maa durga mantra in hindi
माँ दुर्गा के सिद्ध और मनोकामना पूर्ण करने वाले जप-मंत्र
माँ दुर्गा के मंत्र अत्यधिक शक्तिशाली और सिद्ध मंत्र होते हैं। इन मंत्रों द्वारा माता रानी को प्रसन्न किया जा सकता है। इन मंत्रों के रोजाना जाप से माँ दुर्गा के साक्षात दर्शन होते हैं और जो भक्त माँ दुर्गा की भक्ति पाना चाहते हैं वह इन दुर्गा माता के बीज मंत्रों का जाप निरंतर करें।
ध्यान रहे मांँ के मंत्रों का जाप माँ दुर्गा की भक्ति पाने के लिए या अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए ही करें। माँ दुर्गा बहुत जल्दी प्रसन्न होने वाली देवी है।
ॐ क्रीं कालिकायै नमः
क्रीं माता काली का बीजाक्षर हैं। यदि चित्त एकाग्र करके और पवित्रता के साथ इस मन्त्र का पाँच लाख बार जप किया जाय तो माता काली के प्रत्यक्ष दर्शन होंगे ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे
यह माता भगवती देवी का परम प्रसिद्ध मन्त्र है । चण्डी अथवा दुर्गासप्तशती में यह मन्त्र दिया हुआ है । बङ्गाल में बहुत से लोग इस मन्त्र का जप करते हैं । इसका भी पाँच लाख बार जप करना चाहिये ।
इस मंत्र के श्रवण मात्र से घोर मुसीबतें अपने आप भाग जाती हैं। अब इनके उत्तम नवाक्षर मन्त्र का वर्णन करता हूं।
सरस्वती बीज (ऐं भुवनेश्वरी बीज (ह्रीं) तथा कामबीज (क्लीं) इन तीनों बीजों का आदि में क्रमशः प्रयोग करके ‘चामुण्डायै’ इस पद को लगाकर, फिर ‘विच्चे’ यह दो अक्षर जोड़ देना चाहिए, ( ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे) यही मनुप्रोक्त नवाक्षर मन्त्र है।
दुर्गा उपासकों के लिए यह मंत्र कल्पवृक्ष के समान है। इस नवार्ण मन्त्र के ब्रह्मा, विष्णु तथा रुद्र- ये तीन ऋषि कहते हैं। गायत्री, उष्णिग् तथा त्रिष्टुप्-ये तीन छन्द हैं।
महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती देवता हैं और रक्तदन्तिका, दुर्गा तथा भ्रामरी बीज हैं। नन्दा, शाकम्भरी तथा भीमा शक्तियां कही गई हैं।
धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष की प्राप्ति के लिए इस मंत्र का प्रयोग किया जाता है। ऐं ह्रीं क्लीं तीन बीज-मन्त्र चामुण्डायै – ये चार अक्षर- तथा विच्चे में दो अक्षर ये ही मन्त्र के अंग हैं।
हरेक के साथ नमः, स्वाहा, वषट्, हुम्, वौषट् तथा फट्-ये छः जातिसंज्ञक वर्ण लगाकर शिखा, दोनों नेत्र, दोनों कान, नासिक, मुख तथा गुदा आदि स्थानों में इस मन्त्र के वर्णों का न्यास करना चाहिए।
ॐ दुं दुर्गायै नमः
‘दु’ अथवा ‘दुम्’ श्री दुर्गा का बीजाक्षर है । इस मन्त्र का भी पाँच लाख बार जप करना चाहिये ।
ॐ ह्रीं क्लीं सर्वपूज्ये देवि मंगलचण्डिके हुँ हुँ फट् स्वाहा।
इक्कीस अक्षर का यह मन्त्र सुपूजित होने पर भक्तों को सम्पूर्ण कामना प्रदान करने के लिए कल्पवृक्षस्वरूप है। दस लाख जप करने पर इस मन्त्र की सिद्धि होती है ।
माँ दुर्गा का आवाहन मंत्र
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके, शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते ।
ॐ श्रीमहाकाली स्तुति मंत्र
काली काली महाकाली, कालिके परमेश्वरी । सर्वानन्द करे देवि, नारायणि नमोऽस्तुते
श्री शीतला माता की स्तुति मंत्र
शीतले त्वं जगन्माता, शीतले त्वं जगत्-पिता । शीतले त्वं जगद्धात्री, शीतलायै नमो नमः ।
सर्पों के भय से मुक्ति दिलाने वाला मंत्र
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं मनसादेव्यै स्वाहा ।
पांच लाख मन्त्र जप करने पर यह सिद्ध हो जाता है। जिसे इस मन्त्र की सिद्धि प्राप्त हो गई, वह धरातल पर सिद्ध है। उस पुरुष की धन्वन्तरि से तुलना की जा सकती है।
भक्ति और मुक्ति प्रदान करने वाला मंत्र
ॐ ह्रीं भुवनेश्वर्यै नमः
इस मंत्र से महादेवी भगवती जगदम्बा के चरण कमलों में परम भक्तिपूर्वक वह कोमल पत्र समर्पण करे। जो भक्ति के साथ इस तरह भगवती की उपासना करता है, वह ब्रह्माण्ड का स्वामी होता है।
अष्टगन्ध से चर्चित एक करोड़ नूतन कुन्दपुष्पों द्वारा देवी की पूजा करने वाला पुरुष निश्चित ही प्रजापति के पद का अधिकारी होता है।
ऐसे ही अष्टगन्ध से चर्चित कोटि-कोटि मल्लिका तथा मालती से जो भगवती की पूजा करता है, वह चतुर्मुख ब्रह्मा होता है। मुने! इसी तरह दस करोड़ पुष्पों से पूजा करने वाले मानव को विष्णुपद की, जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है, प्राप्ति होती है ।
जवाकुसुम (अड़हुल), बन्धूक (दुपहरिया) तथा दाड़िम (अनार) का पुष्प भी भगवती को अर्पण किया जाता है।
दुर्गा मनोकामना सिद्ध मंत्र
नीचे कुछ चुने हुये सप्तशती के सम्पुट मन्त्र दे रहे हैं । इनका सम्पुट देकर विधि- पूर्वक पाठ करने से विभिन्न कामनाओं की सिद्धि होती है।
विपत्ति नाश के लिये
सरणागत दीनार्त परित्राणपरायणे ! सर्वस्याति हरे देवि ! नारायणि ! नमोऽस्तु ते ॥
विपत्तिनाश और शुभ की प्राप्ति के लिये
करोतु सा नः शुभहेतुरीश्वरी । शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः ।।
भयनाश के लिये
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते । भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ।
पाप नाश के लिए
हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत् । सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योऽनः सुतानिव ।
रोग और महामारी नाश के लिये
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा । रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।। त्वामाश्रिताना न विपन्न राणाम् । त्वामाश्रिताह्याश्रयतां प्रयान्ति ॥
आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिये
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम् । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥
माँ दुर्गा के 64 योगिनी मंत्र
यह दुर्गा माँ की जो चौसठ योगिनीयाँ होती हैं ये उनके शक्तिशाली सिद्ध मंत्र हैं। इनके श्रवण मात्र से भूत , प्रेत , पिशाच और जितनी भी बुरी और नकारात्मक शक्तियां होती हैं जब दूर भाग जाती हैं और सुख शांति और वैभव की प्राप्ति होती है।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री काली नित्य सिद्धमाता स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कपलिनी नागलक्ष्मी स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुला देवी स्वर्णदेहा स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुरुकुल्ला रसनाथा स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विरोधिनी विलासिनी स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विप्रचित्ता रक्तप्रिया स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री उग्र रक्त भोग रूपा स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री उग्रप्रभा शुक्रनाथा स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री दीपा मुक्तिः रक्ता देहा स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नीला भुक्ति रक्त स्पर्शा स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री घना महा जगदम्बा स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मातृ देवी आत्मविद्या स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मुद्रा पूर्णा रजतकृपा स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मिता तंत्र कौला दीक्षा स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री महाकाली सिद्धेश्वरी स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कामेश्वरी सर्वशक्ति स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भगमालिनी तारिणी स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नित्यकलींना तंत्रार्पिता स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भैरुण्ड तत्त्व उत्तमा स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री वह्निवासिनी शासिनि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री महवज्रेश्वरी रक्त देवी स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री शिवदूती आदि शक्ति स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री त्वरिता ऊर्ध्वरेतादा स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुलसुंदरी कामिनी स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नीलपताका सिद्धिदा स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नित्य जनन स्वरूपिणी स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विजया देवी वसुदा स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री सर्वमङ्गला तन्त्रदा स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ज्वालामालिनी नागिनी स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री चित्रा देवी रक्तपुजा स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ललिता कन्या शुक्रदा स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री डाकिनी मदसालिनी स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री राकिनी पापराशिनी स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री लाकिनी सर्वतन्त्रेसी स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री काकिनी नागनार्तिकी स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री शाकिनी मित्ररूपिणी स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री हाकिनी मनोहारिणी स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री तारा योग रक्ता पूर्णा स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री षोडशी लतिका देवी स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भुवनेश्वरी मंत्रिणी स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री छिन्नमस्ता योनिवेगा स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भैरवी सत्य सुकरिणी स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री धूमावती कुण्डलिनी स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री बगलामुखी गुरु मूर्ति स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मातंगी कांटा युवती स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कमला शुक्ल संस्थिता स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री प्रकृति ब्रह्मेन्द्री देवी स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री गायत्री नित्यचित्रिणी स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मोहिनी माता योगिनी स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री सरस्वती स्वर्गदेवी स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री अन्नपूर्णी शिवसंगी स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नारसिंही वामदेवी स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री गंगा योनि स्वरूपिणी स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री अपराजिता समाप्तिदा स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री चामुंडा परि अंगनाथा स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री वाराही सत्येकाकिनी स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कौमारी क्रिया शक्तिनि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री इन्द्राणी मुक्ति नियन्त्रिणी स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ब्रह्माणी आनन्दा मूर्ती स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री वैष्णवी सत्य रूपिणी स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री माहेश्वरी पराशक्ति स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री लक्ष्मी मनोरमायोनि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री दुर्गा सच्चिदानंद स्वाहा।