Chintpurni Mata || चिंतपूर्णी माता का इतिहास

Chintpurni Mata History

Chintpurni Mata – कहा जाता है भक्त माई दास को मां चिंतपूर्णी के स्थान के बारे में सबसे पहले पता चला था।

बात सन् 1556 से 1700 के आसपास की है। माई दास के पिता अट्ठर नामक गांव के रहने वाले थे। उस समय वह पटियाला रियासत में था। वह बड़े तेजस्वी दुर्गा भक्त थे । वह दुर्गा मां की पूजा आराधना बड़ी श्रद्धा और प्रेम भाव से किया करते थे।

ज्यादातर समय वह दुर्गा माता की भक्ति में ही बिताते थे। उनके 3 पुत्र थे जिनका नाम था देवीदास दुर्गादास और सबसे छोटे माईदास। उस समय मुगलों का अत्याचार जोरों पर था।

माई दास के पिता मुगलों के अत्याचारों से दुखी होने के कारण अठर गांव को छोड़ कर रपो जो कि ऊना जिले में है आकर वहां बस गए ।

अपने पिता की तरह माईदास भी ज्यादातर समय देवी भक्ति और उनकी पूजा पाठ में ही बिताते थे।इसी कारण माई दास जी अपने बड़े भाइयों के साथ में पार के कामकाज में पूरा समय नहीं दे पाते थे।

कुछ समय बाद ही माई दास जी के पिता का देहांत हो गया इसी बात को लेकर उनके भाइयों ने माई दास जी को घर से अलग कर दिया।

माईदास जी ने अपनी दिनचर्या और माँ दुर्गा की भक्ति में कोई कमी नहीं आने दी।

एक बार ससुराल जाते समय माईदास जी रास्ते में बरगद के पेड़ के नीचे आराम करने बैठ गए। संयोगवश माई दास जी की आँख लग गई और वह सो गए।

सपने में उन्हें दिव्य तेज वाली एक सुंदर कन्या दिखाई दी। उस दिव्य तेज वाली कन्या ने कहा तुम जहां आराम कर रहे हो वही मैं इस वटवृक्ष के नीचे निवास करती हूँ ।तुम इसी स्थान पर रहकर मेरी सेवा करो इसी में तुम्हारा कल्याण होगा।

नींद खुलने पर माई दास की फिर ससुराल की और चल दिए परंतु उनके दिलो-दिमाग में उसी दिव्य कन्या का आदेश गूंज रहा था।

ससुराल जाकर वापस आते समय माई दास जी के कदम फिर उसी स्थान पर आकर रुक गए और उसी वृक्ष की छाया के नीचे आकर बैठ गए उन्होंने मन ही मन प्रार्थना की और कहा माते यदि मैंने शुद्ध हृदय से तुम्हारी उपासना की है तो प्रत्यक्ष दर्शन देकर मुझे आदेश दें जिससे मेरी शंका का निवारण हो बार-बार स्तुति करने पर माई दास जी को सिंघवाहिनी दुर्गा माँ के चतुर्भुज रूप में साक्षात दर्शन हुए ।

माता रानी ने माईदास जी से कहा मैं इस वृक्ष के नीचे चिरकाल से विराजमान हूं लोग मुझे भूल गए हैं परंतु मैं इस पेड़ के नीचे पिंडी रूप में विराजमान हूं ।माँ ने माई दास को कहा तुम मेरे परम भक्त हो इसीलिए यहां रहकर मेरी आराधना करो और सेवा करो।

देवी ने कहा : मैं और ब्रह्म एक ही हैं। मुझमें और इन ब्रह्म में कभी किंचिन्मात्र भी भेद नहीं है। बुद्धि के भ्रम से भेद प्रतीत हो रहा है। हम लोगों के सूक्ष्म भेद को जो जानता है, वह बुद्धिमान मनुष्य है। ब्रह्म एक ही है। केवल संसार रचना के समय वह द्वैतरूप को प्राप्त होता है।

फिर द्वैत की भावना होने लगती है। संसार में मेरे अलावा कोई पदार्थ ही नहीं है।इस सारे संसार में मैं ही व्यापक रूप से विराजमान हूं। सम्पूर्ण देवताओं में भिन्न-भिन्न नामों से मैं विख्यात हूं, यह बिल्कुल निश्चित बात है। मैं शक्ति रूप धारण करके पराक्रम करती हूं।

गौरी, ब्राह्मी, रौद्री, वाराही, वैष्णवी, शिवा, वारुणी, कौबेरी, नारसिंही और वासवी सभी मेरे रूप हैं। भिन्न-भिन्न कार्यों के उपस्थित होने पर उन-उन देवियों के भीतर अपनी शक्ति स्थापित करती हूं। यदि मैं शक्ति हट जाऊं तो संसार में एक भी प्राणी हिल- डुल न सके।

मैं छिन्नमस्तिका नाम से प्रसिद्ध हूँ ।भक्तों की चिंता दूर करने से वक्त मुझे चिंतापूर्णी के नाम से भी पुकारा करेंगे।

माईदास जी ने नतमस्तक होकर निवेदन किया हे जगत जननी ! मैं तो तुछ बुद्धिजीव हूँ निर्बल हूँ – इस घने जंगल में मैं अकेला किस प्रकार रहूंगा ना यहां पानी है ना यहां खाना पीना है और ना ही यहां कोई स्थान बना हुआ है जंगली जानवरों के भय से यहां तो दिन में ही डर लगता है तो रात कैसे कटेगी?

माता रानी ने कहा यह स्थान मेरा शक्तिपीठ है यहां सती के रूप में मेरा मस्तक गिरा था ।फिर रक्तबीज नामक राक्षस का वध करके मैंने अपनी योगिनी जया और विजया को यही अपना मस्तक काट कर अपना रक्त पिलाया था।

तभी से मैं स्थान में विराजमान हूँ ।माँ ने कहा मैं तुमको निर्भय दान देती हूँ ।तुम यहीं रहकर मेरी सेवा करो मेरे चमत्कारों से यहां बहुत वक्त आएंगे। जिन भक्तों की मैं चिंता दूर करूंगी वही मेरा यहां मंदिर बनवाऐगें।

जो चढ़ावा चढ़ेगा उनसे तुम्हारा गुजारा होगा। तुम्हारे बाद तुम्हारे वंशज ही मेरी सेवा पूजा करेंगे।

माँ ने कहा है भक्त तुम चिंता ना करो – यह जंगली जानवर तुम्हें कुछ ना कहेंगे और रही बात खाने-पीने की तो यहां से कुछ ही कदम की दूरी पर एक पत्थर रखा हुआ है उसको हटाने से वहां पानी आ जाएगा।

यदि तुमको सेवा पूजा में और भी कोई समस्या होगी तो मैं कन्या के रूप में आकर तुम्हें बता दूंगी। इतना कहकर मैं वहां से लोप हो गई और भक्त माईदास की चिंता का निवारण हुआ।

माईदास खुश होकर पहाड़ी से नीचे उत्तरा और उस स्थान से पत्थर हटाया जहां माता रानी ने उसको बताया था। पत्थर हटाने से तो वहां से भारी मात्रा में जल निकल आया

माईदास की खुशी का ठिकाना नहीं रहा उन्होंने वही अपनी छोटी सी झोपड़ी बना ली और उस जल से नियमपूर्वक पिंडी रूप में माँ भगवती की पूजा करनी करनी आरंभ कर दी।

आज भी वह बड़ा पत्थर जिसे माईदास ने उखाड़ा था माँ चिंतपूर्णी मंदिर में रखा हुआ है और जहां से जल निकला था वहां सुंदर तलाब बनवा दिया गया है।

उसी स्थान से जल लाकर माता रानी का अभिषेक किया जाता है। उसी दिन से मां चिंतपूर्णी की सेवा माईदास के वंशज करते आ रहे हैं।

मांँ का पिंडी रूप

कहते है एक बार वट वृक्ष के पास जंगल में पहाड़ों पास एक बाबा टोकरियाँ बना रहा था।

अचानक फूलों में से एक दिव्य कंजक आई। उसने बहुत गहने पहन रखे थे वह गहनों से भरी पड़ी थी।उसने ऊँची अवाज से टोकरी वाले बाबा को अवाज लगाई।

बाबा ने जब उस दिन दिव्य कंजक को देखा तो उसने सोचा यहां पर जंगल ही जंगल है पहाड़ ही पहाड़ है तो यह कहां से आई डर के मारे बाबा ने उस कंजक के ऊपर टोकरी डाल दी जिससे वह कंजक पिंडी रूप बन गई। इसी से माँ का एक नाम फुलावाली माता और टोकरी वाली माता के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।

Chintpurni Temple

चिंतपूर्णी माता का मंदिर आज भी इसी वट वृक्ष के नीचे बना हुआ है। मान्यता है उस वट वृक्ष पर कोई भी मन्नत मांग कर मौली बांधता है तो उसकी मुराद बहुत जल्दी पूरी होती है।

Chintpurni Temple Location – चिंतपूर्णी मंदिर कहाँ है ?

Chintpurni Live Darshan

https://www.youtube.com/results?search_query=matachintpurnilivedarshan+

Mata Chintpurni Darshan Timing

Open Timings in Winters5.30 am – 9.30 pm
Open Timings in Summers4.00 am – 10 pm
Morning Arti Timings6.00 am
Evening Arti Timings8.00 pm

mata chintpurni mandir contact number

बलवंत सिंह पटयाल मंदिर अधिकारी – 01976-255818

डॉ. मदन कुमार सहायक आयुक्त (मन्दिर) एवं उपमंडलाधिकारी (नागरिक) – 1976 261203

Click Here for other informathion – https://www.matashrichintpurni.com/contact-us.php

Mata Chintpurni Email

Email: tochintpurni-hp@nic.in

Mata Chintpurni Website

https://www.matashrichintpurni.com/


FAQ

चिंतपूर्णी में माता का कौन सा अंग गिरा था?

मान्यता के अनुसार मांँ चिंतपूर्णी में सती माता के चरण गिरे थे।

जब रक्तबीज नामक राक्षस का वध करके माता रानी ने अपनी योगिनी जया और विजया को यही अपना मस्तक काट कर अपना रक्त पिलाया था। इसीलिए इन्हें छिन्नमस्तिका देवी भी कहा जाता है।

चिंतपूर्णी किस लिए प्रसिद्ध है

चिंतपूर्णी भारत के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है। अपने भक्तों की बहुत ही जल्दी चिंता दूर करने वाली देवी है इसी कारण माँ के भक्त माँ को चिंतापूर्णी नाम से पुकारते हैं।

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