shri ganesh ji aarti ( श्री गणेश आरती )
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी ।
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी ॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा ।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा ॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
अंधन को आंख देत,कोढ़िन को काया ।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी ।
कामना को पूर्ण करो, जाऊं बलिहारी ॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
गणपति लक्ष्मी पूजन का महत्व
मारी सनातन कर्मकांडी पद्धति में भगवान गणेश और माता लक्ष्मी दोनों का सर्वोपरि महत्व है। प्रायेक कर्मकांड में गणेश जी का पूजन अत्यावश्यक माना गया है। इन्हें प्रथम पूज्यदेव काहा गया है। कोई भी पूजा और कर्मकांड गणपति पूजन के बिना आरंभ नहीं किया जाता। गणपति को सद्बुद्धि के देवता और लक्ष्मी को ऐश्वर्य एवं धन की देवी कहा गया है। दीपावली के पावन अवसर पर माता लक्ष्मी के साथ-साथ गणपति की आराधना का भी विशेष रूप से विधान है।
हमारे ऋषि-मुनियों का चितन है कि मनुष्य जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए श्रेष्ठ बौद्धिक सम्पति अर्थात ‘सद्बुद्धि’ और भौतिक सम्पत्ति अर्थात ‘धन’ की परम आवश्यकता होती है। इन दोनों के बिना मनुष्य जीवन अधूरा ही रहता है। विघ्नहर्ता गणपति एवं मां लक्ष्मी के पूजन से सद्बुद्धि एवं अपार धन-ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
केवल अपार धन-सम्पत्ति से मनुष्य का जीवन आनंदमय नहीं हो सकता, उसके लिए आवश्यक है श्रेष्ठ सद्बुद्धि जो मनुष्य को सदैव अध्यात्म के पथ की ओर अग्रसर करती रहे। प्रथम पूज्य देव गणपति और लक्ष्मी की आराधना से मनुष्य को इन दोनों की प्राप्ति होती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गणेश जी को महालक्ष्मी का दत्तक पुत्र माना जाता है, इसलिए लक्ष्मी पूजन के साथ गणपति का पूजन भी अनिवार्य माना गणपति के पूजन के बिना मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त नहीं होती।
हमारी सनातनी कर्मकांड पद्धति में इसीलिए हो गणपति स्तोत्र में विशेष रूप से गणेश जी की आराधना करने के लिए प्रेरित किया गया है। गणपति स्तोत्र में भगवान गणेश की स्तुति करते हुए कहा गया है कि-
ओम् नमो विघ्न नाशाय सर्व सौख्यप्रदायिने ।दुष्लारिष्ट विनाशाय पराय परमात्मने ॥
अर्थात सभी प्रकार के सुख प्रदान करने वाले विघ्नराज •को नमन है। जो दुख अरिष्ट आदिग्रहों का विनाश करने वाले गणपति को नमस्कार है।
गणपति स्तोत्र में भगवान गणेश को मोदक प्रिय कहा गया है। इन्हें सदैव वर प्रदान करने वाला भी कहा गया है। मां लक्ष्मी की कृपादृष्टि प्राप्त करने के लिए गणपति स्तोत्र की आराधना बड़ी हो कल्याणकारी मानी गई है। गणपति स्तोत्र में कहा गया है कि-
इदं गणपति स्तोत्र यः पठेद् भक्तिमान नरः । तस्य देहे च गेहे च स्वयं लक्ष्मी न मुन्वति ।।
अर्थात भनिभाव से परिपूर्ण जो मनुष्य इस गणपति स्तोत्र का ब्रद्धाभक्ति के साथ पाठ करता है. उसके शरीर और घर को लक्ष्मी स्वयं कभी नहीं छोड़तीं। भगवान गणेश की आराधना सर्वदा फलदायी मानी गई है। कनकधारा स्तोत्र में मां लक्ष्मी की आराधना के मंत्र निहित है।
स्तोत्र में बताया गया है कि मां लक्ष्मी की उपासना उपासक के लिए संपूर्ण मनोरथों, संपत्तियों का विस्तार करती है। जो उपासक भगवान विष्णु की हृदय देवी मां लक्ष्मी का मन, वचन, वाणी और शरीर से भजन करता है, उस पर अपार धन-ऐश्वर्य के माध्यम से मां लक्ष्मी की कृपा दृष्टि होती है।
कमल के समान नेत्रों वाली, संपूर्ण इंद्रियों को आनंद देने वाली एवं समस्त नीच प्रवृत्तियों को हरण करने वाली मां लक्ष्मी का अवलंबन उपासक को सदैव धर्म के मार्ग की ओर अग्रसर करता है।
ऋग्वेद के श्रीसूक्त में भी मां लक्ष्मी को सुख, समृद्धि, सिद्धि तथा वैभव की अधिष्ठात्री देवी कहा गया है।
इन सभी पदार्थों की प्राप्ति की इच्छा रखने वाले मानव के लिए लक्ष्मी की उपासना करना अनिवार्य है। ऋग्वेद के लक्ष्मी सूक्त के मंत्रों से मां लक्ष्मी का विधिवत पूजन एवं इन मंत्रों के माध्यम से अग्निहोत्र में आहुतियां देने से मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
हमारे मनीषियों का कहना है कि जिस प्रकार एक माता को अपने पुत्र से अत्यधिक स्नेह होता है और जो भी उसके पुत्र को प्रसन्न करता है, माता सदैव उस पर प्रसन्न रहती है, ठीक इसी प्रकार गणेश जी मां लक्ष्मी के दत्तक पुत्र हैं। गणपति की विधिवत आराधना से मां लक्ष्मी स्वतः ही प्रसन्न हो जाती हैं।
गणेश जी श्रेष्ठ बौद्धिक संपत्तियों, एवं मां लक्ष्मी भौतिक धन-ऐश्वर्य की प्रतीक हैं। अगर हमारी बुद्धि में श्रेष्ठ देवतुल्य प्रवृत्तियों का समावेश है तो हम धन-संपत्ति का अपने जीवन में सदुपयोग करने में सक्षम बन सकते हैं। गणपति और मां लक्ष्मी की आराधना मनुष्य को उत्तम बौद्धिक शक्ति • एवं धन-ऐश्वर्य की प्राप्ति करवाती है।