Vaishno Amritvani Lyrics | वैष्णो अमृतवाणी लिरिक्स
वैष्णो गुफा निवासनी अदभुत तेरो धाम..
तेरे साधक का तुझको शत्त शत्त है प्रणाम…
कष्ट निवारत विघ्न हरण, सुख सागर तेरा जाप..
ममता मूरत दयानिधि हरो भगतन के पाप…
मृग तृष्णा की भांति माँ , भटक रहे हम लोग ….
मन मंदिर नहीं झाँकते, सहते सोग वियोग…
दुख कठरिया का सिर पे, पर्वत सम है भार…
सिंगवाहनी भय मोचनी, हमरे कष्ट निवार…
जय जय वैष्णो माँ…. जय जय वैष्णो माँ…
माँ के सिवा ना समझता, कोई बच्चों की बात…
जीवन वृक्ष है सूख रहा, झड़ गए फूल और पाक….
दीमक बन कर खा रहा, तिल तिल माँ संताप….
हर पल हमें डरा रहे, भय जंजाल के सांप…
मैया रोग विनाशिनी, पण धन वंत्रिया…
निज चर्णन की धूल से, हृदय की पीड़ मिटा…
शक्तिहिन को दे शक्ति, जाग्रति कर सम्मान..
विचलित हो रही आस्था, दया कर दया निधान…
जय जय वैष्णो माँ… जय जय वैष्णो माँ….
लाल चुनरिया तान के, ढक लो निज संतान…
घट घट की तू जानती, हम बालक नादान….
शोक निवारणी वैष्णो, हर हर मन का शोक…
तुझ बिन दुविधा हमें पड़े, हमरे लोक परलोक…
दसों दिशाओं में छायी,ग़म की घटा घनघोर…
असहाये है सुझे ना, अब जाये किस ओर…
आत्म बल है सो गया, हिम्मत गयी है टूट…
तुम तो दो माँ आसरा, भाग गए है रूठ…
जय जय वैष्णो माँ… जय जय वैष्णो माँ..
आशा किरण दिखा हमें, घेर खड़ा अंधकार…
कर बांधे बिनती करे, कर भी दो उदार..
हीन भावना ने मन की, शान्ति ली है छीन..
मंद बुद्धि हम तड़पते, जैसे जल बिन मीन…
ह्रदय सरोवर मे कोई, आस का कमल खिला…
अंत करे जो तिमर का, करुणा जोत जला…
आहत हुई हर भावना, छलनी हुआ विश्वाश..
ऐसी दुःखद अवस्था मे, ज्ञान का दो प्रताप..
जय जय वैष्णो माँ… जय जय वैष्णो माँ…
जय जय वैष्णो माँ… जय जय वैष्णो माँ…
वैष्णो माँ तू जग की जननी, अत्याचारन अन्नाय की धमनी..
तन मन मेरा रस प्रेम का भर दो, साधक का कल्याण माँ करदो…
जानो माँ मंत्वय हमारा, हम करते है ध्यान तुम्हारा..
दुर्बल को बलवान बनादो, हे माँ शक्तिवान बनादो…
हम अपराधी द्वार खड़े है,सर पापों के बोझ बड़े है..
पश्चाताप का बल माँ देना, जले हुए को जल माँ देना…
आत्मा मे प्रवेश करो माँ, सारे कष्ट कलेश हरो माँ…
तेरा आकर्षण लाया हमको, द्वार आलौकिक भाया हमको..
दुर्गमकाज को सुगम बनादो, धूंदले जीवन को चमकादो..
मानसिक रोगों से सब पीड़ित, तेरी दया बिन रहे ना जीवित..
उन्नति के पग को जमने देना, पाप ना फिर से पिनपने देना…
जाप तुम्हारा रंग जमाये, अदभुत ही प्रकाश दिखाए..
शिक्षा स्वास्थ योग्यता देना, तन को सदा निरोगता देना..
शक्ति तेरी की विद्मुत धारा,धो देगी अधिकार हमारा…
भक्त जनों को तारने वाली,रजनी चर संघार ने वाली…
तेरी गुफा मे अमृत बहता, अंतरघट को शीतल करता..
जिसने तेरा सुमिरन कीना, उसको तूने सब कुछ देना..
तेरी जोत जगे कण कण में, है प्रकाश माँ धरती गगन मे…
तेरा चिंतन अति अनूपा , तू है दिव्य आंनदसरुपा…
तू चिंतक की चिंता हरती, धन वैभव से कोष है भरती…
दुख नाशक सुख कारनी, वैष्णो मंगलारूप..
युग युग से रस बाँटते , तेरी दया के धूत..
अपरम्पार आलौकिक शक्ति,सुर नर करते तुमरी भक्ति..
हे माँ अन धन देने वाली, दीनहीन की करे रखवाली..
हर साधक की सुनती विनती, तेरे गुणों की होये ना गिनती…
चरण शरण में हमको लेना, डावाढ़ोल है आश्रय देना..
मन पे अंकित नाम हो तेरा, रोम रोम पे धाम हो तेरा..
तेरी दया के याचक हम है, मन से तेरे उपासक हम है..
शुद्ध भावना भर दो मन में, दिव्य उजाला कर दो मन मे…
आठो पहर माँ तुम्हे ध्यावें, भक्त माँ तुझसे दूर ना जाए..
हमें माँ अपने द्वार बिठालो, पद पकंज की धूल बनालो..
घोर कष्ट ने घेरा हुआ है, अपनों ने मुँह फेरा हुआ है…
देखा घूम के यह जग सारा, तेरे बिना ना कोई सहारा..
चिंतामणी माँ चिंता हरना, भार माँ कुछ तो हल्का करना..
किया बहुत तक़दीर ने रगड़ा, करे किसी से क्या माँ झगड़ा..
होनहार है होकर रहती, जीवन तो है धारा बहती..
दुख से निपटा जा सकता है, गम पर झपटा जा सकता है..
बुरे समय मे साथ माँ देदे, सिर पर अपना हाथ माँ देदे…
चोटें सहन माँ कर जायेंगे, जख्म समय पर भर जायेंगे..
यदि तू गले लागले हमको, छाया तले छुपा ले हमको…
लेकिन जिससे रूठ तू जाए, उस नैया को कौन बचाये..
तुद बिन कांटे कौन चुनेगा, तू नहीं तो कौन चुनेगा…
माँ के होते क्यों उजड़े, बच्चो का संसार…
वैष्णो माँ जगतारनी, कहा हो हमरी बात…
वो है व्यक्ति महा मतभागी, बने ना तुम्हारे जो अनुरागी…
अंत करो दुरभावना का माँ, बीज बोना सदभावना का माँ..
आत्म बोध करा दो हमको, दया का काज सीखा दो हमको..
बुरे विचारों से माँ बचाना, मनोविकारों से माँ बचाना…
किसीको दुविधा मे माँ ना डाले, क्यों ना अपना आप संभाले…
चेतन शक्ति जाग्रति करदो, मन मे मैय्या सतगुण भरदो..
आशा दीपक जगने देना, श्रद्धा को फल लगने देना…
लोक निंदा से दूर ही रखना, प्रेम से घर भरपूर ही रखना…
भ्रम का दुष होता, सिद्ध कोई व काम ना होता..
तुझ बिन हम निर्भल जन माँ, भजन पाठ का देदो धन माँ…
मनोभाव से शुद्ध रहे माँ,सत्य की गंगा मे बहे माँ…
ईष्या और प्रतिशोद भगादो, साचे प्रेम का रंग चढ़ादो…
आतंरिक शांति कम ना होवें, गम मे भी कभी गम ना होवें…
न्याय के पथ पर सदा बड़े हम, किसी से ना अन्याय करे हम..
पीड़ पराई को हम जाने, बुरे भले को सदा पहचाने..
कभी विषैले भाव ना बाँटे, पत्थरों में से मोती छाँटे…
किसी का भी तिरस्कार ना होवें, प्रेम नाम मझदार ना होवें…
घृणा की दलदल से बचाना, नेकी का हमें पाठ पढ़ाना..
जितने विलास के साधन होंगे, उतने भयानक बंधन होंगे..
जब प्रतिष्ठा दाव पे लगती, अग्नी है अभिमान की बढ़ती..
चरण पाधिका पर हमरे, झुके रहे यह शीश..
स्वर्ण सी गोद बिठाकर माँ, मन से दो आशीष…
महाभंडार शक्ति का माँ, दान देदो हमको भक्ति का माँ…
सदमार्ग को कभी ना छोड़े, दया धर्म से मुँह ना मोड़े..
सिद्धिया नहीं असंभव माता, तेरे लिए सब संभव माता..
हमी से कदम बड़ा नहीं होता, तू चाहे तो क्या नहीं होता…
महादेवी तू महासुखदायी, तू महामाया तू महामाई..
श्रद्धा मन में उत्पन्न करदो, स्वरगुणो से सम्पन्न करदो..
अत:करन वास हो तेरा, और भी दृढ़ विशवास हो तेरा..
तेरी किरपा के पात्र रहे माँ, सुख समझ के दुख सहे माँ..
हर तूफान को सहना सीखें, तेरी मौज में रहना सीखें…
जो बोया वो काटना होगा, माँ भुगतान तो करना होगा..
श्री धर ने भी कष्ट है झेले, क्या क्या खेल थे तूने खेले..
दाने दाने को वो तरता, संकट का घन उसपे बरसा..
भाग्य को जो है कोसते रहते, नर्क सदा ही भोगते रहते…
भाग ने अपना काम है करना, न रुकना ना किसी से डरना..
जो भी बनाया बिगड़ा अच्छा, पिछला कर्ज उतरा अच्छा…
अगला रास्ता साफ माँ कर दो, पिछली भूलें माँ माफ कर दो..
पश्चाताप का ढंग सिखा दो, अपनी सच्ची लगन लगा दो..
तेरी दया जब रंग दिखाती, सूली को है शूल बनाती…
हम ना ध्यानूं जैसे माता, ज्ञान ध्यान ना कुछ भी आता…
तेरे सहारे छोड़ दी नैया, कर जो तेरी मर्जी मैया..
बाण गंगा के नीर से, धो लो सभी विकार…
दया करो परमेश्वरी, विनय यह बारम्बार…
सुख समृद्धि वैभव सारे, वैष्णो मैया पास तुम्हारे…
किसको कब है कितना देना,तुझे पता माँ कितना देना…
शंका संशय और संदेह, कोई माँ तुझ पर क्यों करे..
दिशाहीन को दिशा दिखा दो, सत्गुण की मां जोत जला दो…
जप तप पूजा पाठ जो करते, भक्ति लग्न की बात जो करते…
परीक्षा उनके कथन की होती, जाँच सभी के मनन की होती..
खोटा खरा सब परखा जाता, तम खम सबका देखा जाता…
फुलो की जो इच्छा रखे, काटों पार भी सो कर देखे…
माला पकड़ने से क्या होगा,भगवा पहनने से क्या होगा..
जब तक मन का हो ना मंथन, कैसे माँ होंगे तेरे दर्शन…
हम स्वार्थी क्या कुछ करते, गिरगिट से है रंग बदलते…
लेकिन इतना समझ ना पाए, गिरगिट भी है तूने बनाये..
तेरी ही रचना तुझे सिखाये, रहबर को ही राह दिखाए…
ऐसे मूर्खो पे तू हस्ती, दया कभी ना उनपे करती..
भैरों भी तो था महा योगी, कुछ तो तपस्या की माँ होगी..
पतन हुआ जब उसका मैय्या, डूब गयी मझदार मे नैया…
पुण्य और पाप का भेद ना जाने, छल और जाप को ना पहचाने..
तुझसे भिक्षा क्या वो लेंगे, धर्म की शिक्षा क्या वो लेंगे…
जिसने माँ कुछ पाना होगा, निर्मल होकर आना होगा..
करनी कथनी इक जो होगी, तेरी दृष्टि तभी तो होगी…
आदकुंवारी भय वारी, अपनी कला दिखा…
हम है कागा कर्म के, हमको हंस बना…
चित से चिंतन करना आये, भाव से वंदन करना आये…
जब तक है हम मन के, वश मे …
कैसे बहेंगें भक्ति रस मे,
पति परायाण जैसे नारी..
वैसी निष्ठा हो जो हमारी,फिर माँ तुम्हारा प्यार मिलेगा..
अंतर मन का द्वार खुलेगा…
कच्ची नींव से कोई ईमारत,
लें आती है इक दिन शामत…
आस्था नाव मे छेद जो होगा,
देगी वो भवजल मे धोखा…
मन में भरो निष्काम भावना,
यह है हमारी मनोकामना…
सेवापद के पतित बने माँ,
मन की इच्छा नहीं कर माँ…
हमें ना नास्तिक कभी बनाना,
धर्महीन नर पशु समाना…
हम ही हैं जब मन के काले,
औरो के क्यों दोष निकाले…
तेरे भजन पर धयान है देना,
क्या कोई कहता हमें क्या लेना…
साधक ने है साधना करनी, आँखें मूद अराधना करनी..
किसी आलोचक से ना डरना, निंदा शब्द पे कान ना धरना…
तेरी चौखट से जुड़ जाना, जग के झंझट से मुड़ जाना.
हमने गंगा मे पग धरना, गंगा जाने क्या फिर करना…
यदि उपासना होगी सच्ची, तेरी भी दृष्टि होगी अच्छी..
तन का स्नान बड़ा करवाया, मन को स्वछ ना कभी ना बनाया..
वो मन कैसे मंदिर होगा, छल जब उसके अंदर होगा..
मछली आठों पहर नहाती, फिर वी वो दुर्गन्ध ना जाती..
क्योंकि मन तो धुला कभी ना,
भीतर का पट खुला कभी ना…
करुणामई करूणेश्वरी, ऐसी नजर से देख…
तेरे उपासक का होवें, भीतर बाहर एक…
तू रत्नाकर कन्या माता, नस नस में है रमे विधाता…
रघुवर दीप जगे तेरे मन मे, तेरे सुगंधी है कण कण मे..
जिस घट तेरा नाम समाया, उसे ना घेरे झूठी माया..
उस पर चाहे आग व बरसे, तू नहीं जाती उसके घर से..
क्यों ना आग से धरती फूटे, कष्टो का आकाश भी टूटे..
फिर व तेरे पग ना छोड़े, तेरे भजन से मुँह ना मोड़े…
जब तू किसी की परीक्षा लेती, मृत्यु सम जीवन कर देती..
उसकी दशा मे जो ना डोलें, दुनिया उसकी जय जय बोलें…
जो संतोषी कर्म का योगी, उस पर तेरी करुणा होगी..
भयग्रस्त का भय तू हरती, चिंतक की सहायता करती..
जो पुरूषार्थ लग्न से करते, भवसिंन्दु से वो ही तरते..
आलस मे जो खो है जाता, भाग्य भी उसका सो है जाता..
जिनके अर्चन से खुश होती, उनके कंकर बनते मोती..
तेरी दया से पँख जो लगते,साधक उन्नति गगन मे उड़ते..
देवी शक्ति का तू सागर, सत्य कर्म की जोत उजाकर..
तेरे सनमुख सूरज फीका, रूप है तू पार्वती का माँ..
तेरी आर्कषक छवि जो देखी,आँख चँदनिया की हुई नीची…
गुण गौरव की खान तू माता,संकट का समाधान तू माता…
जो तेरे चरणन की रज पाता, वो विष वी अमृत हो जाता..
यश कीर्ति सुख सम्पति ,सच्चे भगतो को ही मिलती…
कौलकंदौली मे मईया,पावन तेरा धाम…
जहां भी अमृत का झरना, बेहता आठो याम..
नियम भक्त हर काज तुम्हरा, त्रिभुवन में है राज तुम्हारा…
मानो हमरा नम्र निवेदन, करते रहे कर्तव्य का पालन..
दान भावना मन मे आवे, सच्चे मानव हम बन जाए…
बाँट के खाना आ जाए हमको, धर्म निभाना आ जाए हमको…
ठुरता और निष्ठुरता त्याग के, कर्म के पथ से कभी ना भागे…
दानवीर माँ हमें बनादो, भेद भाव की सोच मिटादो…
कभी ना सोचे बुरा किसी का, भला ही होता रहे सभी का..
पाप की हमपर पड़े ना छाया, छीने ना हम हक पराया…
घायल की गति कैसी होती, घायल होकर जानी जाती…
कठनाईयौं को झेलना सीखे, हर मुश्किल से खेलना सीखे..
धन का सदुपयोग करे हम, औरो के दुख दर्द हरे हम..
क्रांति से है शांति अच्छी, शांति ही है भक्ति सच्ची…
माया नदी में ज़ब है बहना, डूब गए तो किसको कहना..
क्षणभंगुर संसार से नाता, जाने कब क्या करे विधाता…
अंधा ज़ब कोई भटके माता, आँख वाला है राह दिखाता…
तेरी किरपा भी वैसी मैया, पार लगाती डोलती नैया…
दुर्लभ नरतन छुट जब जाता, जग से नाता टूट जब जाता…
अगला सफर माँ तेरे सहारे, तुज बिन बालक किसे पुकारे…
सुमिरण की जो पावन धारा, वो अमृत निर्दोष न्यारा….
इस अमृत का पिये जो प्याला, मईया वो जन किस्मत वाला…
तेरी करुणा की सुदा,बरसत माँ दिन रेन….
मनवा को दे शांति,पुलकित करती नैन..
जय जय वैष्णो माँ…. तुझसा कोई कहाँ ..
जय जय वैष्णो माँ….. पूजे तुझे जहाँ…..
जय जय वैष्णो माँ…… मुश्किल कर आसान…
जय जय वैष्णो माँ…… बोले सारा जहान…..||
वैष्णो सुख संजीवनी, कर दुखों का अंत…..
पतझड़ की रुत रोक के, लादों मधुर बसंत…
शक्ति का भंडार तू,जीव है हम कमजोर……
डगमग पग यह डोलते,थामे रखियो डोर……
थर थर काबे पिंजरा, इसे करो निर्भीक……
हाथ पकड़ के ले चलो, जो लगे मार्ग ठीक…..
आत्मग गलानि ने मईया, छीना मन का चैन….
शीश शर्म से है झुके,छम छम बरसे नैन….
जय जय वैष्णो माँ, जय जय वैष्णो माँ….
सरस्वती काली लक्ष्मी, के जो पावन नाम….
इनका संगम रूप है, तेरा अलौकिक धाम…..
शारदा रूप हो अम्बिके, करुणा के पट खोल….
विषमकटीली वाणी के, मदुमय करदो बोल……
काली बन त्रिकाल की, चिंता कीजो दूर…
महादाती के लाल क्यों, जग मे फ़िरे मजबूर….
होने ना दो महालक्ष्मी, धन का कभी अभाव….
नस नस भीतर माँ रहे, दया धर्म सद्भाव…..
जय जय वैष्णो माँ, जय जय वैष्णो माँ…..
तेरी जोत अखंड माँ, खंडित है हम जीव….
तृष्णा भवन तो बड़े बड़े, कच्ची है पर नीवं….
जगत की आज सितार का, स्वार्थ बड़ा संगीत….
कभी कष्ट जो आ पड़े, कोई ना दिखता मीत…
सुख के संगी लाख है, दुख मे माँ ना एक….
क्या है तमाशा जगत का, निज नैनो से देख….
गरज है माथा रगड़ती,गरज बंधावे हाथ….
उड़े जो पंक्षी गरज का, कोई भी चले ना साथ….
जय जय वैष्णो माँ…जय जय वैष्णो माँ….
रक्षक भक्षक हो जहा,खेत को खावे बाढ़….
अपने भक्तों के तू ही, माँ आके काज सवार…
वैष्णो मां भय भंजना, कष्ट हरण तेरा द्वार…
तुझ बिन जीवन नाव को, कौन लगावे पार ….
इक-इक करके माँ सभी, गए हैं हमको छोड़….
दुख के घोर अंधकार में, तू तो मुंह ना मोड़…..
काम धेनु का काम है, सबकी हरना पीड़…
फिर क्यों प्यासे हम खड़े,दया सागर के तीर…..
जय जय वैष्णो माँ… जय जय वैष्णो माँ….
जय जय वैष्णो माँ… जय जय वैष्णो माँ….
जय जय वैष्णो माँ… जय जय वैष्णो माँ….||
वैष्णो जो तेरी शरण में आता,उसको ना दुर्भाग्य सताता…
दुर्लभ वस्तु सुलभ हो जाती, जब तेरी शक्ति रंग दिखाती…..
जाप तेरा जब लीला रचाता, भव नदी का जल सूख है जाता…
भक्त का निश्चय अचल है रहता, मार समय की वो नहीं सहता….
तुजसे ज्ञान अज्ञानी पाते, अनपढ़ पंडित भी बन है जाते….
राई का दाना पर्वत बनता, जो तेरे चरण कमल से लगता….
पंच तत्व की हर इक काया, वैष्णो माँ सब तेरी माया…
जन्म मरण के चक्र सारे, हे जग जननी खेल तुम्हारे….
किसको कब क्या रूप है देना, किसको देकर वापिस लेना….
यह है अनबुज एक पहेली, जिसे समझ सका ना कोई भी….
तेरा भवन शांति निकेतन,आग उगलते जहाँ ना दुर्जन….
तू है सच प्रेम की धारा, अनुपम रस है प्राण अधारा….
तू है महा कल्याण की ज्योति, अर्चना तेरी घर घर होती…..
बुद्धि विवेक बढ़ाती तू ही, भाग्य भी चमकाती तू ही..
तेरी आशीष औषधी जैसी, कोई भी वैद्य ना देगा ना ऐसी…
दोष रहित तू हमें बनाती, पल मे कुछ का कुछ कर जाती….
धन धान से घर वो भरती,कभी अहित ना
किसी का करती…
छाया मिलती वृक्ष की जैसे, हम तेरी ममता पाते वैसे….
करुणासुदा से धोई जो काया, तूने उसे निष्पाप बनाया..
भाव से जो तेरे भवन है जाते,दास के राजा बन वो जाते…
दिशा दिशा तेरे नाम का, डंका बजे दिन रात..
प्यासे प्यासे तरसते, सुधा की कर बरसात…
लालच कपट क्रोध जो तजते, वैष्णो वो तुम्हे प्यारे लगते…
माया मारिचीका से जो बचते, वो तेरा निसदिन सुमिरन करते…
नाम्र धनी और सच्चे त्यागी,ग्रस्त मे भी जो है अनुरागी…
वो कभी तुझसे दूर ना होते, सपने माँ उनके चूर ना होते..
आत्मा जब बलवान हो जाती, वोही महात्मा है कहलाती..
मन ना जब अभिमान से फुले,उसको तू माँ कभी ना भूले…
नास्तिक मन से मुर्दा होता, पाकर भी वो सब कुछ खोता…
जिस मनवा मे आस्था होगी, वो नहीं होता पाप का रोगी..
मन को स्वस्थ है जो बनाते, सच्चे संत वही कहलाते…
उनके मन मे सदा सवेरा, वही भवानी तेरा बसेरा..
शुभ करमों मे लगा जो मन है, उसके पास धर्म का धन है…
जिसको चोर चुरा नहीं सकता, पथ से कभी गिरा नहीं सकता..
शुद्धता सच है जिसके अंदर, उस मन मे है तेरा मंदिर…
बुरे से भी जो भलाई करता, वो ही असल कमाई करता…
मन तो है मतवला हाथी, उसे बनाये जो अपना साथी….
वो ही उसको वश मे रखता, वो ही उसका आनंद चखता..
जो जन खोटी बुद्धि वाले, तन के उजले मन के काले….
द्वेष की वो जो आग जलाते, स्वंय वो उसमे ही जल जाते….
अहम मूर्खता की है निशानी, जो नहीं भाती तुम्हे भवानी….
दया भाव की जिस घर ज्योति,वहां अनुकाम्पा तेरी होती….
सिद्धी कारक माँ तेरा, अदभुत पिंडी रूप….
प्रेम कि किरणे बांटती, तेरी ममता की धूप….
माँ तेरा मन नवनीत समाना, श्रद्धा ताप से पीघल है जाना….
तू कभी पत्थर हो नहीं सकती, भक्तो की नाव डुबो नहीं सकती….
यश अपयश से तुम्हे न मतलब, पुरे भले रस से तुम्हे न मतलब….
तू तो अंत: भाव परखती, नेकी पदी पर नजर है रखती….
अपने आप को जीतने वाले, बनते तेरे भक्त निराले….
देख दुखी को दुखी है होते, वो तेरा प्यार कभी ना खोते….
घड़ा जो मिटी से ही बना है, वो मिटी से भिन्न कहाँ है….
चाहे शक्ल बदल है जाती, फिर भी मिट मिटी रहती….
इसी लिए सब कहे सयाने, जन्म दिया है सबको माँ ने….
माँ के थे हम माँ के रहेंगे, ममता रस मे सदा बहेंगे….
पुण्य आत्मा पापी जन का, अंतर खोटे खरे है मन का….
नमक कपूर का रंग सफेद, लेकिन गुणों में बड़ा ही भेद….
अच्छे बुरे का फर्क जो जाने, तेरी छवि को वो पहचाने….
ज्ञान के चक्षु खुल जब जाते, हम तेरी ज्योत में है मिल जाते….
जिससे तू संतुष्ट हो माता, ऐसा कर्म जो कर है जाता….
उसकी काटे तू चौरासी, तृप्त तो हो उसकी आत्मा प्यासी….
तेरे कीर्तन में जो खोए, वही तेरे निकट माँ हुए….
तेरे पग से लगे जो माथा, वही सुख आलौकिक पाता….
दया भारी हो जिसकी वाणी, जिसने पीर पराई जानी….
उसे पर तेरा प्यार निछावर, वह दुख सहती उसकी खातिर ….
स्वर्ग से सुंदर भवनो में, वैष्णो तेरा निवास….
जहां पे भक्तन की बुझे, जन्म जन्म की प्यास….
जिसने तेरा फैसला माना,विपत्ति को संपत्ति जाना….
इतना जो संतोष है करते, वही जन निर्दोष है बनते….
उच्च पवित्र भावना वाले, साधक सच्ची साधना वाले….
बिना संकोच दान है करते, औरों का कल्याण है करते….
नश्वर तनता जो है भुलाता, मैया वो ही है ऋषि कहलाता….
किसको तूने क्या है बनाना, तेरी मौज को किसने जाना….
हम हैं ताना तनते जाते, तृष्णा के है महल बनाते….
क्या जाने वहां कौन रहेगा,बोलेगा या मौन रहेगा….
कब क्या होना तुझे पता है, कठपुतली के वश में क्या है….
जागते पल में सोते देखें, हंसते-हंसते रोते देखें….
कैसे खुशी का पर्व करें हम, किस वस्तु का गर्व करें हम….
पल का यहां भरोसा क्या है, इन सांसों से आशा क्या है….
हम तो जब भी खुशी से झूमे, तारे जब आकाश के चुमे….
ऐसी चप्पत लगाई है तूने, घड़ी में होश उडाई है तूने….
काप गया तृष्णा का बच्चा, तूने किया माँ होगा अच्छा….
लेकिन हमको बड़ा वो अखरा,मिल ही गया विश्वास हमरा..
शांत मन से सोच के पाया, क्या लाए थे जो है गवाया..
दिया भी तूने लिया भी तूने, तेरा अमृत पिया भी तूने…
मोह ममता है दुख का कारण, उसका तेरे हाथ निवारण…
मैया वैष्णो शरण में ले लो ,अब ना आँख मिचोली खेलो..
लाल सी नागिन बन गई इच्छा भयी कटार,
दोनों दुश्मन जानके जाए कहां संसार..
जब जब घेरती है कठिनाई ,तब तब तेरी याद माँ आई..
और ना कोई दुख में अपना, रिश्ते नाते हैं एक सपना…
समय की जब माँ मार है पड़ती, हर्ष की चिड़िया सूली चढ़ती..
पड़ जाते जब जान के लाले ,तेरे सिवा माँ कौन संभाले..
दुनिया चाहे कुछ भी कहे माँ, चाहे ना अपना कोई रहे माँ..
चरण सरोजना तजेगें तेरे, तुझे भजेंगे सांझ सवेरे..
करके देख बड़े यत्न माँ, तेरी कसौटी बड़ी कठिन माँ..
इतनी मानव में कहां शक्ति ,कर तेरी जो निष्काम जो भक्ति…
हमने जब संसार में जीना ,कुछ तो होगा खाना पीना..
कुटिया चाहिए माँ रहने को, कपड़ा चाहिए तन ढकने को..
शिशु का पालन पोषण करना, सुख के पैदा साधन करना..
एक जान के सो सो लफड़े ,किसी से प्रेम किसी से झगड़े..
यह जो सब संसारिक चक्कर, इनसे कौन माँ लेगा टक्कर…
इनसे नाता टूटे कैसे, मैया जी पीछा छूट कैसे..
इनकी कामना सबको होगी ,इनकी याचना सबको होगी..
जब तक तृष्णा पीछा करती ,कैसे हो निस्वार्थ भक्ति..
जब तक कोई जग में रहता ,वो प्रलोभन से नहीं बचता..
ग्रस्थी हो या कोई योगी ,मनोकामना कुछ तो होगी..
जीवन की यह विकट अवस्था, कोई सुजा माँ तू ही रास्ता..
बड़ी ही दुविधा की घड़ी है ,हर पल उलझन नहीं खड़ी है..
मानव बैठा यदि रहे हाथ पे रख के हाथ
तू ही बता माँ वैष्णो फिर कैसे बनेगी बात..
हे मातेश्वरी ज्ञान का वार दो, बोझ गमों का हल्का करदो..
सुख का आनंद चखने दो माँ ,घर संसार महकने दो माँ..
अच्छो का सादा संग करें हम, दुर्बल को ना तंग करें हम..
अध्यायन करें ग्रंथों का माँ, आदर करें हम संतो का माँ…
प्रभु पारायण रहे हमेशा, सच्ची मुंह पर काहे हमेशा..
अवगुण को सद्गुण से मारे, दया धर्म से कभी ना हारे..
करते रहे निरजांच है मैया, साफ रहे मान काँच है मैया..
तेरे द्वार न करे दिखावा,डोंग रहे ना कोई छलावा..
त्याग करें हर बुरे कर्म का, पालन हो मां दया धर्म का..
सदा हमारे चोले धोना ,अच्छे भाव कलंकित हो ना..
उडा सभी बहारों हमरा ,लोक परलोक सवांरो हमरा..
सदा उदारता रखियो मन में ,छलना हो कमाए धन में..
साधु संतों की करें सेवा, शुभ वचनों का लूटे मेवा..
दया विनय और सहनशक्ति, तेरी करुणा बिना ना मिलती..
झूठ की हम दुर्गंध को जाने, सच की मां सुगंध पहचाने..
जिस कुटिया में नियत सच्ची ,वो मैया जी स्वर्ग से अच्छी..
जीवन के निर्वाह के रास्ते ,सदा चल मन हंसते-हंसते..
औरों का ना छीन के खाएं ,थोड़े में ही शुक्र मनाए..
पर्वत पर है रहने वाली ,भार जगत का सहने वाली..
भव सिंधु से पार करो मां ,शरण में है उदार करो माँ..
हे जननी जगदीश्वरी जग की पालनहार
बसा रहे इन नैनन में सच्चा तेरा दरबार
अच्छे पथ के पथिक बने हम, कभी कुमार्ग पर ना चले हम..
शुभ अशुभ सब झेलना सीखे, हर संकट से जूझना सीखे..
जीभ से बात माँ मीठी बोले, वैर भाव का विष ना घोलें..
यह तेरी दुनिया दो मुँही नागिन, हमें है बनाना सच का चंदन..
वासनाओं का दानव कुचले ,कुंदन होकर आग से निकले..
किसी के दिल का तोड़े न दर्पण ,दुखी को खुशियां कर दे अर्पण..
नाशवान हर चीज जगत की, उन चीजों की छोड़ें आसक्ति..
हृदय नाम पर बोझ बड़े ना, दुष्परिणाम ना देखना पड़े मां..
तेरा हर समय भजन करें माँ, भवनीधि तारक यत्न करें मां..
अपने से छोटे को नहीं डांटे, बोये न औरों के पग में कांटे..
लौकिक वस्तु का मोह त्यागे, सबको जगाए स्वयं भी जागे..
दान आदि सत्कर्म करें हम ,ना ही प्रशंसा अपनी सुने हम..
भर दो मन में शुद्ध भावना, सहनी पड़े ना नरक यातना..
हुआ संयोग वियोग भी होगा, स्वास्थ्य है तन तो रोग भी होगा..
दिन जो उदय तो रात भी होगी, सूखा पड़ा बरसात भी होगी..
जीवन है तो मृत्यु भी आनी, यह दुनिया तो बहता पानी..
जहां पर आशा वहां निराशा ,ये ही कुदरत का है तमाशा..
हमें डुगडुगी पे नाचते रहना, मलिक को ना कुछ भी कहना…
सुधा संग विष भी पीना सिखा दो ,हमें हर हाल में जीना सिखा दो…
रखे उपकार हम याद तुम्हारा, सदा करें धन्यवाद तुम्हारा..
हे मां मंगलकारणी करो अमंगल दूर
सुख सामग्री देकर के करो हमें भरपूर
हर बंधन सांसारिक टूटे ,लेकिन तेरी दया ना रूठे..
अमृत से ना प्यासा रखना, दृष्टि में हमारी आशा रखना..
ज्ञान का गौरव सदा बढ़ाना, पतित अवस्था कभी ना लाना..
हर उलझन से मुक्त में रखना, जीवन आस्था युक्त मां रखना..
भर दो सबको सुख पहुंचाएं चींटी को भी कभी ना सताए..
दान का मन ढिंढोरा पीटे, मां की शांति का सुख लूटे..
दुनिया में हम कहीं भी जाएं, चित तेरे चरणों में लगाएं..
भटके ना संतुष्ट रहे हम, कर्म डगर पर पुष्ट रहे हम..
तू भी सच तेरा द्वार भी सच है, तू निराकार साकार भी सच है..
मन में तेरी जिज्ञासा सच है ,जागृत हुई अभिलाषा सच है..
जोत है सच माँ उजाला सच है, कृपा है सच कृपाल सच है..
निष्ठा सच है निश्चय सच है,इष्ट तू सच तेरा आश्रय सच है..
फूलों में तेरा हंसना सच है, कण-कण में तेरा बसना सच है..
ऋतु का चोले बदलना सच है, तेरा धन बनके बरसना सच है..
तेरा हर दिशा में रहना सच है, गंगा रूप में बहना सच है..
सागर बनके उछालना सच है, पवन के पंखों से उड़ना सच है..
छाया संग धूप में देखे सच है, तुझे जिस रूप में देखे सच है..
तू हर धाम में सच ही सच है, माँ हर नाम में सच ही सच है..
सदा कर अभिनंदन तेरा, शुद्ध भाव से वंधन तेरा..
सचमुच तू मां जग रखवारी, हमें बना निर्दोष पुजारी..
सुधा का मान सरोवर तू तुझे निहारे नैन
हंस बनकर प्रेम के मोती चुगे दिन रैन
जय जय वैष्णो माँ…. तुझसा कोई कहाँ ..
जय जय वैष्णो माँ….. पूजे तुझे जहाँ…..
जय जय वैष्णो माँ…… मुश्किल कर आसान…
जय जय वैष्णो माँ…… बोले सारा जहान…..||
पावन करता है रूह को सत्पुरुषों का सत्संग