर्जुन की बराबरी कर सकता है? घोषणा सुनकर चारों ओर सन्नाटा छा गया। कोई भी अर्जुन का मुकाबला करने के लिए खड़ा नहीं हुआ। जब कोई आगे नहीं आया, तो फिर घोषणा हुई – क्या यह समझा जाए कि अर्जुन का मुकाबला करने वाला कोई नहीं है?
है क्यों नहीं – एक ओर से किसी का कंठ स्वर सुनाई पड़ा | और उसके साथ ही एक तेजस्वी युवक एक ओर से निकलकर अर्जुन के सामने जाकर खड़ा हो गया| उसके हाथों में धनुष-बाण था| वह सूर्य के समान तेजवान ज्ञात हो रहा था।
युवक को देखकर कृपाचार्य बोल उठे – यह तो अधिरथ सारथि का बेटा कर्ण है। यह अर्जुन का मुकाबला कैसे कर सकता है? यह कोई राजकुमार तो है नहीं।कृपाचार्य के स्वर को सुनकर चारों ओर सन्नाटा छा गया।कुछ क्षणों के पश्चात सहसा कोई बोल उठा – राजकुमार नहीं है तो क्या हुआ, मनुष्य तो है।
बोलने वाला स्वयं दुर्योधन था| वह अपने स्थान पर तन कर खड़ा हो गया।कृपाचार्य फिर बोले, किंतु इस शौर्य-परीक्षा में राजकुमारों को छोड़कर कोई भाग नहीं ले सकता।”दुर्योधन फिर बोला, ‘यदि यह बात है, तो मैं अभी कर्ण को राजपद पर प्रतिष्ठित किए देता हूं।”दुर्योधन ने कर्ण के पास जाकर अपने अंगूठे को चीरकर रक्त निकाला|
रक्त से कर्ण का तिलक करते हुए उसने कहा, “मैं कर्ण को अंग देश का राजा बना रहा हूं। यह आज से अधिरथ का पुत्र नहीं, अंग देश का राजा है। अंग देश के राजा के रूप में यह अर्जुन का मुकाबला कर सकता है।
दुर्योधन की बात को सुनकर भीम उठकर खड़ा हो गया। वह व्यंग भरे स्वर में बोला, “कर्ण को अंग देश का राजा तुम कैसे बना सकते हो? तुम हस्तिनापुर के राजा तो हो नहीं| राजा तो महाराज धृतराष्ट्र हैं।”भीम के कथन को सुनकर एकत्र जन समूह में बड़ा शोरगुल पैदा हुआ|
उस शोरगुल से ऐसा प्रतीत होने लगा कि अगर समारोह को समाप्त नहीं किया जाता, तो संघर्ष हो जाएगा।फलतः द्रोणाचार्य ने उठकर समारोह को समाप्त किए जाने की घोषणा कर दी।
अर्जुन और कर्ण का मुकाबला हुए बिना ही समारोह तो समाप्त हो गया, पर उसी दिन से पांडवों और कौरवों में शत्रुता की आग भी जल उठी। जब तक महाभारत के युद्ध की आग में सबकुछ जलकर समाप्त नहीं हो गया, तब तक वह आग जलती रही, बराबर जलती रही|