कुंती का त्याग

कुंती का त्याग

पाण्डव अपनी मां कुंती के साथ इधर से उधर भ्रमण कर रहे थे। वे ब्राह्मणों का वेश धारण किए हुए थे। भिक्षा मांगकर खाते थे और रात में वृक्ष के नीचे सो जाया करते थे| भाग्य और समय की यह कैसी अद्भुत लीला है।

जो पांडव हस्तिनापुर राज्य के भागीदार हैं और जो सारे जगत को अपनी मुट्ठी में करने में समर्थ हैं, उन्हीं को आज भिक्षा पर जीवन-यापन करना पड़ रहा है।दोपहर के बाद का समय था| पांडव अपनी मां कुंती के साथ वन के मार्ग से आगे बढ़ते जा रहे थे। सहसा उन्हें वेदव्यास जी दिखाई पड़े।

कुंती दौड़कर वेदव्यास जी के चरणों में गिर पड़ी। उनके चरणों को पकड़कर बिलख-बिलख कर रोने लगी। उसने अपने आंसुओं से उनके चरणों को धोते हुए उन्हें अपनी पूरी कहानी सुनादी।

वेदव्यास जी ने कुंती को धैर्य बंधाते हुए कहा, “आंसू बहाने से कुछ नहीं होगा। जो ऊपर पड़ा हैं, उसे धैर्य से सहन करो| जब अच्छे दिन आएंगे, फिर सबकुछ ठीक हो जाएगा| चलो, मेरे साथ चलो। मैं तुम्हें एक स्थान बताए दे रहा हूं|

कुछ दिनों तक वहीं रहकर समय काटो।”वेदव्यास जी पांडवों को एक नगर में ले गए। उस नगर का नाम एकचक्रा था। आज के बिहार राज्य में, शाहाबाद जिले में आरा नामक एक बड़ा नगर है। महाभारत काल में आरा को ही एकचक्रा के नाम से पुकारा जाता था।

उन दिनों एकचक्रा में केवल ब्राह्मण ही निवास करते थे। वेदव्यास जी पांडवों को एकचक्रा में पहुंचाकर चले गए।पांडव एक ब्राह्मण के घर में निवास करने लगे। पांचों भाई प्रतिदिन भिक्षा मांगने के लिए जाया करते थे।

भिक्षा में जो अन्न मिलता था, उसी से अपने जीवन का निर्वाह करते थे।उन दिनों एकचक्रा में एक राक्षस के द्वारा बड़े जोरों का आतंक फैला हुआ था| उस राक्षस का नाम बक था। वह दिन में वन में छिपा रहता था।

रात में बाहर निकलता था और एकचक्रा में घुस जाता था। जिसे भी पाता था, मार डालता था| खाता तो एक ही दो आदमी को था, पर पंद्रह-बीस आदमियों के प्राण रोज जाते थे। आखिर एकचक्रा के निवासियों ने बक से एक समझौता किया

• प्रतिदिन नगर का एक आदमी अपने आप ही बक के पास पहुंच जाया करेगा और बक उसे मारकर खा लिया करेगा| एक ही आदमी की जान जाएगी, व्यर्थ में मारे जाने वाले लोग बच जाया करेंगे।बक ने भी इस समझौते को स्वीकार कर लिया।

उसे जब बैठे-बिठाए ही भोजन मिल जाता था, तो वह समझौते को स्वीकार न करता तो क्या करता? उसने समझौते को स्वीकार करते हुए चेतावनी दे रखी थी कि अगर समझौते का उल्लंघन किया गया तो वह एकचक्रा को उजाड़कर मिट्टी में मिला देगा।

बस, उसी दिन से क्रम-क्रम से एक घर का एक आदमी बक के पास जाने लगा, बक उसे खाकर अपनी क्षुधाग्नि को शांत करने लगा। संयोग की बात, एक दिन उस ब्राह्मण के घर की बारी आ गई, जिसके घर में पांडव अपनी मां के साथ निवास करते थे।

दोपहर के पूर्व का समय था| कुंती अपने कमरे में बैठी हुई थी। उस दिन भीम किसी कारणवश भिक्षा मांगने नहीं गया था| वह भी कमरे के भीतर, कुंती के पास ही मौजूद था।सहसा कुंती के कानों में किसी के रोने की आवाज आई। रोने और विलाप करने का वह स्वर उस ब्राह्मण के कमरे से आ रहा था, जिसके घर में वह ठहरी हुई थी।

जब कुंती से विलाप का यह सक रुण स्वर सुना नहीं गया, तो वह ब्राह्मण के कमरे में जा पहुंची। उसने वहां जो कुछ देखा उससे वह सन्नाटे में आ गई।ब्राह्मण के कुटुंब में कुल तीन ही प्राणी थे – ब्राह्मण-ब्राह्मणी और उसका एक युवा पुत्र।

तीनों बिलख-बिलखकर रो रहे थे, “हाय, हाय, अब क्या होगा? अब तो सबकुछ मिट्टी में मिलकर रहेगा।”कुंती ने तीनों को रोता हुआ देखकर ब्राह्मण से पूछा, “विप्रवर, आप तीनों इस प्रकार क्यों रो रहे हैं? क्या मैं जान सकती हूं कि किस दारुण कष्ट ने आप तीनों को अत्यंत दुखी बना रखा है?”

ब्राह्मण ने आंखों से आंसुओं की बूंदें गिराते हुए उत्तर दिया, “बहन, तुम सुनकर क्या करोगी? हमारा कष्ट एक ऐसा कष्ट है, जिसे कोई दूर नहीं कर सकता|”कुंती ने सहानुभूति भरे स्वर में कहा, ‘हम तो गरीब ब्राह्मण हैं।

सच है, हम आपके कष्ट को दूर नहीं कर सकते, किंतु फिर भी सुनने में हर्ज ही क्या है? हो सकताहै, हम आपके कुछ काम आ जाएं। *

जब कुंती ने बहुत आग्रह किया तो ब्राह्मण ने बक राक्षस की पूरी कहानी उसे सुना दी। कहानी सुनाकर उसने सिसकते हुए कहा, “बहन ! हम कुल तीन ही प्राणी हैं। यदि कोई एक राक्षस के पास जाता है, तो वह उसे मारकर खा जाएगा। हमारा घर बरबाद हो जाएगा।

इसलिए हम सोचते हैं कि हम तीनों ही राक्षस के पास चले जाएंगे। हम इसलिए रो रहे हैं, आज हम तीनों के जीवन का अंत हो जाएगा।”ब्राह्मण की करुण कथा सुनकर कुंती बड़ी दुखी हुई।

वह मन ही मन कुछ क्षणों तक सोचती रही, फिर बोली, “विप्रवर! मैं एक बात कहती हूं, उसे ध्यान से सुनिए मेरे पांच पुत्र हैं। आज मैं अपने एक पुत्र को आपके कुटुंब की ओर से राक्षस के पास भेज दूंगी। यदि राक्षस मेरे पुत्र को खा जाएगा, तो भी मेरे चार पुत्र शेष रहेंगे।

“कुंती की बात सुनकर ब्राह्मण स्तब्ध रह गया। उसने परोपकार में धन देने वालों की कहानियां तो बहुत सुनी थीं, पर पुत्र देने वाली बात आज उसने पहली बार सुनी। वह कुंती की ओर देखता हुआ बोला, “बहन, तुम तो कोई स्वर्ग की देवी ज्ञात हो रही हो।

मुझे इस बात पर गर्व है कि तुम्हारी जैसी देवी मेरे घर में अतिथि के रूप में है। तुम मेरे लिए पूज्यनीय हो। मैं अपने अतिथि से प्रतिदान लूं, यह अधर्म मुझसे नहीं हो सकेगा। मैं मिट जाऊंगा, पर मैं अतिथि को कष्ट में नहीं पड़ने दूंगा।”

ब्राह्मण की बात सुनकर कुंती बोली, “आपने हमें आश्रय देकर हम पर बड़ा उपकार किया है। आप हमारे उपकारी हैं। हमारा धर्म है कि आपको कष्ट में न पड़ने दें। आप अपने धर्म का पालन तो करना चाहते हैं, पर हमें अपने धर्मपालन से क्यों रोक रहे हैं?

“कुंती ने जब बहुत आग्रह किया तो ब्राह्मण ने उसकी बात मान ली। उसने दबे स्वर में कहा, “अच्छी बात है बहन ! ईश्वर तुम्हारा भला करे।”कुंती ब्राह्मण के पास से उठकर भीम के पास गई। उसने पूरी कहानी भीम को सुनाकर उससे कहा, “बेटा, परोपकार से बढ़कर दूसरा कोई धर्म नहीं होता।

तुम ब्राह्मण कुटुंब की ओर से बक के पास जाओ। यदि बक मारकर खा जाएगा, तो मुझे प्रसन्नता होगी कि मेरा बेटा परोपकार की वेदी पर बलिदान हो गया।”भीम ने बड़े हर्ष के साथ अपनी मां की आज्ञा को स्वीकार कर लिया| उसने कहा, “मां, तुम्हारी आज्ञा शिरोधार्य है।

बक मुझे क्या मारकर खाएगा, तुम्हारे आशीर्वाद से मैं उसे मिट्टी में मिला दूंगा।”संध्या का समय था भीम एक गाड़ी के ऊपर खाने-पीने का सामान लादकर उसे खींचता हुआ बक के निवास स्थान की ओर चल पड़ा।

वह बक के निवास पर पहुंचकर गाड़ी पर लदे हुए खाने के सामान को स्वयं खाने लगा। बक कुपित हो उठा। वह गरजता हुआ बोला, “एक तो तुम देर से आए हो और ऊपर से मेरा भोजन खा रहे हो?”

इतना कहकर वह भीम पर टूट पड़ा। भीम तो पहले ही तैयार था। दोनों में मल्लयुद्ध होने लगा। दोनों की गर्जना और ताल ठोंकने के शब्दों से वायुमण्डल गूंज उठा। बक ने बड़ा प्रयत्न किया कि वह भीम को मल्लयुद्ध में पछाड़ दे, पर वह सफल नहीं हुआ।

वह स्वयं भीम की पकड़ में आ गया। भीम ने उसे धरती पर गिराकर, उसके गले को इतने जोरों से दबाया कि उसकी जीभ बाहर निकल आई। वह प्राणशून्य हो गया। भीम ने उसे उठाकर नगर के फाटक के पास फेंक दिया।उधर, संध्या समय चारों भाई भिक्षाटन से लौटे, तो कुंती से सबकुछ सुनकर वे बड़े दुखी हुए।

उन्होंने अपनी मां से कहा, “तुमने भीम को अकेले भेजकर अच्छा नहीं किया। हम भाइयों में वही एक ऐसा है, जो संकट के समय काम आता है।

कुंती ने अपने पुत्रों को समझाते हुए कहा, ‘तुम चिंता क्यों करते हो? तुम देखोगे कि मेरा भीम बक को मिट्टी में मिलाकर आएगा।”फिर चारों भाई भीम का पता लगाने के लिए चल पड़े। वे अभी कुछ ही दूर गए थे कि भीम अपनी मस्ती में झूमता हुआ आता दिखाई पड़ा।

चारों भाई दौड़कर भीम से लिपट गए। भीम ने उन्हें बताया कि उसने किस तरह अत्याचारी बक को नर्क में पहुंचा दिया है।

भीम ने घर पहुंचकर अपनी मां के चरण स्पर्श किए। उसने कहा, “मां, तुम्हारे आशीर्वाद से मैंने बक का संहार कर दिया| अब एकचक्रा के निवासी सदा-सदा के लिए भयमुक्त हो गए।”कुंती ने भीम का मुख चूमते हुए कहा, “बेटा भीम ! मुझे तुमसे यही आशा थी।

मैंने इसीलिए तो तुम्हें बक के पास भेजा था।”प्रभात होने पर एकचक्रा निवासियों ने नगर के फाटक पर बक को मृत अवस्था में पड़ा हुआ देखा। उन्हें जहां प्रसन्नता हुई, वहां आश्चर्य भी हुआ – बक का वध किसने किया? क्या ब्राह्मण ने?

एकचक्रा के निवासी दौड़े-दौड़े ब्राह्मण के घर पहुंचने लगे। थोड़ी ही देर में ब्राह्मण के द्वार पर बहुत बड़ी भीड़ एकत्रित हो गई। ब्राह्मण के जयनाद से धरती और आकाश गूंजने लगा।ब्राह्मण ने भीड़ को शांत करते हुए कहा, “भाइयो !

बक का वध मैंने नहीं किया है। उसका वध तो मेरे घर में ठहरी हुई ब्राह्मणी के बेटे ने किया है।” एकचक्रा के निवासी इस बात को तो जान गए कि बक का वध ब्राह्मण के घर में टिकी हुई ब्राह्मणी के एक बेटे ने किया है, किंतु अधिक प्रयत्न करने पर भी वे यह नहीं जान सके कि ब्राह्मणी कौन है और उसके पांचों बेटे कौन हैं?

किंतु जानने पर भी यह तो हुआ ही कि एकचक्रा निवासी ब्राह्मणी और उसके पुत्रों का बड़ा आदर करने लगे। स्वयं ब्राह्मण भी गर्व का अनुभव करने लगा कि जिस ब्राह्मणी के पुत्र के एकचक्रा के निवासियों को सदा-सदा के लिए संकट मुक्त करा दिया है, वह उसके घर में अतिथि के रूप में टिकी हुई है।

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