श्री महाकाली चालीसा – Mahakali Chalisa

श्री महाकाली चालीसा

एक बार महाकाली बहुत क्रोध अवस्था में थी ।उनकी क्रोधाग्नि से समस्त पृथ्वी नाश होने पर आ गई थी ।

कोई भी देव,राक्षस और मानव उन्हें रोकने में समर्थ नहीं थे । तभी सभी ने महाकाली को रोकने के लिए समूहिक रूप से भगवान शिव का स्मरण किया ।

भगवान शिव ने मां काली के क्रोध को शांत करने के लिए मां काली के रास्ते में लेट गए महाकाली ने नीचे चरण रखते उस वक्त ध्यान नहीं दिया और अचानक से उनका एक चरण महादेव की छाती पर रखा गया । जब मां ने भगवान शिव को देखा तो वह उसी समय शांत हो गई।

यह महाकाली चालीसा एक भक्ति गीत है जो महाकाली माता पर आधारित है। महाकाली चालीसा एक लोकप्रिय प्रार्थना है जो 40 छन्दों से बनी है। महाकाली को समय और परिवर्तन की देवी माना जाता है।

॥ दोहा ॥

जय जय सीताराम के मध्यवासिनी अम्ब । देहु दर्श जगदम्ब,अब करो न मातु विलम्ब ॥

जय तारा जय कालिका,जय दश विद्या वृन्द । काली चालीसा रचत, एक सिद्धि कवि हिन्द ॥

प्रातः काल उठ जो पढ़े, दुपहरिया या शाम। दुःख दरिद्रता दूर हों, सिद्धि होय सब काम॥

॥ चौपाई ॥

जय काली कंकाल मालिनी। जय मंगला महा कपालिनी॥

रक्तबीज बधकारिणि माता । सदा भक्त जननकी सुखदाता॥

शिरो मालिका भूषित अंगे । जय काली जय मद्य मतंगे॥

हर हृदयारविन्द सुविलासिनि । जय जगदम्बा सकल दुःख नाशिनि ॥

ह्रीं काली श्री महाकाली। क्रीं कल्याणी दक्षिणाकाली ॥

जय कलावती जय विद्यावती ।जय तारा सुन्दरी महामति॥

देहु सुबुद्धि हरहु सब संकट । होहु भक्त के आगे परगट ॥

जय ॐ कारे जय हुंकारे । महा शक्ति जय अपरम्पारे॥

कमला कलियुग दर्प विनाशिनी । सदा भक्त जन के भयनाशिनी ॥

अब जगदम्ब न देर लगावहु । दुख दरिद्रता मोर हटावहु ॥

जयति कराल कालिका माता। कालानल समान द्युतिगाता॥

जयशंकरी सुरेशि सनातनि । कोटि सिद्धि कवि मातुपुरातनि॥

कपर्दिनी कलि कल्प बिमोचनि। जय विकसित नव नलिनविलोचनि॥

आनन्द करणि आनन्द निधाना। देहुमातु मोहि निर्मल ज्ञाना॥

करुणामृत सागर कृपामयी । होहु दुष्ट जनपर अब निर्दयी ॥

सकल जीव तोहि परम पियारा । सकल विश्व तोरे आधारा ॥

प्रलय काल में नर्तन कारिणि । जय जननी सब जग की पालनि ॥

महोदरी महेश्वरी माया । हिमगिरि सुता विश्व कीछाया॥

स्वछन्द रद मारद धुनि माही। गर्जत तुम्ही और कोउ नाही॥

स्फुरति मणिगणाकार प्रताने । तारागण तू ब्योम तू विताने॥

श्री धारे सन्तन हितकारिणी । अग्नि पाणि अति दुष्ट विदारिणि॥

धूम्र विलोचनि प्राण विमोचनि।शुम्भ निशुम्भ मथनि वरलोचनि॥

सहस भुजी सरोरुह मालिनी । चामुण्डे मरघट कीवासिनी॥

खप्पर मध्य सुशोणित साजी मारेहु माँ महिषासुर पाजी॥

अम्ब अम्बिका चण्ड चण्डिका । सब एके तुम आदि कालिका॥

अजा एकरूपा बहुरूपा। अकथ चरित्र तव शक्ति अनूपा॥

कलकत्ता के दक्षिण द्वारे। मूरति तोर महेशि अपारे ॥

कादम्बरी पानरत श्यामा । जय मातंगी काम के धामा॥

कमलासन वासिनी कमलायनि । जय श्यामा जय जय श्यामायनि॥

मातंगी जय जयति प्रकृति हे।जयति भक्ति उर कुमति सुमति है॥

कोटिब्रह्म शिव विष्णु कामदा । जयति अहिंसा धर्मजन्मदा ॥

जल थल नभमण्डल में व्यापिनी । सौदामिनि मध्य अलापिनि॥

झननन तच्छु मरिरिन नादिनि । जय सरस्वती वीणा वादिनी॥

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। कलित कण्ठ शोभित नरमुण्डा॥

जय ब्रह्माण्ड सिद्धि कवि माता कामाख्या और काली माता॥

हिंगलाज विन्ध्याचल वासिनी । अट्टहासिनी अरुअघन नाशिनी॥

कितनी स्तुति करूँ अखण्डे । तू ब्रह्माण्डे शक्तिजितचण्डे ॥

करहु कृपा सबपे जगदम्बा। रहहिं निशंक तोर अवलम्बा ॥

चतुर्भुजी काली तुम श्यामा।रूप तुम्हार महा अभिरामा॥

खड्ग और खप्पर कर सोहत । सुर नर मुनि सबको मन मोहत ॥

तुम्हरि कृपा पावे जो कोई रोग शोक नहिं ताकहँ होई ॥

जो यह पाठ करे चालीसा । तापर कृपा करहि गौरीशा ॥

॥ दोहा ॥

जय कपालिनी जय शिवा, जय जय जय जगदम्ब । सदा भक्तजन केरि दुःख हरहु, मातु अवलम्ब॥

महाकाली स्तोत्र

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