माँ शैलपुत्री

माँ शैलपुत्री का अर्थ

माँ शैलपुत्री का अर्थ-अचल पर्वत-अचल पर्वत की तरह-माँ की करुणा की ममता अपने बच्चों पर अचल और स्थिर है क्यूंकि यह शैलपुत्री है-पुत्र कुपुत्र हो सकता है माता कुमाता नहीं होती l

वर्षा ऋतु में वर्णन आया है की आकाश से बूंदे गिरती है तो पर्वत ऐसे सहन करता है जैसे खालो के वचनो को कोई साधु सहन करता है तो माँ शैलपुत्री होने के कारन यदि कोई बालक खलता से भरा है तो ऐसे बालको के वचनों को माँ सहन करती है

माँ पर्वत की तरह, शैल की तरह और हिमगिरि की तरह ऊंचाई से भरी है। पर्वत जितना ऊँचा होता है उतना ही शीतल होता है। माँ की ऊंचाई दुसरो को ऊष्मा देने वाली है इतनी ऊंचाई पर रहने पर माँ वात्सल्य -करुणा और दुलार के झरने बहाती है जो कीट कंकड़ रास्ते में पड़े होते है उन्हें पवित्र करती है

माँ को स्त्री रूप में मत देखना

माँ को स्त्री रूप में मत देखना – माँ के अनेक रूप है यह श्री राम की भी माँ है ,कृष्ण की भी माँ है ,नारायण की भी माँ है कोई भेद नहीं। यह पांचो तत्वों पृथवी,जल,आकाश,वायु और अग्नि सबकी माँ यह माँ भवानी है

माँ आकाश की तरह विशाल है

शैलपुत्री का एक अर्थ आकाश भी होता है। माँ आकाश की तरह विशाल है छोटी नहीं हो सकती ,माँ सीमा में अबध नहीं हो सकती माँ का मातृत्व आकाश की तरह उदार और असीम हुआ करता है।

माँ संत है

ऋषि मुनियों का भाव है कि माँ संत है क्यूंकि देवो को तो अपना स्वार्थ होता है माँ का कोई स्वार्थ नहीं होता यह अपने ऊपर कष्ट सह के दुसरो को सुख देती है माँ कपास की तरह विशुद्ध निर्मल है।

माँ कैसी है-

माँ कैसी है – माँ आकाश जैसी है कपास के फूल की तरह है और जो साधु संत होते है ऐसी माँ है। माँ धर्म का प्रतीक है। माँ की महिमा तो अवर्णनीय है माँ के बारे में हम तोतली बोली में सवांद कर रहे है।

प्रथम माँ शैलपुत्री

“दुर्गा नवरात्र के प्रथम दिवस, नवरात्रों की शुरुआत, घर-घर में पूजी जाती, शैलपुत्री है मात ।

भक्तों को रहता नवरात्रों में, माता का इंतजार, शैलपुत्री मातेश्वरी, देना भाग्य संवार ।

आदि शक्ति श्री दुर्गा का, आप हो मां प्रथम रूप, ‘सिंहवाहिनी मां आपका, दर्शन भव्य-अनूप ।

एक हाथ में आप हो, पकड़े हुए त्रिशूल, दूसरे हाथ में आपके, सोहे कमल का फूल।

पंचमेव अर्पण कर मां को शीश झुकाओ, श्री दुर्गा के इस रूप से, बिन मांगे सब पाओ।

“सुना है मां जब अपनी मौज में आती, भक्तजनों के घर खुशियों के अंबार लगाती। “

भक्त की विनती पे, मां ध्यान है धरती, दुविधा को यह पल में, सुविधा है करती।

प्रथम नवरात्र आओ भक्तो, कर लें गुणगान, दयावान इस दाती से, पाएं मान-सम्मान ।

आशाओं के बीज को, अंकुर मां है करती, जैसी भावना मन में, फल वैसा अर्पित करती।

‘शौकी’ प्रथम नवरात्र करें शैलपुत्री का ध्यान, • मंगल फल प्रदायनी, मां करेगी सुख प्रदान।

-रमेश शौकी, जालंधर

जय माता दी

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