shri bankebihari chalisa
श्री बांके बिहारी विनय पचासा
श्री बांके बिहारी चालीसा
दोहा –
बांकी चितवन कटि लचक, बांके चरन रसाल।
स्वामी श्री हरिदास के बांके बिहारी लाल ॥
॥ चौपाई ॥
जै जै जै श्री बांके बिहारी ।
हम आये हैं शरन तिहारी ॥१॥
स्वामी श्री हरिदास के प्यारे ।
भक्तजनन के नित रखवारे ॥२॥
श्याम स्वरूप मधुर मुसिकाते ।
बड़े-बड़े नैन नेह बरसाते ॥३॥
पटका पाग पीताम्बर शोभा ।
सिर सिरपेच देख मन लोभा ॥४॥
तिरछी पाग मोती लर बाँकी ।
सीस टिपारे सुन्दर झाँकी ॥५॥
मोर पाँख की लटक निराली ।
कानन कुण्डल लट घुँघराली ॥६॥
नथ बुलाक पै तन मन वारी ।
मंद हसन लागे अति प्यारी ॥७॥
तिरछी ग्रीव कण्ठ मनि माला ।
उर पै गुंजा हार रसाला ॥८॥
काँधे साजे सुन्दर पटका ।
गोटा किरन मोतिन के लटका ॥ ९ ॥
भुज में पहिर अँगरखा झीनौ ।
कटि काछनी अंग ढक लीनौ ॥१०॥
कमर बांध की लटकन न्यारी ।
चरन छुपाये श्रीबाँके बिहारी ॥११॥
इकलाई पीछे ते आई ।
दूनी शोभा दई बढ़ाई ॥१२॥
गादी सेवा पास विराजै ।
श्री हरिदास छवी अतिराजै ॥१३॥
घंटी बाजे बजत न आगे ।
झाँकी परदा पुनि-पुनि लागे ॥१४॥
सोने-चाँदी के सिंहासन ।
छत्र लगी मोती की लटकन ॥१५॥
बाँके तिरछे सुघर पुजारी ।
तिनकी हू छवि लागे प्यारी ॥१६॥
अतर फुलेल लगाय सिहावैं ।
गुलाब जल केशर बरसावै ॥१७॥
दूध-भात नित भोग लगावैं ।
छप्पन भोग भोग में आवैं ॥१८॥
मगसिर सुदी पंचमी आई ।
सो बिहार पंचमी कहाई ॥१९॥
आई बिहार पंचमी जबते ।
आनन्द उत्सव होवैं तबते ॥२०॥
बसन्त पाँचे साज बसन्ती।
लगै गुलाल पोशाक बसन्ती ॥ २१ ॥
होली उत्सव रंग बरसावै ।
उड़त गुलाल कुमकुमा लावै ॥२२॥
फूल डोल बैठे पिय प्यारी ।
कुंज विहारिन कुंज बिहारी ॥२३॥
जुगल सरूप एक सूरत में ।
लखौ बिहारी जी सूरत में ॥ २४॥
श्याम सरूप हैं बाँके बिहारी ।
अंग चमक श्री राधा प्यारी ॥२५॥
डोल- एकादशी डोल सजावैं ।
फूल फल छबी चमकावैं ॥२६॥
अखैतीज पै चरन दिखावैं ।
दूर-दूर के प्रेमी आवैं ॥२७॥
गर्मिन भर फूलन के बँगला ।
पटका हार फूलन के झँगला ॥२८॥
शीतल भोग, फुहारे चलते ।
गोटा के पंखा नित झलते ॥२९॥
हरियाली तीजन कौ झूला ।
बड़ी भीड़ प्रेमी मन फूला ॥३०॥
जन्माष्टमी मंगला आरती ।
सखी मुदित निज तन-मन वारति ॥ ३१ ॥
नन्द महोत्सव भीड़ अटूट ।
सवा प्रहर कंचन की लूट ॥३२॥
ललिता छठ उत्सव सुखकारी ।
राधा अष्टमी की चाव सवारी ॥३३॥
शरद चाँदनी मुकट धरावैं ।
मुरलीधर के दर्शन पावैं ॥३४॥
दीप दीवारी हटरी दर्शन ।
निरखत सुख पावै प्रेमी मन ॥३५॥
मन्दिर होते उत्सव नित-नित ।
जीवन सफल करें प्रेमी चित ॥३६॥
जो कोई तुम्हें प्रेम ते ध्यावें ।
सोई सुख कन वांछित फल पावैं ॥३७॥
तुम हो दीनबन्धु ब्रज-नायक ।
मैं हूँ दीन सुनो सुखदायक ॥३८॥
मैं आयौ तेरे द्वार पड़ो हू ।
कृपा करो श्री बाँके बिहारी ॥३९॥
दीन दुःखी के संकट हरते ।
भक्तन पै अनुकम्पा करते ॥४०॥
मैं हूं सेवक नाथ तुम्हारो ।
बालक के अपराध बिसारो ॥४१॥
मोकूँ जग संकट ने घेरौ ।
तुम बिन कौन हरै दुख मेरौ ॥४२॥
विपदा ते प्रभु आप बचाऔ ।
कृपा करो मोकूँ अपनाऔ ॥४३॥
मैं अज्ञानी मंद-मति भारि ।
दया करो श्री बाँके बिहारी ॥४४॥
श्री बाँकेबिहारी विनय पचासा ।
नित्य पढ़ें पावे निज आसा ॥४५॥
पढ़ भाव ते नितप्रति गावैं ।
दुख दरिद्र निकट नहीं आवैं ॥४६॥
धन परिवार बढ़ व्यापारा ।
सहज होय भव सागर पारा ॥४७॥
कलयुग के ठाकुर रंगराते ।
दूर-दूर के प्रेमी आते ॥४८॥
दर्शन कर निज हृदय सिहाते ।
अष्ट-सिद्धि नव निधि ‘सुख’ पाते ॥४९॥
मेरे सब दुख हरो दयाला ।
दूर करो माया जंजाला ॥५०॥
दया करो मोंकूँ अपनाऔ ।
कृपा बिन्दू मन में बरसाऔ ॥५१॥
दोहा
ऐसौ मन करदेउ मैं, निरखूँ श्यामा-श्याम ।
प्रेम बिन्दु दूग ते झरें, वृन्दावन विश्राम ॥