श्री दुर्गा पूजा पाठ विधि | दुर्गा सप्तशती

श्री दुर्गा पूजा पाठ विधि तथा पूजा-सामग्री

श्री दुर्गा जी की पूजा विशेष रूप से वर्ष में दो बार नवरात्रों में की जाती है। आश्विन शुक्ला प्रतिपदा को जो नवरात्र प्रारम्भ होते हैं, उन्हें शारदीय नवरात्र कहते हैं ।

चैत्र शुक्ला प्रतिपदा से आरम्भ होने वाले नवरात्र वार्षिक कहलाते हैं ।

माँ दुर्गा के भक्त को स्नानादि से शुद्ध होकर शुद्ध वस्त्र पहनकर मण्डप में श्री दुर्गा की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए।

मूर्ति के दाहिनी ओर कलश की स्थापना करनी चाहिए। कलश के ठीक सामने जौ बोने चाहिएं। मण्डप के पूर्व कोण में दीपक की स्थापना करे । गणपति की पूजा से आरम्भ करे ।

सभी देवी-देवताओं की पूजा के बाद श्री जगदम्बा की पूजा करे ।

सबसे पहले कवच का पाठ करे । फिर पाठ करके दुर्गा सप्तशती का पाठ प्रारम्भ करे, जो पहले बध्याय से प्रारम्भ होता है।

यदि प्रतिदिन १३ अध्यायों का पाठ न कर सकता हो तो तेरह अध्यायों में भगवती जगदम्बा के जो तीन चरित्र दिए हुए हैं, उनमें से किसी एक चरित्र का पूरा पाठ करे ।

जगदम्बा का प्रथम चरित्र पहले अध्याय में पूरा हो जाता है। दूसरा चरित्र जिसे मध्यम चरित्र भी कहते हैं, दूसरे तीसरे और चौथे अध्याय में पूरा होता है।

इन तीनों अध्यायों का पाठ एक साथ ही होना चाहिए। तीसरा उत्तम चरित्र अध्याय ५ से लेकर १३ तक है । इसका पाठ एक साथ ही होना चाहिए। पाठ करते समय एक ही आसन पर निश्चल बैठना चाहिए ।

पूजा सामग्री – जल, गंगाजल, पंचामृत, दूध, दही, घी, शहद, शर्करा, रेशमी वस्त्र, उपवस्त्र, नारियल, रोली, चन्दन, अक्षत, पुष्पमाला, धूप, दीप, नैवेद्य, फल, सुपारी, पान, लौंग, इलायची, दक्षिणा, बारली ।

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