नाग पंचमी कब है? आइये जानें
नाग पंचमी 2023 की तारीख व मुहूर्त
2023 में नाग पंचमी कब है?
21 अगस्त, 2023
(सोमवार)
नाग पंचमी मुहूर्त
नाग पंचमी पूजा मुहूर्त : | 05:42:40 से 08:24:28 तक |
अवधि : | 2 घंटे 41 मिनट |
ॐ नाग पंचमी
श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी नाग पंचमी के नाम से विख्यात है। इस दिन नागों का पूजन किया जाता है। इस दिन व्रत करके सांपों को दूध पिलाया जाता है।
गरूड़ पुराण में ऐसा सुझाव दिया गया है कि नागपंचमी के दिन घर के दोनों बगल में नाग की मूर्ति बनाकर पूजन किया जाए।
नाग पंचमी क्या है?
ज्योतिष के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग हैं। अर्थात् शेषनाग आदि सर्पराजाओं का पूजन पंचमी को होना चाहिए।
नाग शब्द का अर्थ सर्प/नाग/कोबरा है। पंचमी शब्द का अर्थ है बढ़ते चंद्रमा (शुक्ल पक्ष का)और घटते चंद्रमा (कृष्ण पक्ष का) का पांचवां दिन, चंद्र पक्ष में प्रत्येक क्रम 15 दिनों तक चलता है।
हिंदुओं द्वारा सांपों की पूजा करने का एक महत्वपूर्ण दिन है, प्रकृति की पूजा करने के साथ साथ, जानवर भी इसका हिस्सा हैं। हिंदू धर्म में हिंदू देवता ज्यादातर वाहन के रूप में एक जानवर से जुड़े होते हैं और इन वाहनों का हिंदुओं द्वारा इनको सम्मान दिया जाता है और पूजा की जाती है।
नाग पंचमी पूजा विधि
नाग पंचमी हिन्दू धर्म में एक महत्त्वपूर्ण पर्व है जो सापों की पूजा और उनके संरक्षण के उद्देश्य से मनाया जाता यह पर्व भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न हिस्सों में धूमधाम से मनाया जाता है। नाग पंचमी की पूजा विधि निम्नलिखित रूप से होती है-
सामग्री:
नाग देवता की मूर्ति, पिंठी, जल, दूध, दही, गंध, कुमकुम, बिल्वपत्र, बील पत्ती, धूप, दीप, अक्षत (चावल के दाने),फूल, पूजा थाली ।
पूजा विधि:
1. पूजा का आयोजन एक शुभ मुहूर्त में करें।
2. पूजा स्थल को साफ-सफाई और सजीव रखें।
3. पूजा की शुरुआत गणेश जी की पूजा से करें और उन्हें प्रसन्न करें।
4. नाग देवता की मूर्ति को पूजा स्थल पर रखें।
5. नाग देवता की मूर्ति को पानी, दूध, दही, गंध, कुमकुम, अक्षत, फूल, बीलपत्ती आदि से सजाकर पूजन करें।
6. नाग देवता की मूर्ति को बिल्वपत्र से अर्चना करें।
7. दीप और धूप जलाकर पूजा को आरम्भ करें।
8. मंत्रोच्चारण के बाद नाग देवता की आराधना करें और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें।
9. उपासना के बाद प्रसाद बांटें और उसे सभी को खिलाएं।
इसके अलावा, आप अपने स्थानीय पारंपरिक प्रथाओं और निम्नलिखित विशिष्ट उपायों का भी पालन कर सकते हैं
- सर्प शांति होम या पूजा का आयोजन करना
- नाग देवता की मूर्ति को पानी में डालकर सर्पाष्टक स्तोत्र या मन्तों का पाठ करना
- सर्प कवच और सर्प उपासना स्तोत्र का पाठ करना ।
ध्यान दें कि यह विधियाँ विभिन्न प्रांतों और संप्रदायों में थोड़ी भिन्न हो सकती है, इसलिए आपके स्थानीय पारंपरिक विशेषताओं का पालन करें।
नाग पंचमी कथा
प्राचीन दन्त कथाओं में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। उनमें से एक कथा इस प्रकार से है-किसी राज्य में एक किसान रहता था। किसान के दो पुत्र व एक पुत्री थी। एक दिन हल चलाते समय सांप के तीन बच्चे कुचलकर मर गए । नागिन पहले तो विलाप करती रही फिर सन्तान के हत्यारे से बदला लेने के लिए चल दी। रात्रि में नागिन ने किसान, उसकी पत्नी व दोनों लड़कों को डस लिया। अगले दिन नागिन किसान की पुत्री को डसने के लिए पहुंची तो किसान की पुत्री ने नागिन के सामने दूध से भरा कटोरा रखा और हाथ जोड़कर क्षमा मांगने लगी। नागिन ने प्रसन्न होकर उसके माता-पिता व दोनों भाइयों को जीवित कर दिया। उस दिन श्रावण शुक्ला पंचमी थी। तब से नागों के प्रकोप से बचने के लिए इस दिन नागों की पूजा की जाती है।
नाग पंचमी की एक और प्रसिद्ध कथा है जो हिन्दू मिथोलॉजी में आती है और नाग पंचमी के त्योहार के पीछे की जाती है। यह कथा विभिन्न प्रांतों में थोड़ी भिन्न रूपों में प्रस्तुत की गई है, लेकिन यहां मैं एक सामान्य कथा को बता रहा हूँ: कथा का नाम: गरुड़ पुराण से उत्तरखण्ड कथा की शुरुआत होती है जब प्राचीन समय में अर्जुन नामक एक राजा था, जो बड़ी शक्तिशाली सेना के साथ अपने राज्य में शांति और न्याय की शिक्षा देता था। राजा अर्जुन का एक पुत्र था जिनका नाम धर्मध्वज था। धर्मध्वज अपने पिता की यथायोग्य विद्या और शिक्षा में रुचि रखता था और वह नीति-नियम के पालन में बड़ी आदर्श थे। एक दिन, धर्मध्वज वन में घूमते समय एक विशाल सर्प (नाग) को देखते हैं, जो बहुत दुखी और दर्दभरा दिख रहा था। वह सर्प धर्मध्वज के पास आकर बात करने लगता है। सर्प ने अपनी कथा सुनाई कि वह पूर्व के दिनों में एक राजा थे जिनका नाम कालसर्प था। कालसर्प ने अपनी भक्ति और तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न किया और उनसे एक वरदान मांगा कि वह अमर हो जाएं। शिव ने उनकी इच्छा पूरी की, लेकिन इससे कालसर्प ने उस अर्थशास्त्र का अभ्यास छोड़ दिया जिसकी वजह से वह धन की अवशोषण में व्यस्त हो गए और धन के लालच में उन्होंने अन्य लोगों का नुकसान किया। यही कारण है कि वह सर्प अब दुखी और विकल हो गए हैं। धर्मध्वज ने सर्प की बात सुनकर उसे धर्म की महत्वपूर्णता समझाई और उसे यह उपदेश दिया कि अहिंसा, सच्चाई, और न्याय की पालन करके उसके पूर्वजों द्वारा की गई गलतियों की प्रायश्चित्त कर सकते हैं। सर्प ने उसके उपदेश का पालन किया और उसके द्वारा की गई गलतियों की क्षमा की। इस घटना के बाद, धर्मध्वज ने नाग पंचमी का उत्सव मनाने का निर्णय लिया और वह सभी लोगों को यह सिखाने का प्रयास करते हैं कि धन के प्रति लालच नहीं करना चाहिए और धर्म और नैतिकता की पालन करनी चाहिए। यह कथा नाग पंचमी के त्योहार के पीछे छिपी महत्वपूर्ण सिख और मानवता की नैतिक मूल्यों को प्रकट करती है। यहां दिखाया गया है कि धन की अवशोषण ने किस प्रकार से एक पुराने और पवित्र सर्प को दुखी बना दिया था, और धर्मध्वज के उपदेश के बाद उसके कैसे दुखों से मुक्ति मिली।
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