दसवाँ अध्याय श्रावण महात्म्य – shravan maas dasva adhyay

दसवाँ अध्याय श्रावण महात्म्य शिव ने सनत्कुमार से कहा- हे सनत्कुमार! अब मैं आपसे शनिवार व्रत विधि कहूँगा । श्रावण महीने में शनिवार के रोज तीन देवताओं का नृसिंह, शनि तथा हनुमान का अर्चन करे। दीवाल या खम्भे में शुभ नृसिंह को हल्दी सहित चन्दन सहित जगत्पति नृसिंह की प्रतिमा लिखकर लख्मी नीले, पीले फूल … Read more

नौवाँ अध्याय श्रावण महात्म्य – shravan maas nauva adhyay

नौवाँ अध्याय श्रावण महात्म्य ईश्वर ने कहा- हे सनत्कुमार! अब शुक्रवार की कथा कहूँगा। जिसे प्राणी श्रद्धा से सुनकर समस्त विपत्ति से छूट जाता है। पाण्डव वंश में उत्पन्न एक सुशील नाम वाला राजा था। उसने बहुत प्रयत्न किये लेकिन पुत्र नहीं हुआ। उसकी मुकेशी नाम की पत्नी सर्वगुणों से युक्त थी । जब पुत्र … Read more

आठवाँ अध्याय श्रावण महात्म्य

आठवाँ अध्याय श्रावण महात्म्य ईश्वर ने कहा- सनत्कुमार! अब मैं आपसे पाप को नाश करने वाले बुध तथा बृहस्पति व्रत को कहूँगा, जिसे श्रद्धा के साथ करके प्राणी उत्तम सिद्धि प्राप्त करता है। ब्रह्मा ने इन्द्र को ब्राह्मण के राज्यासन पर अभिषिक्त किया। किसी काल में चन्द्रमा ने श्री बृहस्पति की ‘तारा’ नाम वाली पत्नी … Read more

तीसवाँ अध्याय माघ महात्म्य

तीसवाँ अध्याय माघ महात्म्य (माघ व्रत उद्यापन विधि) माघ मास में पूर्णिमा को प्रातःकाल गंगा, यमुना, सरस्वती के संगम में अथवा किसी भी नदी में स्नान करके एवं पवित्र होकर उसी क्षेत्र में एक मंडप बनाकर उसमें भगवान विष्णु की स्थापना करें – ब्राह्मण को बुलाकर गौरी गणेश तथा नवग्रह की स्थापना करके सत्यनारायण भगवान … Read more

उन्तीसवाँ अध्याय माघ महात्म्य

उन्तीसवाँ अध्याय माघ महात्म्य (प्रयाग महात्म्य) लोमश ऋषि बोले- हे ब्राह्मण! मैंने पुनीत फल वाले इतिहास आपके सामने वर्णन किये हैं, अब तेरे पुत्र और गन्धर्व कन्याओं को उचित है कि वे पिशाच योनि से मुक्त होने के लिए मेरे साथ प्रयाग जाएँ। वहाँ देवताओं को भी दुर्लभ माघ स्नान होगा। वहाँ स्नान करने पर … Read more

अट्ठाईसवाँ अध्याय माघ महात्म्य

अट्ठाईसवाँ अध्याय माघ महात्म्य सारस ने कहा वानर ! तेरा प्रश्न न्याय संगत है। जिस कर्म के कारण मुझे यह कष्टदायी पक्षी की योनि प्राप्त हुई है, उस रहस्य को सुन । पूर्व जन्म में तूने सूर्य ग्रहण के समय सौखारी अन्नदान किया और नर्मदा के तट पर बसे ब्राह्मणों को देने के लिए मुझसे … Read more

सत्ताईसवाँ अध्याय माघ महात्म्य

सत्ताईसवाँ अध्याय माघ महात्म्य ब्राह्मण ने पूछा- हे प्रेत! तूने सारस से जो वचन सुने हैं। वह मुझसे कहो। प्रेत बोला-हे विप्रवर! इसी खण्ड के समीप गुहिका नामक एक नदी है। यह नदी पहाड़ी के समीप है, उसमें से अथाह निर्मल जल रहने के कारण बड़ी-बड़ी लहरें उठा करती हैं। उनके किनारे हाथियों के झुण्ड … Read more

छब्बीसवाँ अध्याय माघ महात्म्य

छब्बीसवाँ अध्याय माघ महात्म्य देवद्युति ने कहा इस पवित्र कथा को ध्यान से सुनो। एक समय केरल प्रदेश में एक वेदज्ञ ब्राह्मण निवास करता था । उसका नाम वसु था। उसके बन्धु-बान्धवों ने जब उसका धन हरण कर लिया तो वह केरल छोड़कर चल दिया। जगह-जगह मारा-मारा फिरा, मगर कहीं उसकी उदर पूर्ति न हो … Read more

पच्चीसवाँ अध्याय माघ महात्म्य

पच्चीसवाँ अध्याय माघ महात्म्य लोमश जी बोले- हे ब्राह्मण! इस पिशाच के इस करुण क्रन्दन को देवद्युति ने उपासना करते समय सुना। वे बैठे न रह सके और तब वे इस आश्रम से निकलकर उस पिशाच के सम्मुख गये। भयानक आकार और क्रूर आकृति वाले पिशाच को इस प्रकार दहाड़ मारकर रोते देखा। इसके गाल … Read more

चौबीसवाँ अध्याय माघ महात्म्य

चौबीसवाँ अध्याय माघ महात्म्य लोमशजी बोले- जिस वन में पिशाच को मोक्ष हुआ था, उसका द्रविण राजा चित्र था । वह परम वीर, पराक्रमी, शास्त्रों का ज्ञाता और एश्वर्यवान था। स्वर्ण, रत्न से उसका कोष भरा रहता था। उसके सहस्त्रों पटरानियां थीं। वह स्त्रियों के वशीभूत रहता, कामुक, लोभी एवं महा क्रोधी था । वह … Read more