करवा चौथ व्रत कथा

करवा चौथ व्रत कथा

कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत किया जाता है। यह स्त्रियों का मुख्य त्याहौर है। सुहागिन स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करती हैं।

करवा चौथ विधान

एक पट्टे पर जल से भरा लोटा एवं एक करवे में गेहूं भर कर रखते हैं। दीवार पर या कागज पर चन्द्रमा बनाकर उसके नीचे शिव तथा कार्तिकेय की चित्रावली बना कर पूजा की जाती है। इस दिन निर्जल व्रत किया जाता है। चन्द्रमा को देख कर अर्घ्य देते हैं फिर भोजन करते हैं।

करवा चौथ की कथा

एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। सेठानी के सहित उसकी बहुओं और बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा था। रात्रि को साहूकार के लड़के भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी बहन से भोजन के लिए कहा। इस पर बहन ने उत्तर दिया- भाई! अभी चांद नहीं निकला है, उसके निकलने पर अर्घ्य दे कर भोजन करूंगी।

बहन की बात सुन कर भाइयों ने क्या काम किया कि नगर से बाहर जा कर अग्नि जला दी और छलनी ले जा कर उसमें से प्रकाश दिखाते हुए उन्होंने बहन से कहा- बहन! चांद निकल आया है, अर्घ्य दे कर भोजन कर लो।

यह सुन उसने अपनी भाभियों से कहा कि आओ तुम भी चन्द्रमा को अर्घ्य दे लो, परन्तु वे इस काण्ड को जानती थीं उन्होंने कहा बहन जी ! अभी चांद नहीं निकला, तेरे भाई तेरे से धोखा करते हुए अग्नि का प्रकाश छलनी से दिखा रहे हैं। भाभियों की बात सुन कर भी उसने कुछ ध्यान न दिया और भाइयों द्वारा दिखाए प्रकाश को ही अर्घ्य दे कर भोजन कर लिया।

इस प्रकार व्रत भंग करने से गणेश जी उस पर अप्रसन्न हो गए। इसके बाद उसका पति सख्त बीमार हो गया और जो कुछ घर में था उसकी बीमारी में लग गया। जब उसे अपने किए हुए दोषों का पता लगा तो उसने पश्चाताप किया। गणेश जी की प्रार्थना करते हुए विधि विधान से पुनः चतुर्थी का व्रत करना आरम्भ कर दिया। श्रद्धानुसार सब का आदर करते हुए सब से आशीर्वाद ग्रहण करने में ही मन को लगा दिया।

इस प्रकार उसके श्रद्धा-भक्ति सहित कर्म को देख कर भगवान् गणेश उस पर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवन दान दे कर उसे आरोग्य करने के साथ-साथ धन-सम्पत्ति से युक्त कर दिया। इस प्रकार जो कोई छल-कपट को त्याग कर श्रद्धा-भक्ति से चतुर्थी का व्रत करेंगे वे सब प्रकार से सुखी होते हुए क्लेशों से मुक्त हो जाएंगे।

गणेश जी विनायक जी की कथा

एक अन्धी बुढ़िया थी जिसका एक लड़का और लड़के की पत्नी थी। वह बहुत गरीब थी। वह अन्धी बुढ़िया नित्यप्रति गणेश जी की पूजा किया करती थी। गणेश जी साक्षात् सन्मुख आ कर कहते थे कि बुढ़िया माई तू जो चाहे सो मांग ले।

बुढ़िया कहती मुझे मांगना नहीं आता सो कैसे और क्या मांगूं । तब गणेश जी बोले कि अपने बहू- – बेटे से पूछ कर मांग लो। तब बुढ़िया ने अपने पुत्र और पुत्रवधू से पूछा तो बेटा बोला कि धन मांग ले और बहू ने कहा कि पोता मांग ले।

तब बुढ़िया ने सोचा कि बेटा बहू तो अपने-अपने मतलब की बातें कर रहे हैं। अतः उस बुढ़िया ने पड़ोसियों से पूछा तो पड़ोसियों ने कहा कि बुढ़िया तेरी थोड़ी-सी ज़िन्दगी है । क्यों मांगे धन और पोता, तू तो केवल अपने नेत्र मांग ले जिससे तेरी शेष जिन्दगी सुख से व्यतीत हो जाए।

उस बुढ़िया ने बेटे और बहू तथा पड़ोसियों की बात सुन कर घर में जा कर सोचा, जिससे बेटा बहू और मेरा सब का ही भला हो वह भी मांग लूं और अपने मतलब की चीज भी मांग लूं। जब दूसरे दिन श्री गणेश जी आए और बोले, बोल बुढ़िया क्या मांगती है।

हमारा वचन है जो तू मांगेगी सो ही पाएगी। गणेश जी के वचन सुन कर बुढ़िया बोली – हे गणेश जी ! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे नौ करोड़ की माया दें, निरोगी काया दें, अमर सुहाग दें, आंखों में प्रकाश दें, नाती पोता दें और समस्त परिवार को सुख दें और अन्त में मोक्ष दें।

बुढ़िया की बात सुन कर गणेश जी बोले बुढ़िया मां तूने तो मुझे ठग लिया। ख़ैर जो कुछ तूने मांग लिया वह सभी तुझे मिलेगा। यूं कह कर गणेश जी अन्तर्ध्यान हो गए।

हे गणेश जी जैसे बुढ़िया मां को मांगे अनुसार आपने सब कुछ दिया है। वैसे ही सब को देना और हम को भी देने की कृपा करना ।

करवा चौथ का उजमन

उजमन करने के लिए एक थाली में तेरह जगह चार-चार पूड़ी और थोड़ा-सा सीरा रख लें। उसके ऊपर एक साड़ी ब्लाउज और रुपए जितना चाहें रख लें उस थाली के चारों ओर रोली, चावल से हाथ फेर कर अपनी सासू जी के पांव लग कर उन्हें दे देवें। उसके बाद तेरह ब्राह्मणों को भोजन करावें और दक्षिणा दे कर तथा बिन्दी लगा कर उन्हें विदा करें।

धनतेरस

आनंद संदेश

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