देव दर्प के दलन को प्रकटी तेज स्वरूप।
दुष्ट जनन को मृत्यु हैं, भक्तों को माँ रूप।।
माँ उमा की उत्पत्ति – सूतजी बोले-हे ऋषिगण! सुनिये एक बार देवता दैत्यों का भयानक युद्ध हुआ। तब इसी मातेश्वरी के प्रताप से देवता विजयी हुए। इस कारण देवताओं को गर्व हुआ, अपनी-अपनी प्रशंसा करने लगे।
एक तेज का प्रकट होना
तब उन्हीं से एक कूप रूप तेज प्रकट हआ। देवताओं ने ज्योंही उस तेज को देखा तो बहुत ही घबड़ा गये। इन्द्र से जाकर बोले-वह क्या है? तब इन्द्र ने उसकी परीक्षा लेने के लिये कहा – प्रथम वायु वहाँ पहुँचा।
उस तेज ने वायु से पूछा, तू कौन है ? वायु बोला, मैं सारे जगत् का प्राण हूँ। मेरे द्वारा जगत चल रहा है, सुनते ‘ ही तेज ने कहा, अच्छा तो अपनी शक्ति से जरा इस तिनके को तो चलाकर दिखा दो। तब वायु ने अपनी सारी शक्ति लगा दी किन्तु तिनका तिल भर भी न हिल सका।
उस तेज की शक्ति से सभी देवताओ का पराजित होना
वायु लज्जित होकर इन्द्र के पास पहुँचा, अपनी पराजय का सम्पूर्ण वृत्तान्त सुनाया। यह सुनकर इन्द्र ने अन्य देवताओं को भी उसकी परीक्षा के लिये भेजा किन्तु वे सभी पराजित हो गये। इन्द्र स्वयं वहाँ पहुँचा। इन्द्र को वहाँ आया जानकर तेज उसी समय अन्तान हो गया। इन्द्र इससे अत्यन्त विस्मित हुआ।
तब हजार नेत्रों वाले इन्द्र ने विचार किया कि जो तेज इस प्रकार की शक्ति रखता है, मैं उसकी शरण में क्यों न जाऊँ ? यह सोचकर मन द्वारा इन्द्र शरण को प्राप्त हुआ।
देवी का प्रकट होना
वह चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी का तथा मध्यान्ह का समय था। ठीक उसी समय हेतु के बिना कृपा करने वाली सबका अभिमान मिटाने वाली देवी प्रकट हो गई।
इन्द्र से बोली हे सुरराज इन्द्र! ब्रह्मा, विष्णु, शिव आदि भी मेरे सामने गर्व नहीं कर सकते, तो फिर अन्य देवताओं की तो. सामर्थ्य ही क्या है। मैं परब्रह्म प्रणवस्वरूप देवी हूँ, मेरी कृपा से तुम लोगों ने दैत्यों पर विजय पाई है। हे देवतागण! तुम अपना अभिमान त्याग करके नम्रता के साथ मेरा भजन करो।
देवताओं ने प्रणाम तथा स्तुति करके कहा
इतना सुनकर देवताओं ने प्रणाम तथा स्तुति करके कहा-हे माहामाये. अब तो आप क्षमा करें। आगे इस प्रकार का वरदान दें जिससे हमें शिर अभिमान न हो। तभी से देवताओं ने अभिमान त्यागकर त्यागकर उमा देवी की आराधना प्रारम्भ कर दी।
जय माता दी
प्रभु नाम का महात्म्य – आवागमन के चक्कर से छूटने के सिर्फ दो ही उपाय..