तेईसवाँ अध्याय माघ महात्म्य

तेईसवाँ अध्याय माघ महात्म्य वेदनिधि बोला- हे महर्षि! आपने इस पावन प्रसंग को सुनाकर हम सभी पर बहुत उपकार किया है। अब आप कृपा करके उस स्तोत्र को सुनाये जिससे भगवान श्रीहरि ने प्रसन्न होकर देवद्युति को दर्शन दिए थे। तब लोमश जी ने कहा- हे ब्राह्मण! सुपात्र को धर्मोपदेश करने से जो प्रसन्नता होती … Read more

बाईसवाँ अध्याय माघ महात्म्य

बाईसवाँ अध्याय माघ महात्म्य लोमशजी ने कहा- एक समय देवद्यूति नामक वैष्णव ब्राह्मण था । उसने पिशाच को मुक्ति दिलायी।वेद निधि ने पूछा- हे मुने! देवद्युति कौन था और बताइए कि उसने किस पिशाच को किस तरह से मुक्ति दिलायी ? लोमश जी बोले – हे विप्र ! देवद्युति का आश्रम सरस्वती के तट पर … Read more

इक्कीसवाँ अध्याय माघ महात्म्य

इक्कीसवाँ अध्याय माघ महात्म्य वेदनिधि ने कहा- हे ऋषि! आप कृपा कर इन बालकों को उस धर्म का उपदेश दें जिससे इनकी मुक्ति हो । आप समर्थ है और इस कार्य में इनकी सहायता कर सकते हैं। लोमश जी बोले इन बालकों की मुक्ति का साधन माघ स्नान ही है। ये मेरे साथ माघ स्नान … Read more

बीसवाँ अध्याय माघ महात्म्य

बीसवाँ अध्याय माघ महात्म्य कुमारियों ने कहा- हे माता! आज किन्नारियों के साथ सरोवर पर स्नान करते और खेलते रहने के कारण हमें समय का ज्ञान नहीं रहा, वे अपनी माताओं का ध्यान अपनी ओर से हटाये रखने के लिये तरह-तरह की बातें करने लगी परन्तु उनके हृदय तो उस ब्रह्मचारी युवक पर मोहित थे … Read more

उन्नीसवाँ अध्याय माघ महात्म्य

उन्नीसवाँ अध्याय माघ महात्म्य वशिष्ठजी बोले- हे राजन्! भगवान श्री दत्तात्रेय जी ने जो इतिहास का वर्णन किया था, वह मैंने तुमको सुना दिया है। अब तुम माघ स्नान का फल श्रवण करो। माघ स्नान समस्त यज्ञों, दानों, तपस्या एवं व्रतों में श्रेष्ठ है । हे दिलीप ! माघ स्नान करने वाले प्राणी के पितर … Read more

अठारहवाँ अध्याय माघ महात्म्य

अठारहवाँ अध्याय माघ महात्म्य कांचन मालिनी ने कहा- हे राक्षस! मैंने तुम्हारे पूछने पर यह इतिहास तुझे सुना दिया है, अब मेरी शंका मिटाने को तुम भी अपना पूर्व इतिहास सुनाओ। किस पापी कर्म के प्रभाव से तुमको यह भयंकर योनि प्राप्त हुई है तब राक्षस ने कहा- हे सुभगे ! तेरा वृतान्त बड़ा ही … Read more

सोलहवाँ अध्याय माघ महात्म्य

सोलहवाँ अध्याय माघ महात्म्य दत्तात्रेय जी बोले- हे राजन्! प्रजापति ने बड़े -२ पाप नष्ट करने के लिये प्रयाग की रचना की है। तीर्थ राज प्रयाग का महात्म्य बड़ा ही पवित्र है । श्वेत और नील जल के संगम पर स्नान करने से प्राणी के महान पाप भी मात्र जल स्पर्श से नष्ट हो जाते … Read more

पन्द्रहवाँ अध्याय माघ महात्म्य

पन्द्रहवाँ अध्याय माघ महात्म्य राजा कार्तवीर्य बोले-हे भगवन् आपने जो कहा है कि एक माघ स्नान से विकुण्डल पाप रहित हुआ और दूसरे माघ स्नान से स्वर्ग पहुँचा, स्वर्ग कैसे गया? कृपया मुझ से कहिये । दत्तात्रेय जी बोले- हे राजन् । जल को नारापण कहा जाता है, क्योंकि वह स्वभाव से निर्मल, पवित्र सफेद, … Read more

चौदहवाँ अध्याय माघ महात्म्य

चौदहवाँ अध्याय माघ महात्म्य विकुण्डल बोला- हे सौम्य! आपने जो धर्म ज्ञान दिया है उसे सुनकर मैं बड़ा प्रसन्न हूँ जिस प्रकार साधु के वचन पाप को नष्ट करने वाले होते हैं, उसी प्रकार आप के इस उपदेश से मेरे मन का अज्ञान नष्ट हो गया है। जिस तरह चन्द्रमा अमृत वर्षा करता है, उसी … Read more

तेरहवाँ अध्याय माघ महात्म्य

तेरहवाँ अध्याय माघ महात्म्य यमदूत बोला- एकादशी व्रत समस्त व्रतों में श्रेष्ठ है। इस व्रत के करने से सारे पाप नष्ट होते हैं। सहस्त्रों अश्वमेध, राजसूर्य यज्ञ भी एकादशी व्रत के समान फल नहीं दे पाते । समस्त इन्द्रियां द्वारा किए गये पाप इस व्रत से नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत के समान फल … Read more