महिषासुर दानव भया शक्तिमान परचंड। जाके दुर्गा ने करे अंग-अंग सब खंड।।
माँ लक्ष्मी अवतार कैसे हुआ?
महिषासुर नामक दैत्य
माँ लक्ष्मी अवतार-दैत्यों के कुल में रम्भासुर नाम का एक श्रेष्ठ दैत्य हुआ था। महिषासुर नामक महापराक्रमी उसका पुत्र हुआ। वह युद्ध में सभी देवताओं को जीतकर इन्द्र के सिंहासन पर बैठकर स्वर्ग का राज्य करने लगा। तब दुःखी होकर देवता ब्रह्माजी के साथ विष्णु भगवान तथा शंकरजी के पास पहुँचे। देवताओं से सभी वृत्तान्त सुनकर विष्णु तथा शंकरजी को क्रोध उत्पन्न हुआ।
विष्णु जी,शंकरजी और देवताओ के शरीर से तेज का उत्पन्न होना
देवताओं से सभी वृत्तान्त सुनकर विष्णु तथा शंकरजी को क्रोध उत्पन्न हुआ। तब उन दोनों के मुख से तथा देवताओं के शरीर से एक-एक तेज उत्पन्न हुआ। वही सबका तेज मिलकर एक स्त्री का रूप धारण करके प्रकट हो गया। तब उसे देखकर प्रसन्न होते हुए देवताओं ने – अनेकों आयुध तथा आभूषण दिये। जिन्हें धारण करके उस देवी ने महान अट्टहास करके गर्जना की। इस गर्जना द्वारा पृथ्वी आकाश भर गये।
दैत्यों का उस गर्जना को सुनना
तब देव-शत्रु दैत्यों ने उस शब्द को सुनकर अपने-अपने हथियार उठा लिये। महिषासुर भी सभी दैत्यों को साथ लेकर संग्राम करने वहाँ आ गया और महामाया को देखा।महामाया के प्रभाव से वहाँ आये हुये करोड़ों दैत्यों के सभी शस्त्र बेकार हो गये।
देवी को क्रोध आना
तब उस मातेश्वरी ने अपने शूल, शवित्त, तोमरादि शस्त्रों द्वारा अनेकों चिक्षुरादि दैत्यों का विनाश कर दिया तब दैत्यों के भर जाने पर महिषासुर भी देवी के श्वास से उत्पन्न हुए देवताओं को मारने लगा। तब उनके मारे जाने पर वह दैत्य, देवी वाहन सिंह की ओर भागा।
यह देखकर देवी एकदम क्रोध में आ गई। तब वह पराक्रमी दैत्य अपने खुरों द्वारा पृथ्वी को तथा सींगों द्वारा पर्वतों को उखाड़-उखाड़ कर फेकने लगा।
तब महामाया ने उसके मारने का उपाय सोच कर दैत्य पर अपना पाश फेंका।उसके बाद वह दैत्य महिष रूप त्याग करके सिंह रूप हो गया।जगदम्बा ने झट पट उसका सिर काट डाला। किन्तु फिर भी वह हाथ में तलवार लेकर खड़ा हो गया।
तब देवीजी ने तलवार के साथ उसका हाथ काट दिया। तब वह हाथी बन गया अपनी सूंड से सिंह को मारने दौड़ा। देवीजी ने उसकी सूंड़ काट दी। फिर वह राक्षस अपने रूप में आ गया।
महिषासुर संहार
इस प्रकार के युद्ध से सब त्रिलोकी काँप उठी। जीव दुःखी होगये। देवीजी ने क्रोध में आकर उस दैत्य से कहा-अरे नीच दुष्ट बुद्धि! तू तो व्यर्थ में ही मेरे साथ हठ कर रहा है त्रिलोकी भर में कोई भी मेरे सामने नहीं टिक सकता।
यह कहकर महामाया ने उछल कर उसे अपने पैरों से कचल डाला और उसकी ग्रीवा में अपना त्रिशल बींध दिया। जिससे वह पथ्वी पर सदा के लिये सोसया और हा-हाकार करते हुए उसके सभी गण इधर-उधर भाग गये।
इन्द्रादिक देवताओं ने आकर देवी की स्तुति की, गन्धर्वगाने लगे, अप्सरायें नाचने लगीं।
जय माता दी
Jai maa
Jai mata di