अय्यप्पन स्वामी मंदिर
दक्षिण भारत के केरल राज्य में पतनमतिट्टा जिले में पहाड़ियों से घिरे सबरीमाला पहाड़ पर घोर वन में स्थित विश्वविख्यात सबरीमाला मंदिर आध्यात्मिक आस्था का विशाल केंद्र है जहां प्रतिवर्ष करोड़ों श्रद्धालु भगवान अय्यप्पन के दर्शन करके निज जीवन को धन्य करते हैं।
वर्ष में 3 बार भक्तों को दर्शन प्राप्त होते हैं जब विषु (अप्रैल में), मंडलपूजा (मार्गशीर्ष में) तथा मलरविलक्कु (मकर संक्रांति में) पूजा होती है। मकर संक्रांति को यहीं विशेष पूजा होती है, बड़ा उत्सव मनाया जाता है और एक सुंदर मेला लगता है।
यह माँदर जहां शैव व वैष्णव परम्परा का अनूठा उदाहरण है वहाँ धर्मनिरपेक्षता का सुंदर दर्शन है। गत कुछ वर्षों में 11 से 50 वर्ष तक की आयु की (रजस्वला) स्त्रियों के मंदिर में प्रवेश की मनाही को लेकर चर्चा का विषय रहा सबरीमाला मंदिर दक्षिण वास्तुशैली का अति सुंदर उदाहरण है।
लंबी कानूनी जद्दोजहद के उपरांत न्यायालय का निर्णय भले ही स्त्रियों के हक में आ गया हो किंतु श्रद्धालु आज भी यहां प्राचीन परम्पराओं का अनुसरण करते हुए 41 दिनों का ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर आस्था बल से भगवान अय्यप्पन के दर्शन करते हैं। आइए जानते हैं कि आखिर क्यों करते हैं भगवान अय्यप्पन के भक्त इतनी कठोर ब्रह्मचर्य साधना।
भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार और भगवान शिवकी संतान हैं सबरीमलय मंदिर में विराजमान ब्रह्मचारी भगवान ‘अय्यप्पन स्वामी’
पौराणिक कथानुसार देवों और दैत्यों के सहयोग से समुद्र मंथन किया गया। मंथन से प्राप्त रत्नों में जब अमृत की प्राप्ति हुई तो अमृत से अमरत्व की इच्छा रखने वाले दैत्य एकाएक अमृत कलश ले कर दौड़े।
यह देखकर भगवान विष्णु श्रेष्ठसुंदरी नारी अवतार धारण कर सभी के मध्य प्रकट हुए। विष्णु की योगमाया और मोहक शक्ति की स्वामिनी उस सुंदरी का नाम मोहिनी हुआ।
त्रिलोक के मन को मोहने वाले मोहिनी अवतार धारण प्रभु जानते थे कि यदि यह अमृत दैत्यों को प्राप्त हो गया तो अमरत्व प्राप्ति उपरांत वे मृत्यु से निर्भीक होकर तीनों लोकों में उत्पात मचाते हुए धर्म की घोर हानि करेंगे।
ऐसा सोच कर मोहिनी स्वरूप प्रभु ने निर्णय लिया कि पात्र के अनुरूप ही पदार्थ की प्राप्ति होनी चाहिए। मोहिनी के रूप- लावण्य पर सभी मंत्रमुग्ध हो रहे थे जिधर – जिधर देवी मोहिनी जाती, दैत्य बेसुध हुए उधर ही दौड़ने लगते ।
देवों और दैत्यों के कलह का कारण पूछने पर दैत्यों ने अमृत कलश देवी मोहिनी को सौंपते हुए कहा, ‘हे रूपवती देवी अमृत वितरण तुम ही कर दो।’
धर्म की रक्षा हेतु देवी मोहिनी ने पंक्ति में बैठे देवों को अमृत पान करवाया और अपनी योगमाया से दैत्यों को मदिरा पान करवाया।
इस घटना का जब भगवान शिव को भान हुआ कि विष्णु मोहिनी रूप में अवतरित हुए हैं तो वह मोहिनी दर्शन करने को लालायित हो उठे। जब शिव जी पधारे तो मोहिनी शक्ति से ग्रस्त हुए बिना न रह सके।
कामदेव को भस्म करने वाले शिव जी, मोहिनी रूप पर आसक्त हुए और योगमाया से मोहिनी संग एक उपवन में पहुंचे जहां देवी मोहिनी और शिव के संयोग से एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम शास्ता हुआ जिन्हें दक्षिण भारत में अय्यप्पन या मणिकांता भी कहा जाता है।
शिव-मोहिनी ने अपने इस दिव्य पुत्र को पम्पा के तट पर छोड़ दिया जिनका राजा चंद्रशेखर ने वर्षों तक पालन किया किंतु छोटी आयु में ही संसार से विमुख विरक्त हुए अय्यप्पन स्वामी को वैराग्य हुआ और वह अखंड ब्रह्मचारी हुए।
सबरीमाला मंदिर में हरिहर के पुत्र भगवान अय्यप्पन स्वामी का विग्रह ध्यान मुद्रा में ही विराजमान है।
वृतान्त है कि स्वयं भगवान परशुराम ने इस विग्रह की स्थापना की थी। इस प्रकार शिव व विष्णु की एकरूप समाहित वैराग्य शक्तियों का प्रतीक हैं सबरीमाला के भगवान अय्यप्पन स्वामी।