श्री शारदा चालीसा
चालीसा
शारदा चालीसा एक भक्ति गीत है जो शारदा माता पर आधारित है।
॥ दोहा ॥
मूर्ति स्वयंभू शारदा, मैहर आन विराज । माला, पुस्तक, धारिणी, वीणा कर में साज ॥
॥ चौपाई ॥
जय जय जय शारदा महारानी। आदि शक्ति तुम जग कल्याणी ॥
रूप चतुर्भुज तुम्हरो माता। तीन लोक महं तुम विख्याता॥
दो सहस्त्र बर्षहि अनुमाना । प्रगट भई शारद जग जाना ॥
मैहर नगर विश्व विख्याता । जहाँ बैठी शारद जगमाता॥
त्रिकूट पर्वत शारदा वासा। मैहर नगरी परम प्रकाशा ॥
शरद इन्दु सम बदन तुम्हारो । रूप चतुर्भुज अतिशय प्यारो ॥
कोटि सूर्य सम तन द्युति पावन । राज हंस तुम्हारो शचि वाहन ॥
कानन कुण्डल लोल सुहावहि । उरमणि भाल अनूप दिखावहिं ॥
वीणा पुस्तक अभय धारिणी । जगत्मातु तुम जग विहारिणी ॥
ब्रह्म सुता अखंड अनूपा। शारद गुण गावत सुरभूपा॥
हरिहर करहिं शारदा बन्दन । बरुण कुबेर करहिं अभिनन्दन ॥
शारद रूप चण्डी अवतारा । चण्ड-मुण्ड असुरन संहारा॥
महिषा सुर वध कीन्हि भवानी । दुर्गा बन शारद कल्याणी॥
धरा रूप शारद भई चण्डी । रक्त बीज काटा रणमुण्डी ॥
तुलसी सूर्य आदि विद्वाना। शारद सुयश सदैवबखाना ॥
कालिदास भए अति विख्याता । तुम्हारी दया शारदा माता॥
वाल्मीक नारद मुनि देवा । पुनि-पुनि करहिं शारदा सेवा॥
चरण-शरण देवहु जग माया । सब जग व्यापहिं शारद माया ॥
अणु-परमाणु शारदा वासा। परम शक्तिमय परम प्रकाशा॥
हे शारद तुम ब्रह्म स्वरूपा । शिव विरंचि पूजहिं नर भूपा ॥
ब्रह्म शक्ति नहि एकउ भेदा । शारद के गुण गावहिं वेदा॥
जय जग बन्दनि विश्व स्वरुपा । निर्गुण-सगुण शारदहिं रुपा॥
सुमिरहु शारद नाम अखंडा । व्यापइ नहिं कलिकाल प्रचण्डा॥
सूर्य चन्द्र नभ मण्डल तारे। शारद कृपा चमकते सारे॥
उद्धव स्थिति प्रलय कारिणी । बन्दउ शारद जगत तारिणी ॥
दु:ख दरिद्र सब जाहिं नसाई । तुम्हारी कृपा शारदा माई ॥
परम पुनीति जगत अधारा। मातु शारदा ज्ञान तुम्हारा ॥
विद्या बुद्धि मिलहिं सुखदानी। जय जय जय शारदा भवानी॥
शारदे पूजन जो जन करहीं। निश्चय ते भव सागर तरहीं॥
शारद कृपा मिलहिं शुचि ज्ञाना। होई सकल विधि अति कल्याणा॥
जग के विषय महा दु:ख दाई । भजहुँ शारदा अति सुखपाई ॥
परम प्रकाश शारदा तोरा । दिव्य किरण देवहुँ मम ओरा ॥
परमानन्द मगन मन होई। मातु शारदा सुमिरई जोई॥
चित्त शान्त होवहिं जप ध्याना। भजहुँ शारदाहोवहिं ज्ञाना॥
रचना रचित शारदा केरी। पाठ करहिं भव छटई फेरी ॥
सत्-सत् नमन पढ़ीहे धरिध्याना । शारद मातु करहिं कल्याणा ॥
शारद महिमा को जग जाना । नेति नेति कह वेदबखाना ॥
सत्-सत् नमन शारदा तोरा । कृपा दृष्टि कीजै मम ओरा ॥
जो जन सेवा करहिं तुम्हारी । तिन कहँ कतहुँ नाहिदुःखभारी॥
जो यह पाठ करै चालीसा । मातु शारदा देहुँ आशीषा॥
॥ दोहा ॥
बन्दउँ शारद चरण रज, भक्ति ज्ञान मोहि देहुँ । सकल अविद्या दूर कर, सदा बसहु उरगेहुँ ।
जय-जय माई शारदा मैहर तेरौ धाम । शरण मातु मोहिं लीजिए, तोहि भजहुँ निष्काम ॥