हरतालिका तीज कब है ? व्रत ,कथा ,महत्व ,अर्थ | Hartalika Teez

हरतालिका तीज

2023 में हरतालिका तीज कब है?

18 सितंबर, 2023

(सोमवार)

हरतालिका तीज मुहूर्त

प्रातःकाल मुहूर्त :6:12 am – 08:38 तक
अवधि :2 घंटे 26 मिनट
हरतालिका तीज

हरतालिका तीज व्रत

हरतालिका तीज का व्रत भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को किया जाता है। इस दिन शंकर-पार्वती की बालू की मूर्ति बना कर पूजन किया जाता है। सुन्दर वस्त्रों, कदली स्तम्भों से घर को सजा कर नाना प्रकार के मंगल गीतों से रात्रि जागरण करना चाहिए। इस व्रत को करने वाली स्त्रियां पार्वती के समान सुख पूर्वक पति रमण करके शिवलोक को जाती हैं।

हरतालिका तीज कथा

इस व्रत के माहात्म्य की कथा भगवान शंकर ने पार्वती को उनके पूर्व जन्म का स्मरण कराने हेतु इस प्रकार कही थी- एक बार तुमने हिमालय पर गंगा तट पर अपनी बाल्यावस्था में बारह वर्ष की आयु में अधोमुखी होकर घोर तप किया था।

तुम्हारे इस कठोर तप को देखकर तुम्हारे पिता को बड़ा क्लेश होता था। एक दिन तुम्हारी तपस्या और तुम्हारे पिता के क्लेश के कारण नारद जी तुम्हारे पिता के पास आए और बोले कि विष्णु भगवान आपकी कन्या से विवाह करना चाहते हैं।

उन्होंने इस कार्य हेतु मुझे आपके पास भेजा है। तुम्हारे पिता ने विष्णु जी के प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार कर लिया। इसके बाद नारद जी ने विष्णु जी के पास जाकर कहा कि हिमालयराज अपनी पुत्री सती का विवाह आपसे करना चाहते हैं।

विष्णु जी भी तुमसे विवाह करने को राजी हो गए।नारद जी के जाने के बाद तुम्हारे पिता ने तुम्हें बताया कि तुम्हारा विवाह विष्णु जी से तय कर दिया है। यह अनहोनी बात सुनकर तुम्हें अत्यन्त दुःख हुआ और तुम ज़ोर ज़ोर से विलाप करने लगीं।

एक अंतरंग सखी के द्वारा विलाप का कारण पूछने पर तुमने सारा वृतांत सखी को बता दिया।

“मैं शंकर भगवान से विवाह के लिए कठोर तप कर रही हूं, उधर हमारे पिताश्री विष्णु जी के साथ मेरा सम्बन्ध करना चाहते हैं। क्या तुम मेरी सहायता करोगी? नहीं तो मैं अपने प्राण त्याग दूंगी।”

तुम्हारी सखी बड़ी दूरदर्शी थी। वह तुम्हें एक घनघोर जंगल में ले गयी। इधर तुम्हारे पिता तुम्हें घर में न पाकर बहुत चिन्तित हुए। वह विष्णु जी से तुम्हारा विवाह करने का वचन दे चुके थे। वचन भंग की चिन्ता से वह मूर्छित हो गए।

इधर तुम्हारी खोज होती रही और तुम अपनी सहेली के साथ नदी के तट पर एक गुफा में मेरी तपस्या करने में लीन हो गई।

भाद्रपद शुक्ला की तृतीया को हस्त नक्षत्र में तुमने रेत का शिवलिंग स्थापित करके व्रत किया और पूजन तथा रात्रि जागरण भी किया।

तुम्हारे इस कठिन तप व्रत से मेरा आसन डोलने लगा। मेरी समाधि टूट गई। मैं तुरन्त तुम्हारे पास पहुंचा और वर मागंने का आदेश दिया। तुम्हारी मांग तथा इच्छानुसार तुम्हें मुझे अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार करना पड़ा।

तुम्हें वरदान देकर मैं कैलाश पर्वत पर चला आया । प्रातः होते ही तुमने पूजा की समस्त सामग्री को नदी में प्रवाहित करके अपनी सहेली सहित व्रत का पारण किया।

उसी समय तुम्हें खोजते हुए हिमालय राज उस स्थान पर पहुंच गए। बिलखते हुए तुम्हारे घर छोड़ने का कारण पूछने लगे।

तब तुमने उन्हें बताया कि मैं शंकर भगवान को पति रूप में वरण कर चुकी हूं, परन्तु आप मेरा विवाह विष्णु जी से करना चाहते थे।

इसीलिए मुझे घर छोड़कर आना पड़ा। मैं अब आपके साथ घर इसी शर्त पर चल सकती हूं कि आप मेरा विवाह विष्णु जी से न करके भगवान शिव से करेंगे।

गिरिराज तुम्हारी बात मान गए और शास्त्रोक्त विधि द्वारा हम दोनों को विवाह के बन्धन में बांध दिया।

इस व्रत को “हरतालिका” इसलिए कहते हैं कि पार्वती की सखी उसे पिता के घर से हर कर जंगल में ले गई थी। “हरत” अर्थात् हरण करना और ” आलिका” अर्थात् सखी, सहेली।

हरतालिका (हरत+आलिका ) । शंकर जी ने पार्वती से यह भी बताया कि जो स्त्री इस व्रत को परम श्रद्धा से करेगी उसे तुम्हारे समान ही अचल सुहाग प्राप्त होगा।

brihaspativar vrat katha | अथ श्री बृहस्पतिवार कथा

आनंद संदेश

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